Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेजमतूरी का कमाल २४ 'महाराजा, अपने नगर में तो कहीं भी तेजमतूरी मिले ऐसा हमें तो प्रतीत नहीं होता!' राजा ने उदास होते हुए कहा : 'जहाँ पर सभी चीज-वस्तुएँ मिलती हों... जहाँ पर बड़े-बड़े श्रीमंत व्यापारी धंधा करने के हेतु आवाजाही करते हों, वही नगर कहलाता है! जहाँ सब वस्तुएँ उपलब्ध न हों... जहाँ बड़े व्यापारी आते-जाते न हों... उसे नगर कैसे कहा जा सकता है? वह तो खेड़ा-गाँव कहलाता है!' महामंत्री ने कहा : 'महाराजा, निराश होने की जरूरत नहीं है... अपना नगर काफी बड़ा है... हो सकता है किसी के घर में तेजमतूरी मिल भी जाए! हम तलाश करवाने के लिए ढिंढोरा पिटवा दें... शायद तेजमतूरी हाथ लग जाए!' 'कुमार, राजा की आज्ञा से महामंत्री ने यह ढिंढोरा पिटवाया है!' श्रेणिक ने तुरंत धन सेठ से कहा : 'आज जरूर आपका पुण्योदय होनेवाला है। गई हुई सारी संपत्ति वापस आ मिलेगी। नगरसेठ का पद वापस मिलेगा। सारी इज्जत, शान-शौकत घर ढूंढ़ते हुए स्वयं चली आएगी! आप एक काम करें... जाकर इस ढिंढोरे की चुनौती स्वीकार कर लें!' सेठ दुकान से खड़े हुए। श्री नवकार मंत्र का स्मरण किया और वे चौराहे पर आये | जाकर उस ढिंढोरे को स्पर्श करके स्वीकार कर लिया। ढिंढोरा पीटनेवाले आदमियों ने जाकर राजा से निवेदन किया कि 'महाराजा, धन सेठ ने ढिंढोरा स्वीकार कर लिया है।' 'अरे! वाह! धन सेठ ने ढिंढोरा स्वीकार किया है।' पर उस मुफलिस के पास है क्या? उसकी सारी संपत्ति तो मैंने जप्त कर ली है... उसके पास तो पत्थर भी नहीं होंगे! होगी तो मिट्टी होगी इसके पास! लगता है... उसकी संपत्ति जाने से या तो वह होश में नहीं है! या फिर नींद में से उठकर सोचे समझे बगैर ढिंढोरे को स्वीकार कर लिया लगता है! ठीक है... पहले उसे मेरे पास बुला लाओ... मैं उनकी तेजमतूरी देखूगा। बाद में उस परदेशी व्यापारी देवनंदि के साथ परिचय करवाऊँगा!' राजसेवक धन सेठ की दुकान पर गये। For Private And Personal Use Only

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