Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुनन्दा www.kobatirth.org सेठ ने चिंतित स्वर में कहा : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'कुमार, यह तुम क्या बोल रहे हो? तुमने जाने की बात कही ? मेरा दिल तो दहल उठा है तुम्हारी बात सुनकर ! नहीं, तुम कहीं पर भी जाने की बात मत करो। तुम्हारी मीठी और सहानुभूतिभरी वाणी से तो मुझे कितनी शांति मिली है, कितना बल मिला है। मुझे लगता है कि मैंने आपत्तियों का दरिया पार कर लिया है! अब तुम मुझे क्या वापस दुःख के सागर में फेंक देना चाहते हो? नहीं...नहीं...अच्छे - गुणी लोग ऐसा कभी नहीं करते! तुम तो वास्तव में कल्पवृक्ष की भाँति हो! तुम यदि चले जाओगे तो यह धूल, धूल ही रह जाएगी, वह कभी धन नहीं हो सकती ! १७ और कुमार, यह धूल-रेत बेचने से जो भी लाभ होगा उसमें तुम्हारा आधा हिस्सा रहेगा । यदि तुम यहाँ नहीं रहना चाहते तब फिर मैं भी जीकर क्या करूँगा? मुझे तुम्हारे रत्न नहीं चाहिए। मैं तो इस नदी में कूदकर आत्महत्या कर लूँगा ! तुम्हे जाना है तो खुशी से चले जाओ!' सेठ की दर्दभरी विनती सुनकर कुमार का दिल भर आया। उसने कहा : 'सेठ, एक शर्त पर मैं यहाँ रहना पसंद करूँगा !' 'अरे, एक क्या... अनेक शर्त मेरे सर आँखों पर... यदि तुम कबूल करते हो तो!’ यहाँ रहना कुमार ने कहा : 'तुम कभी भी मुझसे नहीं पूछोगे कि मेरे माता-पिता कौन हैं ? मेरा गाँव कौन सा है... और मेरा कुल कौन सा है ? बोलो, हैं ये सारी शर्तें कबूल ? हाँ... तुम मुझे गोपाल कहकर बुलाना... समझना यही मेरा नाम है!' सेठ ने कहा : 'बिल्कुल कबूल है तुम्हारी शर्तें ! मैं तुम्हें कुछ भी नहीं पूछूंगा। मुझे क्या मतलब है ... तुम्हारे माता-पिता या तुम्हारे गाँव के नाम से? मुझे तो तुम्हारी बुद्धि की जरुरत है...! तुमने इस रेत में सोना देखा है.... तुम ही इसे बेचना । जो भी हम कमाएंगे, आधा-आधा बाँट लेंगे!' For Private And Personal Use Only अभी तक न कुमार ने, न सेठ ने दातुन भी किया था ! दातुन करने का समय कभी का हो चुका था । सेठ की लड़की जो कि युवानी की दहलीज पर पाँव रख रही थी, वह एक दातुन व पानी का लोटा लेकर दुकान में आई । वहाँ उसने कुमार को देखा : 'यह कोई मेहमान लगते हैं,' सोचकर लड़की ने दातुन को चीरकर दो

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