Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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[१९
प्रतिक्रमण विधि संग्रह कार्य कर । ये शाम की विधि कही है। अब प्रभात में विधि क्या है सो कहते हैं। रात्रिक प्रतिक्रमण विधि__"पढमं सामाइयं कातूरणं चरित्तविसोधिनिमित्तं का उस्सग्गो, कीरइ चउवीसत्थयं कड्ढितूणं दंसविसेधिनिमित्तं बितिप्रो, ततिओ सुतणाण मिसोहि निमित्तं, तत्थ राइया तियारे चिंतेति तथा थुतीणं अवसाणा वा प्रारंभ जाव इमो ततिओं काउस्सग्गोत्ति पमाणं किं एत्थ ? सुत्तं गोसद्ध सतस्स पढमे पणुवीसा, वितिये विपणुवीसा ततिएणत्थि पमाणं । तत्थ आयरियो अप्पणो अतियारे चिंते तूण उस्सारेति जेण पुथठ्ठिता सथेवि, ततो वंदणगं, ततो पालोयणा, ततोपडिक्कमणं ततो पुणरवि वंदणगं, खामणं, ततो सामाइयाणंतरं का उस्सग्गो, ततो पच्चरवाणं, गुणधारणानिमितं, तत्थ चिंतेति"कम्हि नियोगेणिउत्ता गुरू हिं, तो तारिसं तवं संपडिवज्जिस्सामि, साहुणा य किर चिंते तव्वं-छम्मास खमणं जाव करेमि, ण करेज्जा, एगदिवसेण ऊणागं करेतु जाव पंच मास ४-३-२-१ अर्द्ध मासो, चउत्थं आयंबिलें एवं एगट्ठाणं, एगासणं, पुरिमढ्ढ णिव्वीय-पौरूसी णमोकारोत्ति। अज्जत्तणगाोंय किर कल्लं जोग वुढ्ढी का तव्वा । एवं वीरियायारो ण विराधितो भवति, अप्पायणिद्धाडितो भवति जं समत्थो कात्तं हिदये करेति (२६३-४) उस्सारेत्ता संथब कातु पच्छा वंदित्ता पडिवज्जति सब्वेहि विणमोक्कार इत्तेहिं समगं ऊट्ठ तव्वं, एवं सेसएसु वि पच्चक बारिणसु पच्छा, तिण्णी थुतीप्रो अप्पसहिं तहेव भण्णंति जथा घर कोई लियादि सत्ता ण उट्ठति, कालं वंदित्ता निवेदिति, जदि चेतियाणि अत्थि तो वंदति । थुति अवसाणे चेव पडिलेहणा, मुहणंतगादि, संदिसह पडिलेहेमि। बहु
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