Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुनन्दा १५ ३. सुनन्दा धनसेठ ने कहा : 'परदेशी कुमार, यह तो एक जहाज है। कुछ दिन पहले हुई एक दर्दनाक एवं बड़ी शर्मनाक कहानी इसके पीछे जुड़ी हुई है! __यह जहाज समुद्र में जा रहा था। चोरों ने उस जहाज को पकड़ लिया। जहाज के कुछ आदमी तो जान बचाने को समुद्र में कूद पड़े, जबकि कुछ चोरों के हाथ पकड़े गये | चोर लोग जहाज को इस नगर के किनारे पर खींच लाये । चोरों का सरदार मेरे पास आया और ढेर सारी कीमती वस्तुओं से लदे इस जहाज का मेरे साथ सौदा किया। मुझे तब मालूम नहीं था कि यह चोरी का-लूट का जहाज है! मैंने तो कीमत देकर जहाज खरीद लिया। उस जहाज के जो कुछ आदमी समुद्र में कूद पड़े थे... उसमें से दो-पाँच व्यक्ति बच गये । तैरते हुए हमारे नगर के किनारे पर आ पहुँचे। उन्होंने राजा से जाकर अपनी जहाज की लूट के बारे में शिकायत की। राजा ने जहाज की तलाश करवाई। जहाज तो मेरे पास था। राजा मुझ पर बड़े नाराज हुए... मुझे कड़ी सजा दी। मेरा नगरसेठ का पद छीन लिया। मेरी सारी धनसंपत्ति ले ली। सोना-चांदी... जवाहरात, गहने सब ले लिये | अरे, जहाज में जो संपत्ति थी वह भी राजा ने अपनी तिजोरी में भर ली। केवल उस जहाज में जो धूल थी... रेत थी... वह ज्यों की त्यों पड़ी रहने दी! मेरी भयंकर तौहीन हुई। सबके सामने मेरा अपमान हुआ | मेरी इज्जत मिट्टी में मिल गई। मैं उस जहाज को यहाँ पर ले आया हूँ... और दुकान के पीछे के भाग में रख छोड़ा है! और तो क्या करूँ? जहाज में रेती के बोरे भरे थे... उसमें से कुछ रेत निकालकर मैंने इस दुकान के आगे डलवा दी... ताकि बारिश के दिनों में कीचड़ नहीं हो! बाकी के सब बोरे दुकान के कोने में ढेर करके रख दिये हैं!' 'फिर इस जहाज का क्या करोगे?' कुमार ने पूछा। ___ 'पाँच-सात दिन में जहाज को नदी में बहा दूँगा... उसे रखकर करूँ भी क्या? कुमार, वास्तव में मेरा नाम 'धन' है... फिर भी आज मैं निर्धन हो गया हूँ। लोग मेरी मजाक करते हैं। ___ 'यह धन सेठ चोरों का जोड़ीदार है' वैसा इल्जाम मढ़ते हैं। यह सुनकर कुमार, शायद तुम भी मुझ पर हँसोगे... पर मैं क्या करूँ? मुझे कुछ सूझता For Private And Personal Use Only

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