Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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प्रतिक्रमण विधि संग्रह खामिति, एवं सावया वि, नवरं "वुड्ढ साव भो भणइ-अमुक प्रमुख समस्त श्रावका ! वांदउ वांदउ वुड्ढो भणइ-अब्भुट्ठियोमि इच्चाइ, इअरे भणंति-अहमवि खामेमि तुब्भे। दोवि भणंति-"पनरसह दिवसाणं, पनरसह्ण राईणं, भण्यां भास्यां मिच्छामि दुक्कडं ।" तनो वंदणं दाउ भणंति-देवसिम आलोइअ पडिक्कंता इच्छा कारेण संदिसह भगवन् पक्खिग्रं पडिक्कमावेह गुरु भणइ-“सम्म पडिक्कमह" तनो इच्छ भणिन "करेमि भंते सामाइयं पुव्वं" इच्छामि पडिक्कमिउ जो मे पक्खियो” इच्चाइ भणिअ "खमासमण पुव्वं पक्खिन सुत्त संभलामित्ति भणिय जहा सत्ति काउस्सग्गाइठिंआकाउंसंभलंति, तओ उव विसिअ सुत्तं भणिअ करेमि भन्ते इच्चाइणां स्सग्गं करिअ' दुबालस उज्जोअगरे चितिति, पारिय चउवीसत्थयं भणइ-पुत्ति पेहिअ वंदणं दाउं इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । अब्भुठ्ठिनोमि समाप्तिखामणेण अभितर पक्खिन खामेउ इच्चाइणा खामिम उठाय भणंति-इच्छाकारेण संदिसंह भगवन् ! पक्खी खामणां खामउ, इच्छ तओ साहुणो खमासमणपुव्वं भूमिट्टि असिरा "इच्छामि खमासमणो" पिनं च भे इच्चाइ. चत्तारि खामणाणि करिति, सवया पुण इक्किक्क नमुक्कारं भणंति इच्छामो 'अणुसढि भणिय पुव्वं व अग्गो देवसिन करिति । (प्राचीन सामाचार्या-पायारमयं वीरं इत्यादिना प्रारब्धायाम् पत्र १०-११) भावार्थ--अब पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि कहते हैं- . मुहपत्ति प्रतिलेखना, संबुद्धा-क्षामण, पाक्षिक अतिचारालोचन, वंदना प्रत्येक क्षामणक फिर वंदन, सामायिक सूत्र, पाक्षिक सूत्रबैठकर प्रतिक्रमण सूत्र, सामायिक सूत्र दण्डक, कायोत्सर्ग । मुख करिमका प्रतिलेखन, वन्दनक, क्षामणक चार, स्तोभवन्दन श्रु तदेवता
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