Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 20
________________ __ [१३ प्रतिकमण विधि संग्रह गुरु-आज्ञा प्राप्त करके प्रथम प्रस्रवण-भूमि में जाये, कायिकी लघु शंका मिटाके जहाँ संस्तारक करना है वहां जाये । वहां उपधि के विषय में उपयोग कर उपधि का डोरा छोड़े और संस्तारक और उत्तर पट्टक की प्रतिलेखना कर दोनों को शामिल कर पूर्व भाग पर रखे, फिर संस्तारक भूमिका प्रमार्जन करे और उत्तर पट्टक सहित संस्तारक को उस स्थान पर बिछाये और उसपर बैठकर मुहपत्ति से ऊपर के शरीर की प्रमार्जना करे, रजोहरण से निचले शरीर का प्रमार्जन करे और ओढ़ने के वस्त्र वाम भाग में रखे फिर संस्तारक पर चढ़कर गुरु अथवा जनकी निश्रा में रहता है। उन वडील के आगे कहे-'ज्येष्ठार्य ! संस्तारक की आज्ञा दीजिये।' फिर तीन बार सामायिक दंडक पढ़कर सोये । सोने की विधि यह है-- .. संस्तारक पर सोने की प्राज्ञा लेकर बाहुरूपी उपधान (तकिया) कर पैर संकुचित करके वाम पार्श्व पर सोये इस प्रकार सोता हुआ थक जाये तब भूमि प्रमार्जन करके कुक्कुट की तरह पैर लम्बा करे। .. संडासक संकोचित करके सोये, अगर पार्श्व परिवर्तन करना हो तो प्रथम शरीर प्रतिलेखना करके पार्श्व बदले। उस समय द्रव्यादि का उपयोग करे, श्वास को रोके और आंखें खोलकर देखे।

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