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प्रवचनसार अनुशीलन रूक्ष परमाणुओं के अर्थात् एक स्निग्ध और एक रूक्ष परमाणु के परस्पर बंध होता है - यह प्रसिद्ध है। कहा भी है -
"णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुक्खाय पोग्गला। णिद्धलुक्खा य बझंति रूवारूवी य पोग्गला।।" "णिद्धस्सणिद्धेणदुराहिएणलुक्खस्सलुक्खेणदुराहिएण।
णिद्धस्सलुक्खेण हवेदिबंधोजहण्णवजेविसमेसमेवा॥" पुद्गल 'रूपी' और 'अरूपी होते हैं। उनमें से स्निग्ध पुद्गल स्निग्ध के साथ बँधते हैं, रूक्ष पुद्गल रूक्ष के साथ बँधते हैं, स्निग्ध और रूक्ष भी बँधते हैं । जघन्य के अतिरिक्त सम अंशवाला हो या विषम अंशवाला हो, स्निग्ध का दो अधिक अंशवाले स्निग्ध परमाणु के साथ, रूक्ष का दो अधिक अंशवाले रूक्ष परमाणु के साथ और स्निग्ध का (दो अधिक अंशवाले) रूक्ष परमाणु के साथ बंध होता है।
किसी एक परमाणु की अपेक्षा से विसदृशजाति का समान अंशोंवाला दूसरा परमाणु 'रूपी' कहलाता है और शेष सब परमाणु उसकी अपेक्षा से 'अरूपी' कहलाते हैं। जैसे - पाँच अंश स्निग्धतावाले परमाणु को पाँच अंश रूक्षतावाला दूसरा परमाणु 'रूपी' है और शेष सब परमाणु उसके लिए 'अरूपी' हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि - विसदृशजाति के समान अशंवाले परमाणु परस्पर 'रूपी' हैं और सदृशजाति के अथवा असमान अंशवाले परमाणु परस्पर 'अरूपी' हैं।
इसप्रकार विशिष्ट अवगाहनशक्ति से सूक्ष्म या स्थूल तथा विशिष्ट आकार धारण करने की शक्ति से अनेक प्रकार आकार धारण करनेवाले द्विप्रदेशादिक स्कंध अपनी योग्यतानुसार स्पर्शादि चतुष्क के आविर्भाव
और तिरोभाव की स्वशक्ति से पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुरूप अपने परिणामों से ही होते हैं। ___इससे निश्चित होता है कि द्विअणुकादि अनंतानंत पुद्गलों का पिण्डकर्ता आत्मा नहीं है।"
गाथा-१६६-१६७ ___ आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति में इन गाथाओं के भाव को तत्त्वप्रदीपिका के समान ही स्पष्ट करते हैं। यहाँ तक कि उदाहरण के रूप में भी वे ही गाथायें उद्धृत करते हैं; जो तत्त्वप्रदीपिका टीका में उद्धृत की गई हैं।
इन गाथाओं के भाव को कविवर वृन्दावनदासजी १ मनहरण, १ छप्पय और ४ दोहे - इसप्रकार कुल मिलाकर ६ छन्दों में प्रस्तुत करते हैं; जिनमें दोहे और छप्पय इसप्रकार हैं
(दोहा) चीकन की सम अंश तें, विषम अंश तैं रुच्छ । दोय अधिक होतें बँधैं, पुग्गलानु के गुच्छ ।।४६।। चीकनता गुन की अनू, पाँच अंशजुत जौन । सात अंश चीकन मिलै, बंध होतु है तीन ।।४७।। चार अंश जुत रुच्छ सों, षट जुत सों बँध जात । यही भाँति अनंत लगु, जानों भेद विख्यात ।।४८॥ दोय अनू अंशनि गिनें, होहिं बराबर जेह।
ताको बँध बँधै नहीं, यों जिनवैन भनेह ।।४९।। चिकने में सम अंशों में और रूखे में विषम अंशों में एक से दूसरे में दो अंश अधिक होने पर पुद्गल परमाणुओं में बंध होता है, उनसे स्कंध बन जाते हैं, गुच्छे बन जाते हैं। जो चिकनाई गुण का अणु पाँच अंशवाला हो, वह सात अंशवाले चिकने अणु से बंध जाता है। चार अंशवाला रूक्ष गुण छह अंशवाले से बंध जाता है। इसीप्रकार अनन्त तक बंधन की प्रक्रिया जानना चाहिए।
दोनों अणुओं के अंश यदि बराबर हों तो उनमें परस्पर बंध नहीं होता है - ऐसा जिनेन्द्र भगवान कहते हैं।
(छप्पय) दो प्रदेश आदिक अनंत, परमानु खंध लग। सूच्छिम-बादररूप, जिते आकार धरे जग ।। तथाअवनिजलअनल,अनिलपरजायविविधगन। ते सब निग्धरु रुच्छ, सुभावहितै उपजे भन ।।