Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 29
________________ प्रतिक्रमण विधि संग्रह ततिये खमावि ताव बोधिताणं चेइय वंदणं च साहुवंदणं च निवेदेति इच्छामि खमासमणो पनि चेति याति वंदिता आयरिओ भणति"अहंपि वंदामि" चउत्थे अप्पगं गुरु सुणिवेदेति तत्थ जो अविण ओ कतो तं खमाति-इच्छामि खमासमणो तुझं संतियं अहा कप्पं० आयरिओ भणति “आयरिय संतिय" अहवा “गच्छ सन्तिय"। पंचमे . भंणतिजं विणएण होन इच्छामि सव्वं, इच्छामि खमासमणो । कताइ.. च में वितिकम्माई जाव तुब्भण्हं x णित्थरिस्सामोति कट्ठ सिरसा . मणसा मत्थएण वंदामोत्ति," गुरु ग्राह-"आयरिया नित्थारग्गा"। एवं . से साण वि सव्वेसिं साहूणं खामण वंदरणगं-पढमगं, जाहे · अतिः वियालो वा घातो वा ताहे सत्तण्डं पंचण्हं तिण्हं वा। पच्छा देवसियं पडिक्कमति । पडिक्कमंताणं गुरुसु वंदिएसु वढ्ढ माणिगाओ तिण्णि थतीओ आयरिया भणंति, इमे य अंजलिमउलिय हत्यया एक्केक्काए समत्ताए। णमोक्कारं करेंति पच्छा सेसगा वि भणंति । तदिवसंण सुत्त पोरिसी रणवि य अत्थ पौरुसी । थुतीओ भणंति, जीसे जत्तियाओ एवं चेव चातुम्मासि एवि गवरं इमो विसेसोउ चाउम्मासिप का उस्सग्गो पंच सत्ताणि उस्सासाणं, संवत्सरिए च अट्ठ सहस्सं उस्सासाणं, एस विसेसो, चाउम्मासिय संवत्त्छरिएसु सव्वेहिं मूल उत्तर गुणाणं आलोएतव्वं, तहिं पडिक्कमिज्जति चाउम्मासिए एगो उ वस्सय देवताए का उस्सग्गो की रति अब्भहिओ । पभाते आवस एकते चातुम्मासिय संवत्सरियेसु पंच कल्लाणयं गेहंति, पुव्वगहिता अभिग्गहा णिवेदितव्वा । जदिणसम्म अणुपालिता तो कूजितककराइ तस्स का उस्सग्गों कीरति, पुणरवि अण्णे गेहित्तव्वा, णिर भिग्गहेणं किर ण वद्दति अच्छित्त, संवच्छरिये य आवास ए कते पज्जोसवणाकप्पो कढ्ढिज्जति, पुचि चेव अणागतं पंचरत्त सव्वं साधूणं

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