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प्रवचनसार अनुशीलन यह पुद्गलदरवरचित सरव, पुग्गल करता जानिये । चिनमूरति यातै भिन्न है, ताहि तुरित पहिचानिये ।।५०।। दो प्रदेश से लेकर अनंत प्रदेशों तक के परमाणुओं के सूक्ष्म और स्थूल आकारों के स्कंध; जिनमें पृथ्वी, जल, अग्नि और हवा शामिल हैं; वे सभी स्कंध इसी सूक्ष्म और स्निग्ध स्वभाव के कारण ही उत्पन्न हुए हैं।
यह सब पुद्गलद्रव्य से निर्मित हैं और पुद्गल ही इनका कर्ता है; चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा इनसे पूर्णत: जुदा है। यदि आत्मकल्याण की भावना हो तो उसे तत्काल पहिचानना चाहिए, जानना चाहिए।
पण्डित देवीदासजी इन गाथाओं के भाव को ३ छप्पय, ३ दोहों - इसप्रकार ६ छन्दों में उसीप्रकार विस्तार से स्पष्ट करते हैं, जैसे कि ऊपर स्पष्ट किये जा चुके हैं।
आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी इन गाथाओं के भाव को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
“पाँच अंश चिकने परमाणु के लिए पाँच अंश रूखा दूसरा परमाणु रूपी है और बाकी के सब परमाणु उसके लिए अरूपी हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि विसदृश जाति के समान अंशवाले परमाणु परस्पर रूपी हैं; सदृश जाति के अथवा असमान अंशवाले परमाणु परस्पर अरूपी हैं।'
जघन्य एक अंशवाले परमाणु को छोड़कर दो अंशवाला हो या तीन अंशवाला हो, उसमें दो अधिक अंशवाला परमाणु रूखा, रूखे के साथ, चिकना चिकने के साथ और चिकना रूखे के साथ परस्पर पिंडरूप होता है। ____ मात्र एक अंशवाले परमाणु में जघन्यभाव होने के कारण स्कंधरूप होने की योग्यता नहीं है; अतः एक अंशवाला चिकना या रूखा परमाणु तीन अंशवाले चिकने या रूखे परमाणु के साथ नहीं बंधता ।
एक अंशवाले को छोड़कर दो परमाणुओं के बीच में दो अंश का १. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-१७८ २. वही, पृष्ठ-१७८
३. वही, पृष्ठ-१७९
गाथा-१६६-१६७
२९७ अंतर हो तो ही वे बंधते हैं। दो से अधिक या कम अंश का अंतर हो तो बंध नहीं होता। जैसे कि पाँच अंशवाला सात अंश वाले के साथ बंधता है; पर आठ अंशवाले या छः अंशवाले के साथ नहीं बंधता।'
स्कंध स्वयं की विशिष्ट अवगाहनशक्ति के कारण सूक्ष्म और स्थूल रूप होता है। शरीर, लकड़ी आदि स्थूल स्कंध हैं और भाषावर्गणा, कार्मणवर्गणा आदि सूक्ष्म स्कंध हैं। ___ स्कंधों में स्वयं में खास अवगाहन विशिष्ट शक्ति है, इसीकारण से सूक्ष्म और स्थूलरूप धारण करते हैं। आत्मा उनका कर्ता-हर्ता है ही नहीं। आत्मा है; इसलिए शरीरादि की, लकड़ी की या मकान आदि की स्थूल अवस्था होती है, यह बात पूर्णतया मिथ्या है। स्थूल अथवा सूक्ष्म किसी भी स्कंध का कर्त्ता, हर्ता या प्रेरक आत्मा है ही नहीं।
वे स्कंध स्वयं की विशिष्ट आकार धारण करने की शक्ति के कारण विचित्र आकार धारण करते हैं। उस आकार के होने में आत्मा कारण नहीं है। मिट्टी के पिण्ड में से घड़े का आकार होता है, वह मिट्टी के कारण ही होता है; कुम्हार के कारण नहीं। निमित्त आए तो आकार बदलता है और निमित्त न आए तो आकार नहीं बदलता - ऐसा मानना बहुत बड़ी भूल है।
इसप्रकार निश्चित होता है कि दो परमाणुओं के स्कंध से लेकर अनंतानंत परमाणुओं के स्कंध तक सभी स्वयं के कारण परिणम रहे हैं, उनका कर्ता आत्मा नहीं है। अज्ञानी जीव मानता है कि मैं हूँ तो पुद्गलों की अवस्था होती है; परन्तु यह उसका भ्रम है। संयोगी दृष्टिवाला जीव हमेशा स्व तथा पर - दोनों को संयोग दृष्टि से देखता है। परन्तु यह आत्मा पर के संयोग रहित. निमित्त और विकार से भी रहित है, जो जीव अपने आत्मा को ऐसे ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव से देखता है, वह पर पदार्थों को भी उनके स्वभाव से देखता है।
१. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-१७९ २. वही, पृष्ठ-१८१
३. वही, पृष्ठ-१८३