Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार ৪০ भीलराज... आज मेरा लाड़ला राजकुमार यहाँ आया है... मैं इस खुशी के मौके पर तुम्हें मुक्त करता हूँ... इतना ही नहीं, तुम्हारा राज्य भी तुम्हें वापस लौटा दिया जाएगा।' 'महाराजा, अब मुझे राज्य नहीं चाहिए! न ही मैं अपने नगर में वापस लौटूंगा!' 'तब फिर क्या करोगे तुम?' 'मैं संसार का त्याग करके तापस बन जाऊँगा!' 'तापस बनकर?' 'अनशन करूँगा... अब मेरी जीने की कोई तमन्ना बाकी नहीं बची है!' श्रेणिक ने खड़े होकर भीलराज के बंधन खोल दिये। महाराजा प्रसेनजित ने भीलराज को बड़े प्रेम के साथ भोजन करवाया... और उचित आदर सत्कार करके उसे बिदाई दी। भीलराज ने नगर के बाहर आकर अपने सवा लाख भील सैनिकों को अपनेअपने घर चले जाने की आज्ञा दी एवं स्वयं जंगल के रास्ते पर आगे बढ़ गया। एक पर्वत की गुफा में जाकर उसने अनशन व्रत अंगीकार कर लिया। श्रेणिक ने भीलराज के पुत्र को बुलाकर, उसका राज्य उसे वापस सौंप दिया। मंत्रियों को भेजकर उसका राज्याभिषेक करवा दिया। नये भील राजा ने राजगृही का आज्ञांकित राजा होना स्वीकार किया। श्रेणिक ने नये भीलराज को अपना मित्र बनाया। ___ कुमार श्रेणिक के निन्यानवे भाइयों को जब मालूम हुआ कि 'श्रेणिक बड़ी सेना लेकर आया है।' वे सभी श्रेणिक से मिलने के लिए आये। सभी ने श्रेणिक की कुशलता पूछी। श्रेणिक के पास बैठे । महाराजा प्रसेनजित भी वहीं पर बैठे हुए थे। उन्होंने सभी पुत्रों को संबोधित करते हुए कहा : ___ 'मेरे प्यारे बच्चों! अब मुझे वृद्धावस्था ने पूरी तरह घेर लिया है! मैं इस पूरे साम्राज्य का भार श्रेणिक को सौंपना चाहता हूँ! और बची हुई जिंदगी निवृत्ति में गुजारना चाहता हूँ! ९९ पुत्रों ने कहा : 'पिताजी, हम भी चाहते हैं कि राज्य श्रेणिक को ही दिया जाए। वह हर तरह से योग्य है, सक्षम है!' For Private And Personal Use Only

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