Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ पिता की चिट्ठी आई! की अमानत हड़प जाता है या दूसरों को ठगता है... वह ज्यों दुःखी होता है... वैसे ही झूठ बोलनेवाला भी दुःखी होता है... इसलिए तुम्हें असत्य नहीं बोलना चाहिए! यह सुनकर देवनंदि पहले तो ठिठक गया। फिर उसने धीरे से राजा के कान में कहा : __ 'जरा आप पास के मंत्रणाखंड में पधारिये... मैं आपको आपके लाड़ले के हालचाल बताता हूँ।' राजा को मंत्रणागृह में ले जाकर देवनंदि ने कहा : 'महाराजा, यदि मैं झूठ बोलता होऊँ तो मुझे अमानत हड़पने का, विश्वासघात का, कन्याविक्रय का, स्त्री हत्या, गौहत्या का पाप लगेगा! मैंने बेनातट नगर में धन सेठ की दुकान पर राजहंस से श्रेणिककुमार को देखा । वह धन सेठ, कुमार की एक-एक बात को देव की आज्ञा की भाँति सिर-माथे पर चढ़ाता है। उस कुमार के कहने पर ही मैं धन सेठ की हवेली में गया था और मैंने तेजमतूरी खरीदी थी। अरे... उस धन सेठ की एकलौती रूपसी बेटी सुनंदा के साथ श्रेणिक की शादी भी हो गई है। यह मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, वह बिल्कुल सत्य है... हकीकत है! मानना... न मानना आपकी इच्छा पर है! पर मुझे झूठ बोलने का या असत्य बात करने का कोई प्रयोजन नहीं है! आप भरोसा कीजिए मेरी बातों पर!' For Private And Personal Use Only

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