Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 35
________________ [२८ प्रतिक्रमण विधि संग्रह अब आगे की प्रतिक्रमण विधि कहते है । उसके बाद शेष प्रतिक्रमण विधि इस प्रकार है-"तो उठ्ठियपक्खपडिक्कमणसुत्त. कित्तणावसाणे विहिणा निसिइत्ता “करेमि भंते सामाइयं" इत्यादि सव्वं निविट्ठपडिक्कमणं कड्डित्ता उद्घट्ठिआ "तस्स धम्मस्स अब्भुठ्ठिओ मित्ति" एवमाद्यम् वदामि जिणे चउव्वीसं" ति आलावगषज्ज-. वसाणं सुत्तं कढ्ढन्ति । कढिए य "करेमि भंते सामाइय" इच्चाइ काउस्सग्गदंडगुच्चारणपुरस्सरं उद्धट्ठिया चेव मूलुत्तर गुणेमु. . जंखडियं तस्स पायच्छित्त निमित्तं उस्सास सयतिगपरिमाणं काउ.. स्सग्ग करेंति । तत्थ बारस उज्जोयगरे चिन्तन्ति । चउमासिये. पञ्चसडस्स समारणं, उज्योगरे वीसं, संवच्छरिए अट्ठत्तरसहस्सुस्सासमाण उज्जोयगरे चालीसं, नमोक्कारं च चिंतन्ति ।" तओ विहिणा पारित्ता चउवीसत्थय पढंति, पच्छा उवतिट्ठामुहणं' तगं कायंच पडिलेहित्ता किइकम्पं करेंति । तो धरणीयलनिहिय जाणुकरयलुत्तमंगो समगं भणंति-"इच्छामि खमासमणो अब्भुट्ठिओमि अब्भितरपक्खियं खामे पन्नरसहं दिवसाणं पन्नरसहं राईणंजकिचि"xxx बाद में खड़े-खड़े पक्षप्रतिक्रमण सूत्र बोलें, अन्त में विधिपूर्वक बैठकर 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि सर्व निविष्ट प्रतिक्रमण सूत्र कह कर खड़ा होवे । 'तस्स धम्मस अब्भुठियोमि' इत्यादि से लेकर 'वंदामि जिणे चउव्वीसं' यहाँ तक अन्तिम पालापक बोलकर "करेमि भंत सामाइग.” इत्यादि कायोत्सर्ग दण्डक पढ़कर मूलोत्तर गुणों में जो कुछ खण्डित हुआ हो उसके प्रायश्चित के निमित्त ३०० श्वासोच्छ वास परिमाण कायोत्सर्ग कर कायोत्सर्ग में १२ उद्योतकरों का . चिन्तवन करना, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण के कायोत्सर्ग में ५०० श्वासोच्छ्वास परिमाण वाला २० उद्योतकरों का चिंतन करे।

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