Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ अंधी राजकुमारी देखे लगी 'अरे सेठ! तुम्हारी बेटी मेरी भी बेटी है... बोलो, उसकी क्या इच्छा है...? मैं उसकी इच्छा को अवश्य पूरी करूँगा!' सेठ ने राजा से सुनंदा के मनोरथ के बारे में बतलाया। राजा तो खुश हो उठा। उसने कहा : 'अरे! सुनंदा की इच्छा तो अत्युत्तम है! अवश्य मैं उसके साथ जिनमंदिर में जाऊँगा!' राजपरिवार एकत्र हो गया। सुलोचना को नई दृष्टि मिली, इसका सबको हर्ष था। नगर में भी तूफानी हवा की भाँति बात फैल गई। लोगों के टोले मिलकर राजकुमारी को देखने... उसको अभिनंदन देने राजमहल में आने लगे। नगर के मंदिरों में उत्सव रचाये गये। धन सेठ की वाहवाही से धरतीआकाश गूंज उठे। __ श्रेणिक की पत्नी सुनंदा और राजकुमारी सुलोचना को राजा के पट्टहस्ति पर बिठाया गया। राजा का विशेष वादित्रदल सबसे आगे संगीत के सूर छेड़ने लगा। राजा-मंत्री-सेनापति और हजारों स्त्री-पुरुष उस जुलूस में शामिल हुए। सुनंदा के पास बैठी हुई दासी चामर डुला रही है... एक दासी सिर पर छत्र धारण किये हुए है। सुनंदा और सुलोचना गरीबों को मुक्त हस्त से दान दे रही है। इस तरह सुनंदा ने नगर के सभी जिनमंदिरों में जाकर दर्शन-पूजन किये... बाद में जुलूस धन सेठ की हवेली पर पहुँचा। वहाँ पर स्वागतअल्पाहार व भेंट सौगात देने के पश्चात् जुलूस का समापन हुआ। सुनंदा की मनोकामना पूर्ण होने से वह हर्षोन्मत्त हो झूम रही थी। उसने घर पर अनेक साधु-साध्वीजी को निमंत्रित करके सुपात्र दान दिया। राजा ने अपने राज्य में पशु-पक्षी की हिंसा बंद करवायी। नगर में घर-घर पर राजा ने घी के डिब्बों की प्रभावना की। भेंट दी। सभी हाट-बाजार व चौराहों पर तोरण बाँधकर... उन्हें सजाया गया। सुनंदा और सुलोचना के बीच उसी दिन से गहरी दोस्ती रच गयी। एक दिन श्रेणिककुमार ने सुनंदा से कहा : 'देवी! अपने पुत्र का नाम 'अभयकुमार' रखेंगे!' For Private And Personal Use Only

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