Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 66
________________ [ve प्रतिक्रमण विधि संग्रह और दो वन्दनक देकर प्रशठ भाव से मनः चिन्तित तप का विधिपूर्वक प्रत्याख्यान करे ||७|| किर "इच्छामो सट्ट" यह वाक्य पढ़कर बैठकर तीन स्तुतियां पढ़े, प्रभात समय में स्तुति पाठ मन्द स्वर से बोले, ऊपर शक्रस्तव पढ़कर चैत्यवन्दन करे ||१|| कृत्य, अकृत्य आदि विनय के हेतु जो गुरु बतावे उसके स्वीकार निमित्त 'बहुवेलं संदिवसामि " यह बोलकर रात्रिक प्रतिक्रमण पूरा करे ||७२ || अब पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी के दिन किया जाता है। पाक्षिक दैवसिक प्रतिक्रमण सूत्रपाठ पर्यन्त हमेशा की तरह देवसिक प्रतिक्रमण करके फिर इस प्रकार क्रिया करे । ७३ ।। पाक्षिक मुहपत्ति की प्रतिलेखना करके दो वन्दनक दे, फिर संबुद्ध क्षामणक करके पाक्षिक आलोचना करे । ऊपर दो वंदनक देकर प्रत्येक ग्रब्भुट्ठियो खामे क्षामणक करके दो वन्दनक करे फिर पाक्षिकसूत्र पढ़े ||७४ ।। उसके बाद पाक्षिक वंदित्ता सूत्र पढ़े और "अब्भुटिठयो खामे " खामकर पाक्षिक कायोत्सर्ग करे, कायोत्सर्ग के अन्त में मुहपत्ति • प्रतिलेखनापूर्वक दो वंदनक दें, फिर समाप्ति का अब्भुट्टिया खमावे बाद में चार स्तोभ वन्दनक दे ||७५ ॥ | स्तोभ वन्दन करके फिर पूर्ववत् अवशिष्ट दैवसिक प्रतिक्रमण करे शय्यादेवी का कायोत्सर्ग करे और स्तव के स्थान में अजित शांतिस्तव पढ़े, इसी प्रकार चातुर्मासिक और वार्षिक प्रतिक्रमण में भी यथाक्रम विधि समझना चाहिये । पक्ष चतुर्मास और वार्षिक प्रतिक्रमणों में उन उन प्रतिक्रमणों के नाम बोलने चाहिए ॥७४-७७।।

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