Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुनन्दा १९ 'माँ... मेरी एक बात सुन! तू मुझे कभी-कभी मिठाई खाने के लिए पैसे देती थी ना? मैंने वह पैसे बचाए रखे हैं... वे सारे के सारे पैसे मैं तुझे दे देती हूँ...| तू उसमें से बढ़िया-बढ़िया चीजें ले आ और मेहमान के लिए अच्छामजेदार खाना तैयार कर दे!' ___ 'अरे... वाह रे... मेरी लाड़ली! क्या बात है? आज इतनी उदार हो चली है! वैसे तो कभी मैं खुद पैसे माँगती हूँ तो मुझे ठेंगा बताती है... नाक भौं सिकोड़ती है... और आज खुद सामने चलकर मुझे पैसे दे रही है...! क्या हो गया जो उस परदेशी के लिये तेरे मन में इतना स्नेह उभर आया है?' 'माँ, सच कहूँ?' 'हाँ, बोल ना!' 'माँ... मैं उस परदेशी युवक का मन से वरण कर चुकी हूँ! शादी करूँगी तो उसी के साथ! वरना मैं संसार का त्याग करके साध्वी बन जाऊँगी!' सुनंदा की बहकी-बहकी बात सुनकर उसकी माँ गुस्से से बौखला उठी। चीखती हुई बोलीः ___ 'मरी... तुझे कुछ लाज-शरम है भी या नहीं? तू दुकान में गई ही क्यों? वहाँ तेरा काम क्या था? तू हर किसी सुंदर युवक को देखेगी और शादी करने को तैयार हो जाएगी! हाय... हाय! तू मुई! हाथ से ही गई! पर याद रखना... इस तरह बेशरम होकर जो लड़कियाँ बकवास करती हैं... अंत में वे दुःखी होती हैं! तू तो अपने ऊँचे कुल में पैदा हुई है... फिर भी तू बेहया होकर बकवास कर रही है... कहाँ गई तेरी लाज शरम?' सुनंदा ने कहा : 'ओह माँ! तू शांत हो...! पहले कभी मैंने तुझे इतना भयंकर गुस्सा करते हुए नहीं देखी! आज क्या हो गया तुझे? तू ऐसी बुरी बात मत कर! मैं तेरी पुत्री हूँ। मैंने कुछ भी गलत कार्य नहीं किया है! तू और मेरे पिताजी मुझे इजाजत दोगे तो ही मैं उस युवक के साथ शादी करूँगी-अन्यथा दीक्षा ले लूँगी... यह मेरा पक्का निर्णय है।' माँ-बेटी की बात चल रही थी कि धनसेठ आ पहुंचे। श्रेणिककुमार भी घर के आँगन में आ पहुँचा। धनसेठ ने माँ-बेटी का वार्तालाप सुना था। अपने मन में तनिक सोचकर उन्होंने सेठानी से कहा : For Private And Personal Use Only

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