Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ ७२] प्रतिक्रमण विधि संग्रह क्षमाए । "अब्भुट्टिओमि० संबुद्धा खामणेण अन्भिन्तर पक्खिनं . खामेउ" यह पढ़कर श्री गुरु आदि तीन अथवा पांच को खमाए। दो शेष रहे तब तक क्षमाना। बाद में खड़ा होकर "इच्छाकारेण संदिसह भगवन पक्खिग्रं आलोएमि” इच्छं आलोएमि पक्खिग्रं, जो मे पक्खिनो इत्यादि सूत्र पढ़कर संक्षेप से अथवा विस्तार से पाक्षिक अतिचारों की आलोचना करे। “सव्वस्सविपक्खिअ" इत्यादि पढ़कर प्रायश्चित्त ग्रहण करे। फिर वन्दनकदानपूर्वक प्रत्येक क्षमापन कर. वन्दनकदानपूर्वक "देवसिंगं आलोइयं पडिक्कन्ता इच्छाकारेण . भगवन पक्खिग्रं पडिक्कमावेह" गुरु आदेश से 'इच्छ' यह कहकर 'करेमि भंते सामाइय" इत्यादि सूत्र द्वय पाठपूर्वक क्षमाश्रमण देकर कायोत्सर्ग स्थित पाक्षिक. सूत्र सुने और एक साधु सावधान मन से व्यक्ताक्षरों में पाक्षिक सूत्र पढ़े। पाक्षिक सूत्र को समाप्ति के बाद तुरन्त "सुअदेवया भगवई' गाथा पढ़कर बैठकर विधि से निविष्ट पाक्षिक प्रतिक्रमण सूत्र पढ़े। प्रतिक्रमण के अन्त में उठकर शेष कहने योग्य कहकर "करेमि भन्ते सामाइयं” इत्यादि सूत्र पढ़के प्रतिक्रमण में अशुद्ध रहे अतिचारों की शुद्धि के लिये बारह चतुर्विंशतिस्तव चिन्तन रूप कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग को पूरा करके मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन कर वन्दनकपूर्वक "इच्छाकारेण संदिसह भगवन अब्भुद्विोमि समाप्तखामणेणं अभितरपक्खियं खामेउ" इत्यादि बोलकर क्षामणक करे। बाद में चार क्षमाश्रमणों से चार पाक्षिक क्षामणक करे । तदनन्तर गुरु कहे "नित्थारग पारगा होह" तब सब साधु बोले-"इच्छामो अणुसटुिं" उसके बाद वन्दनकद्वय, क्षामणक, फिर वन्दन, गाथा त्रिक के पाठक्रम से दैवसिक प्रतिक्रमण कर। श्रुतदेवता के कायोत्सर्ग के स्थान पर "भवन

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120