Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 22
________________ प्रतिक्रमण विधि संग्रह श्री वत्साकार-प्रतिक्रमण मण्डली गुरु पीछे से आकर अपने स्थान पर बैठे उनसे पूर्व ही दूसरे साधु बांयी ओर के सष्टि मार्ग से और दायीं ओर के अपसव्य मार्ग से होकर अपने अपने स्थानों में जाकर बैठ जाते हैं। आवश्यक चर्णि के आधार पर देवसिक प्रतिक्रमण विधि सूर्यास्त के बाद तुरन्त आवश्यक किया जाता है । आवश्यक ' निर्व्याघात होता है और व्याघातिम भो। अगर आवश्यक निर्व्याघात हो तो गुरु के साथ सब साधु आवश्यक करते हैं। अगर गुरु श्रावकों के सामने धर्मकथा कहने में व्याप्त हो तो गुरु और उनका निषद्याधर दोनों बाद में कायोत्सर्ग करते हैं, शेष साधु गुरु को पूछकर गुरु स्थान के पीछे निकट और दूर यथारात्निक के क्रम से जिसका जो स्थान आता हो वह वहां जाकर बैठ जाते हैं। - 'गुरु पच्छा ठायतो, मझेण गओ सटाणे ठायति, जे वामतो ते प्रणंतरं सवेण गंतु सट्ठाणे ठायंति जे दाहिण प्रो अणंतरमवसव्वेणं तं चेव अणागतं ठायंति, सुत्तत्थज्झरण हेतु, तत्थ य पुत्वमेव ठायंता करेमि भने सामाइ” इति सुतं करेंति, जाहे पच्छा गुरु सामाइयं करेंति ताहे पुवट्टितावि तं सामाइयं करेंति सेसं कंठं। जो होज्जा ॥१४६४।। परिसंतो प्राधूर्णकादि सोविसज्झाय- झाण परो अच्छति,

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