Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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[८६
प्रतिक्रमण विधि संग्रह
संबुद्धा खामणए, पण सग चउमास वच्छरे खामे। उस्सग्गुज्जोय बारस, वीसं चत्ता नमुक्कारो॥८॥
देवसिग्र पडिक्कमण सुत्ते भरिणए खमासमण पुव्वं भणइ-देवसिनं आलोए उ पडिक्कंता इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खियं मुहपत्तियं पडिलेहेमि । तो पुत्ति पेहिअ वंदणयं दाउँ इच्छाकारेण संदिसह भगवन ! अब्भुढिओमि संबुद्धाखामणेणं अभितरपक्खियं खामेउ इच्छं खामि पक्खियं--"पनरसा दिवसाण, पनरसल राइआणं, जं किंचि अप्पत्तियं" इच्चाइणा गुरुहिं ठवणायरिय खामिए सत्ताइमुणिसंभवे गुरुपमुहा पंच खामिज्जन्ति, आरओतिन्नि, तओ उठाय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! 'पक्खिग्रं आलोएमि, इच्छं आलोएमि जो मे पक्खिओ" इच्चाइ भणिय अडयारेसु आलोइएसु सव्वस्सवि पक्खि० समुदायेण सावया भणंति पडिकमह चउत्थेणं, इच्छं • तस्स मिच्छामि दुक्कडं । तो वंदणे दिन गुरु भणइ-देवसिग्रं 'आलोइय पडिक्कन्ता इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अब्भुट्टिओमि० .. पत्तेय खामणेण अन्भिन्तर पक्खिन खामे, इच्छ इच्छकारि
अमुक तपोधन ! सो भणइ-"मत्थएण वंदामि'' खमासमण च देइ, गुरुराह-"अब्भुट्ठिओमि पत्ते अखामणेणं-अभितर पक्खि खामेउ सोवि-'अहमवि खामेमि तुम्भेत्ति भणिम भूनिहिअ सिरो भणइ-“इच्छ खामेमि पक्खियं, पनरसह्ण दिवसाणं, पनरसह्ल राईणं जं किंचि अप्पत्ति इच्चाइ, गुरुवि पनरसहं" इच्चाइ “उच्चासणे समासणे वज्ज" भणइ, एवं सव्वेवि साहुणो परस्परं खामेंति, लघुवायणायरिएण सह पडिक्कताण जिट्ठो पढम ठवणा यरियं खामेइ तओ सब्वे वि जहा रायणिए, गुरु प्रभावे सामन्न साहुणो पढमं ठवणा यरिय
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