Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 80
________________ [७३ प्रतिक्रमण विधि संग्रह देवता" का कायोत्सर्ग करे और स्तव के स्थान पर "अजितशान्तिस्तव" बोले, यह पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि समाप्त हुई। . ____ (इति पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि: १२-१४) · चातुर्मासिक-सांवत्सरिक प्रतिक्रमणयोरपि क्रम एष एव नास्ति विशेषः । नवरं कायोत्सर्गे चातुर्मासिक प्रतिक्रमणे चतुर्विंशतिस्तव विशतिचिन्तनं, सांवत्सरिक प्रतिक्रमणे च चत्वारिंशच्चतुर्विशतिस्तवास्तदन्ते एको नमस्कारश्चिन्त्यते । क्षमणकं च पाक्षिक चातुर्मासिकयोः पंचाना, सांवत्सरिके च सप्तानां श्रीगुर्वादीनां यदि द्वौ शेषौ तिष्ठतः। इतिचातुर्मासिकसांवत्सरिकप्रतिक्रमणयोः क्रमविधिः संक्षेपत उक्तः (१२-१४) "श्री जयचन्द्रगणेन्दै प्रतिक्रमक्रमविधिर्यथावगमम् । लिखितस्तत्रोत्सूत्र, 'यन्मिथ्यादुष्कृतं तस्य ॥२॥ इति किंचित, हेतुगर्भः प्रतिक्रमण क्रमविधिः समाप्तः-- अर्थ-चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणों का भी यही क्रम है कोई ज्यादा अन्तर नहीं। अन्तर मात्र कायोत्सर्ग में है। . . चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में २० उद्योतकरों का चिन्तन किया जाता · है, तो सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में ४० उद्योतकर और उनके ऊपर एक नमस्कार का चिन्तन किया जाता है। अभुट्ठियो क्षामण में पाक्षिक और चातुर्मासिक में ५ जनों को अभुट्ठिया खमाते हैं और सांवत्सरिक में गुरु से लेकर यथारात्निक ७ साधुनों को अब्भुट्टियो से क्षामणक किया जाता है यदि शेष दो रहते हों। इस प्रकार चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणों का संक्षेप से विधि क्रम कहा।

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