Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ तेजमतूरी का कमाल 'धन सेठ, तुम्हें तुम्हारा नगरसेठ का पद मैं वापस करता हूँ।' यों कहकर सेठ के सिर पर सुंदर पगड़ी बंधवाई और कीमती वस्त्र भेंट किये। देवनंदि को साथ लेकर धन सेठ अपनी दुकान पर आये। देवनंदि बड़ा ही चतुर व्यापारी था। उसने धन सेठ के सामने देखा और सुवर्ण का बिजोरा निकाल कर सेठ के सामने भेंट कर दिया। धन सेठ ने कहा : 'महानुभाव, यह भेंट इस कुमार के सामने रखो... मेरा सारा कारोबार ये ही देखते हैं। तेजमतूरी के जानकार भी ये ही हैं!' । देवनंदि ने दूसरा सुवर्ण बिजोरा निकाल कर कुमार को भेंट किया। देवनंदि सोचता है : 'सचमुच, धनसेठ कितने विनम्र और विवेकी हैं! साथ ही चतुर भी हैं। अपने से छोटे आदमी की भी कद्र करते हैं! जिस नगर में ऐसे श्रेष्ठि रहते हों वह नगर और देश धन्य बनता है!' देवनंदि ने श्रेणिककुमार की ओर देखा... गौर से देखा... उसे श्रेणिक का चेहरा कुछ परिचित सा दिखाई दिया। उसने कुछ याद किया और वह बोला : 'कुमार, मैंने तुम्हें कहीं देखा है... शायद राजगृही में देखा है।' कुमार यह सुनकर चौंक पड़ा। उसने चालाकी से जवाब दिया... 'अरे बड़े सेठ! 'राजगृह' यानी राजा का घर! घर यानी बंधन! मैं तो चाहता हूँ कि राजा का बंधन मेरे दुश्मन को भी नहीं हो! पर मेरे सेठ... यदि तुम्हें ऐसी बातें ही करनी हो तो और किसी दुकान पर जाइये... वहाँ से जो माल चाहिए ले लीजिए...। मैं भला क्यों राजा के बंधन में होऊँगा?' बेचारा देवनंदि घबरा गया । वह श्रेणिक के पैरों में गिर गया। उसने कहा : 'मुझे माफ कर दीजिए... ऐसे शब्द मुझे नहीं बोलने चाहिए थे! फिर भी मुँह से निकल गये... मैं क्षमा माँगता हूँ।' श्रेणिक ने हँसकर कहा : 'सेठ, बुरा मत मानना... यह तो दो पल मजाक कर लिया! चलिए... अब मैं आपको तेजमतूरी बताता हूँ| पहले तेजमतूरी में से सोना बनाने की रीत समझाता हूँ : पहले आधा तोला तेजमतूरी को आग में डालने की। उसमें बीस तोला तांबा डालने का... तेजमतूरी के संयोजन से तांबा सोने में बदल जाएगा।' देवनंदि ने कहा : 'मुझे तेजमतूरी दिखाइये।' For Private And Personal Use Only

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