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२७
तेजमतूरी का कमाल
धन सेठ ने तेजमतूरी का नमूना दिखाया। देवनंदि सोचता है :
कितना किस्मतवाला है यह सेठ! इसके घर में तेजमतूरी के बोरे भरे पड़े हैं, फिर भी इसमें नम्रता... विवेक... कितने सारे गुण हैं! उसने धन सेठ से कहा 'मैं मेरी सवा लाख पोट यहाँ ले आता हूँ!'
देवनंदि की पोटें आ गई। पोटों में रत्न थे... सोना था... चांदी थी... वस्त्र थे... चंदन... कपूर और कस्तूरी थी। कीमती किराना भरा हुआ था । धन सेठ और श्रेणिक ने देवनंदि के साथ वस्तुओं की अदला-बदली की।
व्यापार किया। बड़ा व्यापार हुआ। देवनंदि ने काफी तेजमतूरी खरीदी। धन सेठ ने देवनंदि की हजारों पोटें खरीद ली।
धन सेठ ने देवनंदि से कहा :
'आप हमारे मेहमान हो, आपको हमारे साथ ही भोजन करना है... इससे पहले हम देव पूजा कर आएं।
धन सेठ, श्रेणिक और देवनंदि स्नान करके पूजन के स्वच्छ वस्त्र पहनकर मंदिरजी में पूजा करने के लिये गये। जिनमंदिर के निकट के बगीचे में से जूही के सुंदर खुशबूदार फूल ले आये और उन्होंने श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा की। बाद में गीत, गान और नृत्य के द्वारा भावपूजा की। तीनों घर पर आये। भोजन किया। परस्पर बातचीत की। आराम किया। देवनंदि ने कहा : 'अब हमें महाराजा के पास चलना चाहिए।'
सुंदर वस्त्र धारण किये और धन सेठ व देवनंदि राजसभा में गये । राजा को प्रणाम करके देवनंदि बोला : 'महाराजा, आप धन्य हैं... आप पुण्यशाली हैं... कि ऐसे धन सेठ जैसे बड़े और गुणी व्यापारी आपके नगर में रहते हैं। वे जैन धर्म का सुंदर पालन करते हैं। मुझे तो इन धन सेठ से सात धातु, नौ निधान और चौदह रत्न प्राप्त हुए हैं। महाराजा, मैं आपसे विनम्र विनती करता हूँ कि इस धन श्रेष्ठि को आप औरों की तरह सामान्य व्यापारी मत समझना । मैं कई नगरों में घूमा हूँ... घूमता हूँ... पर ऐसा व्यापारी मैंने कहीं पर नहीं देखा है!
राजा देवनंदि की बातें सुनकर बड़ा ही प्रसन्न हुआ। राजा ने देवनंदि का कीमती वस्त्र व अलंकार देकर स्वागत किया।
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