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प्रवचनसार अनुशीलन
जैसे छेरी गाय भैंस ऊँटनी के दूध घृत, तामें चिकनाई वृद्धि क्रमतें प्रकास है। धूलि राख रेत की रुखाई में विभेद जैसे,
तैसे दोनों भाव में अनंत भेद भास है ।। ३७।। पौद्गलिक परमाणु में रूक्षता और चिकनाई एक अंश से लेकर भेदों की अनेक राशियाँ आगम में बताई गई हैं। एक-एक बढ़ते हुए अनंत तक भेदों का विस्तार है। इसीकारण उसमें स्वयं परिणमन की शक्ति विद्यमान है। जिसप्रकार बकरी, गाय, भैंस और ऊँटनी के दूध-घी में चिकनाई क्रमश: बढ़ती हुई पायी जाती है और धूल, राख और रेत की रूक्षता में भेद होता है; उसीप्रकार पुद्गल की रूक्षता और स्निग्धता में अनंत भेद पड़ते हैं।
पुग्गल की अनु चीकनाई वा रुखाईरूप,
आपने सुभाव परिनाम होय परनी । अंशनि की संख्या तामें सम वा विषम होय,
दोय अंश बाढ़ही सों बंधजोग वरनी।। एक अंश घटे बढ़े बँधत कदापि नाहिं,
ऐसो नेम निहचै प्रतीति उर धरनी । चीकन रुखाई अनुखंध हू बँधत ऐसे,
आगमप्रमान तैं प्रमान वृन्द करनी ।। ३८ ।। वृन्दावन कवि आगम प्रमाण के आधार पर यह बात कहते हैं कि पुद्गलाणु की चिकनाई व रूखाई अपने स्वभाव के अनुसार परिणमित होती है। उसके अंशों की संख्या या तो सम होती है या विषम होती है। सम का सम के साथ और विषम का विषम के साथ दो अंश अधिक होने पर बंध होता है । यदि इसमें एक अंश भी घट-बढ़ जावे तो फिर बंध नहीं होता। ऐसा निश्चित नियम है - इस बात का विश्वास करना चाहिए।
(दोहा)
दोय चार षट आठ दश, इत्यादिक सम जान ।
तीन पाँच पुनि सात नव, यह क्रम विषम बखान ।। ३९ । ।
गाथा - १६३-१६५
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चीकनताई की अनू, सम अंशनि परमान । दोय अधिक होतें बँधै, यह प्रतीत उर आन ।। ४० ।। रुच्छ भाव के जे अनू, ते विषमांश प्रधान । दोय अधिक तैं बँधत हैं, ऐसें लखो सयान । । ४१ । । अथवा चीकन रूक्ष को, बंध परस्पर होय । दोय अंश की अधिकता, जोग मिलै जब सोय ।। ४२ ।। एक अनू इक अंशजुत, दुतिय तीनजुत होय । जदपि जोग है बंध के, तदपि बँधे नहिं सोय ||४३|| एक अंश अति जघन है, सो नहिं बँधै कदाप । नेमरूप यह कथन है, श्रीजिन भाषी आप ।। ४४ ।। दो, चार, छह, आठ और दश आदि अंकों को सम जानो और तीन, पाँच, सात और नौ अंकों को विषम का क्रम कहा गया है।
चिकनाई वाले अणु सम अंशों के अनुसार दो अधिक होने पर बंध हैं - हृदय में यह विश्वास करो।
रूक्ष भाववाले जो परमाणु हैं, उनमें विषम अंशों की प्रधानता है। इनका भी दो अंशों की अधिकता के साथ ही बंध होता है। चतुर लोग ऐसा जानते हैं ।
अथवा चिकने और रूखे परमाणुओं का परस्पर में जो बंध होता है, वह भी दो अंशों की अधिकता के आधार पर ही होता है।
एक अंशवाला एक अणु हो और दूसरा अणु तीन अंशवाला हो तो ये दोनों यद्यपि बंध के योग्य हैं, तथापि बँधते नहीं हैं।
एक अंश यदि अत्यन्त जघन्य हो तो वह कभी भी बंधता नहीं है। यह बात सुनिश्चित है - ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है।
पण्डित देवीदासजी भी इन गाथाओं का १ छप्पय, १ कवित्त और १ सवैया इकतीसा में इसीप्रकार विस्तार से स्पष्ट करते हैं, जो मूलतः पठनीय है । पुनरावृत्ति के भय से यहाँ देना उचित प्रतीत नहीं होता ।