Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बिकना चंदन वृक्ष का www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. बिकना चंदन वृक्ष का ८ कुमार श्रेणिक नदी के किनारे पर पहुँचा । वहाँ उसने देव के कहे मुताबिक दो पेड़ों को आपस में लिपटे हुए खड़े देखा। पेड़ की डाली पर श्वेत पाषाण भी था । श्रेणिक को देव के दिये गये स्वप्न पर पक्का भरोसा हो गया । उसने दोनों हाथ जोड़कर उस पाषाण को नमस्कार किया । पाषाण एकदम सीधे ही कुमार के समक्ष आकर गिरा। उसमें से एक के बाद एक रत्न बाहर निकलने लगे। कुमार ने उन रत्नों के प्रभाव को याद करके सभी रत्नों पर अलग -अलग निशान बना डाले। वह पाषाण आकाश में अदृश्य हो गया । कुमार ने उन रत्नों को अपने उत्तरीय वस्त्र में लपेट लिया और कमर पर कस कर बाँध दिया। कुमार की खुशी दुगनी - चौगुनी हुई जा रही है। वह अपने मन में सोचता है: 'राज्य, संपत्ति, श्रेष्ठ भोगसुख, उत्तम कुल में जन्म, सुन्दर रूप, विद्वता, दीर्घ आयुष्य और शरीर का आरोग्य - यह सब धर्म के ही फल होते हैं, ऐसा मैंने मेरे गुरुदेव से जो सुना है ... वह शत-प्रतिशत सही है । ' कुमार नदी के किनारे-किनारे चलने लगा। उसे अब जोरों की भूख लगी थी। उसने किनारे पर चंपक, अशोक, पुन्नाग, माकंद और रायन के पेड़ देखे । उसके मन को पेड़ भाये । वह उन पेड़ों के बारे में जानता था । किस पेड़ का फल खाया जा सकता है... और किस पेड़ का नहीं, यह वह भलीभाँति जानता था। उसने जी भरकर फल तोड़े और पेट भरकर खाये। नदी का मीठा पानी पिया... और किनारे पर अठखेलियाँ करते मृगशावकों के साथ खेलता-खेलता वह आगे बढ़ा । रात उतर आई जमीन पर । उसने नदी के किनारे पर ही एक सुहावन पेड़ की छाया में मुलायम पत्तों का बिछौना बनाकर आराम करने की तैयारी की । परमात्मा का स्मरण करते-करते वह लेट गया। कुछ देर में तो श्रेणिक गहरी नींद लेने लगा। निर्भय और निश्चिंत आदमी को जंगल में भी मीठी नींद आ जाती है। For Private And Personal Use Only इस तरह दिन बीतने लगे। रातें गुजरने लगी। कुमार आगे ही आगे बढ़ता जाता है। पेड़ों के फल खाता है... नदी का मीठा जल पीता है... पर्वतों पर से, चट्टानों पर से गिरते और बहते हुए झरनों को देखता है... मयूरों का नृत्य देखकर उसका जी मचल उठता है । यह सुख... यह आनंद... उसे लगता है इसके आगे राजमहल का सुख तो तुच्छ है...!!!

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