Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 101
________________ ex प्रतिक्रमण विधि संग्रह वंदित्तु चेइयाइ, दाउ चउराइए खमासमणे । भूनिहियसिरो सयला - इयार मिच्छुक्कड देइ ॥३॥ सामाइय पुव्व-मिच्छामि ठाइउ काउस्सग्गमिच्चाइ । सुत्तं भरिणय पलंविय भुयकुप्परधरियपहिरणओ ||४|| घोडगमाई दोसेहिं विरहिनिं तो करेइ उस्सगं । संजइ १ कविट्ठ २ घण ३ लय ४ लंबुत्तर ५ खलिण ६, सबरि ७ बहु ८ पेहा । वारुणि १० भममुह ११ गुलि १२ सीस १३ सूय १४ हय १५ काय १६ नियल १७ उद्धी १८।५।। थंभाइ १८ दोसरहियं तो कुणइ दुहूसिनो तरगुस्सग्गं ।। नाभि ग्रहो जागुद्ध, चउरंगुलिठवि कडि पट्टो ||६|| तत्थइ धरेइ हियए, जहक्कमं दिणकए श्रईयारे । पारित नमुक्कारेण, पढ़इ चउवीसथयदंडं ॥७॥ संडास पमज्जिय, उवविसिय अलग्गहियय बाहुजुओ । मुहुगं तयं च कायं च, पेह पंचवीस इहा ||८|| उठिय वि (ठ) ओ सविरणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मै । बत्तीस दोसरहिनं पणवीसावस्यविसुद्धि ॥९॥ थद्ध १ पविद्ध २ मणाढिय, ३ परिपिडिय ४ मंकुसं ५ सुव्यत्तं ६ |कच्छभ रिंगिय ७ टोलगय ८ ढढ्ढरं ६ वेइयाबद्ध ।। १० ।। मट्ठ ११ रुद्ध १२ ब्जिय १३ सढ १४ हीलिय १५ तेणियं पडिणीयं च १७ । दिट्ठमदिट्ठ १८ सिंगं १६, कर २० मोयण २१ मूण २२ मूयं च २३ ॥११॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120