Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
परिकढिऊण पच्छा, किइकम्मं काउ नवरि खामंति । श्रायरियाई सब्वे, भावेण सुए तहा भणित्रं ॥ ४६८ | | आयरिय-उवज्झाए, सीसे साहम्मि ए कुलगणे अ. । जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ॥ ४६६ || सव्वस्स समरण संघस्य, भगवओ अंजलि सिरे काउ | सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं प ||४७० ॥ सव्वस्स जीवरासिस्स, भावओ धम्मनिहिय निअचित्तो । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयंपि ॥ ४७१ ॥ X
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खामित्त तओ एवं करिति सव्वे वि नवरमणवज्जं । रे सिमि दुरालोइय - दुप्पडिकंतस्स उस्सग्गं ॥। ४७८ ||
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सामाइय पुव्वगं तं करिति चारित सोहण निमित्त । पिय धम्मवज्जभीरुं, पण्णासुस्सासगपमारणं ॥ ४८३ ॥ ऊसारिऊण विहिणा, सुद्धचरिता थयं पकढत्ता | तउस्सग्गं ।। ४८४ | कढ्ढति तम्रो चेइय-वंदणदंडं दंसण सुद्धिनिमित्तं, उस्सारिऊण विहिणा, कढन्ति सुनाणस्सुसगं करिति सुत्तइयार विसोहणनिमित्तमह पारिउ विहिणा ||४८६ ॥
कति पणवीसगं पमाणेणं ।
सुअत्थवं ताहे ॥ ४८५ ॥
पणवीस गप्प मारणं ।
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सुद्धसयलाइयारा, सिद्धाण थयं पदंति तो यच्छा । पुवरण विहिणा, किइकम्मं दिति गुरुरणो उ ॥ ४८८ ॥ सुकयं आणत्तिमिव, लोए काऊण सुकयकिइकम्मा | चढ्ढतिम्रो थुप्रो, गुरुथुइगहणे कए तिष्णि || ४८७ ||
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