Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ २४] प्रतिक्रमण विधि संग्रह अधिक किया जाता है। दूसरे दिन प्रभात में प्रतिक्रमण करने के बाद चातुर्मासिक तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमणों में पंच कल्याणक तप ग्रहण करे और पूर्व गृहीत अभिग्रह गुरु के आगे निवेदन करे । यदि अभिग्रह यथार्थ पाले न गये हों तो कूजितकर कराइत का कायोत्सर्ग करे और फिर नये अभिग्रह धारण करे। परन्तु साधु को अभिग्रहरहित रहना अच्छा नहीं। वार्षिक पर्व के प्रसंग पर सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने के उपरान्त पर्युषण कल्प पढ़ा जाता है । सांवत्सरिक दिन के पूर्वतन अनागत पंचम रात्रि से आरम्भ किया जाता है। सर्व साधु सुनें इस प्रकार पढ़ा जाता है। (२६४-२६६) .... प्राभातिक प्रतिक्रमण में अन्तिम कायोत्सर्ग करके जो प्रत्याख्यान करना हो उसे हृदय में स्थापन करले फिरं कायोत्सर्ग पार के चतुर्विशतिस्तव पढ़े और गुरु की वंदना करें। फिर विधिपूर्वक प्रत्याख्यान करने के लिए गुरु के पास उपस्थित हो । (२७१-२७२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120