Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुनन्दा २१ सेठ ने कहा : ___ 'मेरी बेटी सुनंदा को स्वीकार करें| वह तुम्हें दिल से चाहती है! अरे! मन ही मन तो वह तुम्हारा वरण कर ही चुकी है। अब यदि तुम उसके साथ शादी करने का इन्कार करोगे तो वह संसार का त्याग करके साध्वी बन जाना पसंद करेगी... पर और किसी के साथ शादी का विचार भी नहीं करेगी!' कुमार सोच में डूब गया! 'लड़की विवेकी है... धर्म की रुचिवाली है... और शीलवती है!' उसके दिल में सुनंदा के प्रति स्नेह तो पैदा हो ही गया था! फिर भी लड़की के दिल की बात जानने के लिए... उसने अपने मनोभावों को छुपाते हुए सेठ से कहा : __'महानुभाव, यह तुम्हारी लड़की तो कुछ पागल सी लगती है...। अरे, मेरा नाम-ठाम जाने बिना, कुल और गोत्र जाने बिना मेरे साथ शादी करने की बात कर रही है... यह क्या उसका पागलपन नहीं है? यह तो पूरी जिन्दगी का सवाल है... इसलिए पूरी संजीदगी से सोचना चाहिए।' इतने में सुनंदा और उसकी माँ भी आकर समीप में नम्रतापूर्वक बैठ गये। कुमार की बात सुनकर सुनंदा नीची निगाहें रखती हुई बोली : 'पिताजी, ठीक है... उन्हें जो कहना हो सो कहें... मुझे पागल कहें या कम अक्ल की मानें... पर मेरा भी एक सवाल है... क्या राजहंस का भी कोई कुल पूछने जाता है? पिताजी, उनकी भाषा... उनकी आकृति ही उनकी उत्तमता की सूचक है!' कुमार मन में सोचता है : 'सचमुच यह लड़की तो राजहंसी जैसी ही है! राजहंसी को जैसे मानसरोवर ही भाता है... वैसे ही यह लड़की मुझे पसंद कर रही है। उसे मुझसे भीतर का सच्चा प्रेम हो गया है! फिर भी... मैं इससे पूर्वी तो सही कि मेरे साथ ही शादी करने की जिद का कारण आखिर क्या है?' कुमार ने सुनंदा से कहा : 'कुमारी... मैं तो अनजान परदेशी हूँ... आज यहाँ तो कल कहाँ? मेरा मिलना तो बादलों की छाँव सा है! मेरे साथ शादी रचाने में फायदा क्या होगा?' सुनंदा का चेहरा चमक उठा... उसने कहा : 'आपकी बात सही है... बादलों के आधार पर ही तो सूरज और चाँद हैं। For Private And Personal Use Only

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