Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 65
________________ ५८] प्रतिक्रमण विधि संग्रह . .. तीसरे कायोत्सर्ग में रात्रि सम्बन्धी अतिचारों का यथाक्रम चिन्तन करके कायोत्मर्ग पारते हैं, ऊपर सिद्धस्तव पढ़कर फिर सण्डा सक प्रमाणित करके बैठा जाता है ॥६३॥. इनमें प्रथम कायोत्सर्ग चारित्राचार का, दूसरा दर्शन शुद्धि का और तीसरा श्रुतज्ञान का जिसमें उक्त प्रकार का चिंतन किया जाता है ॥६४॥ फिर पहले की तरह मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना करके वन्दनकदे. फिर आलोचना करे और बाद में प्रतिक्रमण सूत्र पढ़े और फिर वन्दन, फिर क्षमापन और फिर वन्दन फिर तीन गाया पढ़ना और कायोत्सर्ग करना ॥६५॥ भगवान ऋषभदेव १ वर्ष पर्यन्त उपवासो रहे, भगवान् महावीर छः मास तक तपस्या में रहे और विहार किया इन दो तीर्थंकरों की तपस्या के उदाहरण से साधुओं को तप करने का उद्यम करना चाहिये ।।६६।। तप चिन्तवन के कायोत्सर्ग में यह सोचे कि मेरे तप करने से संयम के योगों में हानि न हो उस प्रकार का तप करूं', छमास से लगाकर एक-एक मास एक-एक दिन नोचे उतरता हुंआ ५ मास ४-३, दो मास तक नीचे उतरे । मास में भी दिन घटाता हुआ तेरह दिन कम करे फिर नीचे ३४ भक्त ३२ भक्त इस प्रकार. दो-दो भक्तों की हानि करता हुआ चतुर्थ भक्त तक नीचे उतरे। चतुर्थ भक्त के नीचे प्रायम्बिल यावत् पौरुषी और उसके नीचे नमुक्कार पर्यंत उतरे ॥६७-६८-६९।। नीचे उतरकर जो तप अपने लिये करना शक्य समझे उसको मन में धारण करके कायोत्सर्ग पार कर मुहपत्ति प्रतिलेखना करे

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