Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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अतिक्रमण विधि संग्रह
प्रतिक्रमण गर्ने हेतु गाथा-कदम्बकगत प्रतिक्रमण विधि--
"नामि दंपणं मि अ, चरणमि तवंमि तह य विरिश्रमि । आयरणं पायारो, इअ एसो पंचहा भणिओ ।।१।। पंचविहायारविसुद्धि-हेउमिह सादु सावगो वावि । पडिकमणं सह गुरुणा, गुरु विरहे कुणइ इक्कोवि ॥२॥ "सावज्जजोगविरई १ उक्कित्तण २ गुणवप्रो अ पडिवत्ती ३। खलिअस्स निंदणा ४ वरण-तिगिच्छ ५ गुणधारणा चेव६ ॥३॥" चारित्तस्स. विसोही, कीरइ सामाइएण किल इहयं । सावज्जेअरजो . गाण, वज्जणाउ सेवणत्तणओ ॥४॥ दसणयारविसोही, चउवीसाइत्थएण किज्जइ अ। अच्चम्भु गुणकित्तण रूवेणं जिणवरिंदाणं ।।५।। नाणाईआउ गुणा, तस्संपन्नपडिवत्तिकरणाओ। वंदणएणं विहिणा, कीरइ सोही अ तेसि तु ।।६।। खलिअस्स य तेसि पुणो, विहणा जनिंदणा इ पडिक्मणं । तेण पडिक्कमणेणं, तेसि पि अ कोरए सोही ॥५॥ चरणाइअइआराणं, जहक्कम वणतिगिच्छ रूवेण । पडिकमणाऽसुद्धाणं, सोही तहे काउसग्गेणं ।।८।। . गुणधारणरूवेणं पच्चक्खाणेण तवाइबारस्स । विरिपायारस्स पुणो, सव्वेहि वि कीरए सोही ।।६।। विणयाहीसा विज्जा, दिति फलं इह परे अ लोगंमि । न फलंति विणयहीणा, सस्साणिव तोयहीणाणि ।।१०।। भत्तीइ जिणवराणं, खिज्जती पुष्व संचि मा कम्मा। आयरिअनमुक्कारेण, विज्जा मंता य सिझति ॥११।।
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