Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 11
________________ ऐसे समयमें जैनियोंने भी कुछ उद्योग किया है; परन्तु अन्य कई समाजोंकी अपेक्षा जैनजाति अभी उन्नति के मार्ग से कोसों दूर है, इसका मुख्य कारण यह है कि विद्याकी उन्नति पर हर प्रकार की उन्नति निर्भर है जिसकी भ. भी समाजमें बड़ी प्रावश्यशता है । धन्य है सरकार गवर्नमेन्टको कि जिसके सुपबंधसे स्थान २ पर स्कूल कालेजोंकी स्थापना है, परन्तु समाजका कर्तव्य है कि गातीय पाठशालाओं द्वारा धार्मिक, लौकिक वा प्रारम्भिक शिक्षाका प्रचार अधिकताके साथ करे और फिर अपनी सन्तानोंको सरकारी कालिगों में उच्चकक्षाकी शिक्षा दिलाये। क्या अच्छा हो, अगर पञ्चायत अपने सन्तानों के लिये बलात् शिक्षाका नियम पास करे, क्योंकि इस प्रकारका विल भारत सरकार की कौन्सिल में पास होनेको उपस्थित है यह एक दिन अवश्य पास होगा। यदि हम लोग पहिलेही से इसको कार्यमें लावें तो अति उत्तम हो। अगर सबसे प्रथम किमी स्थानकी पंचायत इस प्रकारके मियम प्रचारमें प्रारूढ़ हो तो अन्य समाज के लिये अनुकरणीय हो सकता है। अब मैं भारत सम्राट श्रीमान् पञ्चम जार्ज तथा श्रीमती महारानी मेरी साहिवा व यहां के सुयोग्य शासनकर्ताओं की सेवा में धन्यवाद भेंट करता हूं और यहां पर उपस्थित सज्जनों का ध्यान उपरोक्त विषयों पर आकर्षित करता हुआ अपने भाषण को समाप्त करता हूं और भाशा रखता हूं कि आप धार्मिक तथा लौकिक उन्नतिके अर्थ उत्तम २ विचार प्रकट करेंगे तथा उनको वर्ताव में लाने की चेष्टा भी करेंगे, यही मेरी प्रांतरिक अभिलाषा है। इति ॥ ___ सभापतिका भोषण समाप्त होते ही कंवर साहवका परिचय सर्व साधारण को कराया गया और आप तालियों की गड़गड़ाहट व हर्ष ध्वनि के साथ स्वामी दर्शनानन्द जी के जैनियों के मोक्ष विषयक व्याख्यान की स. मीक्षा करने को सड़े हुये । आपने अपने व्याख्यानमें प्रथम ही जीव और उस के बन्ध की सिद्धि करते हुए मोक्ष की विस्तृत व्याख्या की और उन सर्व आक्षेपों का यथोचित उत्तर दिया जो कि २७ जून को स्वामी जी ने उस पर किये थे। कंवर साहव के व्यापान में ही अजमेर के आर्य समाजी भाइयों ने अपना निम्न विज्ञापन अर्थात् ॥ ओ३म् ॥ . कुंवर दिग्विजयसिंहकी समीक्षाका खण्डन ॥ -

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