Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० सुनन्दा 'सुनंदा की माँ, यह श्रेष्ठ वर [श्रेणिककुमार की ओर उंगली कर के अपने घर पर आया है। इधर अपनी बेटी भी विवाह लायक हो गई है। इन दोनों की शादी रचा दी जाए तो कितना अच्छा! मुझे तो यह जोड़ी पसंद है। जैसे कि चन्द्र और रोहिणी! जैसे रति और कामदेव! जैसे कृष्ण और रुक्मणी, जैसे इन्द्र और इन्द्राणी! सुनंदा की माँ! योग बड़ा दुर्लभ प्राप्त हुआ है। शुभ कार्य में तो सैकड़ों विघ्न आते रहते हैं... पर सज्जनों को साहस करना चाहिए! हाँ... एक बात है... इस परदेशी का गाँव-गोत्र या माता-पिता कौन हैं-यह मैं जानता नहीं हूँ... उसे मैं पूछनेवाला भी नहीं। चूंकि इसी शर्त पर वह अपने घर पर आया है!' सेठानी तो चुप रही... पर सुनंदा बोली : 'पिताजी, छोटे मुँह बड़ी बात लगे तो मुझे माफ करना। पर मैं भी न तो उनके गाँव का नाम जानना चाहती हूँ... न मुझे इनके माता-पिता का नाम जानना है... उनके कुल-गोत्र से मुझे कुछ वास्ता नहीं है! यदि वे मुझे स्वीकार करें, मुझे उनके साथ शादी करनी है, अन्यथा पिताजी, मुझे साध्वी हो जाने दो! मुझे दीक्षा दिलवा दीजिए।' सेठानी ने कहा : 'बेटी, तेरे पिताजी और मेहमान पहले स्नान कर लें, देवपूजा कर लें... भोजन कर लें... इसके बाद आराम से बैठ कर सारी बात करेंगे।' सेठानी ने मेहमान को एड़ी से चोटी तक सरसरी निगाहों से देख लिया। उसके मन को भी कुमार अच्छा लगने लगा था। सेठ और कुमार ने स्नान करके देवपूजा की और फिर साथ में भोजन करने के लिए बैठे । सेठानी ने बड़े स्नेह के साथ दोनों को अच्छा-बढ़िया खाना बनाकर खिलाया। दोनों ने शांति से भोजन किया। भोजनोपरांत दोनों चित्रशाला में जाकर बैठे। सेठ ने कुमार से कहा : 'कुमार, तुमने मेरे यहाँ पर आकर बहुत बड़ा उपकार किया है... फिर भी अभी एक और उपकार तुम्हें मुझ पर करना होगा।' कुमार बोला : 'सेठ... मैंने कोई उपकार नहीं किया है! इसमें उपकार काहे का? मैंने तो मेरा कर्तव्य निभाया है! मेरे लायक कुछ भी कार्य हो तो खुशी के साथ कहें... मैं पूरी कोशिश करूँगा आपका हर कार्य करने की!' For Private And Personal Use Only

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