Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 109
________________ १०२] प्रतिक्रमण विधि संग्रह अब पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि कहते हैं पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी के दिन-किया जाता है। उसमें प्रतिक्रमण सूत्र पर्यन्त प्रथम देवसिक करके फिर सम्यग् रूपसे आगे लिखे क्रमसे करे ॥३४॥ मुख वस्त्रिका को प्रतिलेखना कर वन्दन दे, फिर “सम्बुद्धा' क्षामणक करे, पाक्षिक आलोचना करे, वन्दन देकर प्रत्येक क्षामणक करे । प्रत्येक क्षामणक के बाद फिर वन्दना, फिर पाक्षिक सूत्र पढे ॥३५॥ फिर प्रतिक्रमण सूत्र पढकर खड़ा होकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग पूरा कर मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन पूर्वक वन्दनक दे तथा पर्यन्त क्षामणा करे । तथा चारथोभ वन्दन करे ।।३६॥ . . _ इसके बाद पूर्वोक्त विधिके अनुसार ही शेष दैवसिक प्रतिक्रमण विधि करे, वन्दनादि देकर भवन देवी का कायोत्सर्ग करे और अजित शांतिस्तव पढे-यह भेद है ।।३७॥ इसी प्रकार चातुर्मासिक और सांग्त्सरिक प्रतिक्रमण की विधियां यथाक्रम समझना चाहिये। एवं पाक्षिक, चातुर्मासिक, वार्षिक प्रतिक्रमणों में नाम मात्र की भिन्नता है ।।३।। पाक्षिकादि में क्रमशः बारह, बीस, नमस्कार मंगल सहित चालीस 'लोगस्स' का कायोत्सर्ग होता है। 'संबुद्धा' क्षामणक ३, ५ तथा ७ साधुओं को किया जाता है ॥३७॥ इस प्रकार अल्पमति जिन वल्लभगणिने जो याद था वह लिखा सूत्र विरुद्ध, अथवा आचरणा विरुद्ध लिखा हो उसका मिथ्या-. दुष्कृत देता हूं ॥४०॥ (पडिक्कमणसामाचारी का भाषांतर)

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