Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धि का बादशाह ८. आठवें रत्न के प्रभाव से विवेक जाग्रत होता है। ९. नौवें रत्न के प्रभाव से शरीर पर किसी भी प्रकार के शस्त्र का प्रहार नहीं होता। १०. दसवें रत्न के प्रभाव से गुरु के बिना भी ज्ञान प्राप्त होता है। ११. ग्यारहवें रत्न के प्रभाव से शस्त्र लगते नहीं है। १२. बारहवें रत्न के प्रभाव से जन्मान्ध व्यक्ति भी देख सकता है। १३. तेरहवें रत्न के प्रभाव से अग्नि में शरीर जलता नहीं है। १४. चौदहवें रत्न के प्रभाव से वस्तु की सत्यासत्य परीक्षा की जा सकती है। १५. पंद्रहवें रत्न के प्रभाव से भूख नहीं लगती... प्यास भी महसूस नहीं होती। १६. सोलहवें रत्न के प्रभाव से आदमी को रास्ते से गुजरते हुए शेर-चीते वगैरह हिंसक पशुओं से सामना नहीं होता! १७. सत्रहवें रत्न के प्रभाव से रूप-परिवर्तन किया जा सकता है | १८. अठ्ठारहवें रत्न के प्रभाव से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं और सभी लोग चरणों में गिरते हैं। कुमार, तू समझदार है... सयाना है। वह पाषाण देखना। अठ्ठारह रत्न लेकर, नाम लिखकर तू उन्हें अपने पास रखना । उन रत्नों की हमेशा पूजा करना । मेरा नाम हमेशा तेरे दिल में रखना। उस नदी के किनारे पर जाकर तू उस वृक्ष की छाया में विश्राम करेगा... इतने में वह पाषाण प्रगट होगा और आकाश में चला जाएगा। कुमार, उन रत्नों का जो प्रभाव मैंने तुझ से कहा है... उसे सच मानना । शंका मत करना । अब तेरे पुण्यकर्म प्रगट होनेवाले हैं... यह जानकर मैंने तुझ से यह बात कही है। २० साल तक इन रत्नों का प्रभाव क्रमशः बढ़ता रहेगा। इसके बाद तो इनका प्रभाव अजब-गजब का बढ़ेगा।' सपना पूरा हो गया। कुमार की आँखें खुली। जगकर उसने अपने इर्दगिर्द देखा। फिर उसने ३०० नवकार मंत्र का स्मरण किया। और इसके बाद वह दक्षिण दिशा की ओर चलने लगा। For Private And Personal Use Only

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