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बुद्धि का बादशाह
राजा प्रसेनजित सूक्ष्म बुद्धि के धनी थे। उन्होंने शुद्ध घी के बढ़िया-ताजे खाजे बनवाये और उन्हें बाँस की टोकरियों में भरवाये । वे टोकरियाँ एक बड़े खंड में रख दी गई। फिर मिट्टी के नये घड़ों में पानी भरवाकर घड़ों के मुँह बंद करवा कर उसी हॉल में रखवाये। तत्पश्चात् राजा ने अपने सौ बेटों को बुलवाया। बुलाकर के बड़े प्यार से उन्हें कहा :
'मेरे प्यारे बेटों, तुम इस कमरे मे रहो। तुम्हें यहाँ पर न तो भूखा रहना है... न ही प्यासा रहना है। इन टोकरियों में खाने की चीजे हैं और मटकों में पानी है। पर एक बात का ध्यान रखना। इन टोकरियों को खोलना नहीं और मटकों का मुँह भी नहीं खोलना ।' ___ सभी पुत्रों को खंड में बिठाकर खंड के दरवाजे राजा ने बंद करवा दिये। सभी राजकुमार मुसीबत में आ गये! यह क्या मजाक है? टोकरी खोलने की नहीं और खाने का... मटके का मुँह खोलने का नहीं और पानी पीने का?
यह संभव कैसे हो सकता है? सभी राजकुमार एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे! मगर श्रेणिक के चेहरे पर एक भी शिकन नहीं उभरी थी। ऐसा लगता था... जैसे उसे कोई उपाय मालूम है। सभी ने श्रेणिक की ओर नजरें उठाई। श्रेणिक की आँखों में चमक उभरी और उसने ९९ भाईयों से कहा :
'एक बात है... यदि तुम सब मेरी बात मानते हो तो मैं तुम्हें खिला भी सकता हूँ... पानी पिला भी सकता हूँ... पर मेरा कहा करना होगा।'
९९ भाईयों ने अनुनयभरी आवाज में कहा 'हम तो तुम जैसा कहो... वैसा करने के लिए तैयार हैं। हमें तो जोरों की भूख लगी है... और पानी के बिना तो गला इतना सूख रहा है... जैसे कि जान निकल जाएगी!'
श्रेणिक ने वहाँ पर रखे हुए पानी के प्रत्येक मटके पर महीन कपड़ामलमल का टुकड़ा लपेट दिया। उसने कुमारों से कहा : __ 'ये कपड़े बारीक हैं... पतले हैं... इसलिए जल्दी गीले हो जाएंगे। मटके नये हैं... इसलिए पानी भी बूंद-बूंद बनकर रिसता रहेगा...। जैसे ही कपड़ा गीला हो, तुम कपड़े को निचोरकर पानी पी लेना। तुम इस तरह पानी पीओ, इतने में मैं तुम्हें टोकरी में से खाजा कैसे निकालना यह बताता हूँ।
९९ कुमार प्रसन्न हो उठे | मटके पर कपड़े गीले होने लगे और सभी कुमार कपड़े को निचोरकर पानी पीने लगे।
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