Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ तेजमतूरी का कमाल धन सेठ ने हाँ कही। हवेली का कार्य जोरशोर से प्रारंभ हो गया। इधर धन सेठ रोजाना राजसभा में जाने लगे। राजा का प्रेम भी बढ़ता गया। श्रेणिक ने सदाव्रत चालू कर दिया। रोजाना सैकड़ों आदमी लोग सदाव्रत में खाना खाने लगे| धन सेठ का जयजयकार होने लगा। जो श्रीमंत लोग पहले धन सेठ की बुराई करते थे... मजाक उड़ाते थे... अब वे आ-आ कर धन सेठ की चापलूसी करने लगे। धन सेठ से मिलने के लिए घर-दुकान के चक्कर काटने लगे! धन सेठ की हवेली में अब नृत्यकार आते हैं, नाचगानों की महफिल जमती है। संगीतकार आते हैं... संगीत के सूरों का शामियाना तनता है... हास्यविनोद करने वाले आते हैं... और हँसी-मजाक की फूलझड़ियाँ बिखरती हैं। धन सेठ के घर पर आया हुआ कोई न तो भूखा वापस लौटता है... न ही प्यासा वापस जाता है! कोई निराश नहीं होता! जिसे जो चाहिए वह मिलता चारों ओर गाँव-गाँव और नगर-नगर में धन सेठ का नाम गूंजने लगा। साथ ही श्रेणिककुमार और सुनंदा के गुण भी गाये जाने लगे। For Private And Personal Use Only

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