Book Title: Prashnottar Chatvarinshat Shatak
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Paydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund

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Page 9
________________ (४) का ही अभ्यास करता है,- आराधना करता है, क्योंकि अनेकान्त का पोषक जैन दर्शन तो छओं ही दर्शनोंको जैनदर्शनका अंग मानता है । विचार मूलक जैनदर्शनकी साधना तर ही संभव है जब वह आत्मवादी सांरव्य और योग दर्शनको जाने, क्षणिकवादी बौद्ध तथा क्रियावादी मीमांसक दर्शन का अभ्यास करें, एवं भौतिक वृहस्पति प्रणीत चार्वाक दर्शनसे भी अनभिज्ञ न रहे। भगवान महावीरके सच्चे उपासक इस सन्त कविने कितनी सुन्दरतासे सब विरोधी दर्शनोंका समन्वय किया है ? वीर प्रभु ने हमें आचारमें अहिंसा और विचारमें अनेकान्त रूप अमृतका पान कराया है, विचारों में जब तक अनेकान्त धारा प्रवाहित नहीं होती, अहिंसाकी सच्ची साधना हो ही नहीं सकती, इसही लिए प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजीने अनेकान्तको 'बौद्धिक अहिंसा' कहा है, विचारोंमें जब तक प्रत्येक दृष्टिकोणको समझनेकी शक्ति नहीं है, प्राचार में अहिंसा कैसे संभव है ? अस्तु ! 'तपा खरतर भेद' नामसे पुस्तकका विषय स्पष्ट है। मेद दिखलाना कोई बुरी बात नहीं है, श्रीजुगल किशोरजी मुख्तारने 'जैनाचार्यो का शासन मेद' नामक पुस्तकमें श्वेताम्बर दिगम्बर आचार्योंका जुदी २ मान्यताओं पर सुन्दर रीतिसे प्रकाश डाला है । ऐसी पुस्तकें जिनशासनका मर्म समझने में बहुत उपयोगी होती है, किन्तु ऐसी पुस्तकोंमें जब सम्प्रदायवृत्ति प्रधान होकर पर निन्दा की जाती है तो वह विष बन जाती है। . ____ 'तपा खरतर भेद'के प्रत्येक प्रश्नका शास्त्रीय दृष्टिसे अत्यन्त सुन्दर व प्रमाणिक उत्तर प्रस्तुत पुस्तकमें दिया गया है । प्रस्तावना लेखकके नाते कुछ प्रश्नों पर समन्वय दृष्टिसे तथा कुछ मान्यतायें साधारणदृष्टिसे कितनी असंगत व लोकविरुद्ध है इस पर अति संक्षेपसे प्रकाश डालना अपना कर्तव्य समझता हूँ। (1) खरतरगच्छी सामायिक लेकर इरियावही प्रतिकमते हैं तपा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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