Book Title: Prachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala
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पूर्वकालीन ऐतिहासिक पुराण युग के मालव प्रदेश का इतिहास लोकोत्तर है। इस शस्य यामला भूमि को अनेक महाराजाओं, ऋषि-मुनियों और महापुरुषों ने भूषित किया है। भारतीय संस्कृति एवं इतिहास में इस प्रदेश का विशिष्ट स्थान है। अतः समय-समय पर ऐसे विचार आते रहे कि मालवा के इतिहास के विभिन्न अंगों पर शोध कार्य होना चाहिये जिससे नये-नये तथ्य प्रकट हों। इन्हीं विचारों को मूर्त रूप देने के लिए मैंने मालवा के इतिहास के किसी एक अंग को लेकर शोध करने का विचार किया। किन्तु वह एक अंग कौनसा हो? यह गंभीर रूप से विचार करने के उपरांत ऐसे विषय की ओर ध्यान गया जिस पर अद्याधि विस्तृत रूप से शोध कार्य नहीं हुआ था। वह विषय था, "प्राचीन एवं मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म का अध्ययन' अर्थात् ई.पूर्व से ई.सन् 1200 तक के मालवा में जैनधर्म के विकास और इतिहास का अध्ययन। इस विषय पर अभी तक न तो शोध कार्य ही हुआ था और न ही कोई पुस्तक उपलब्ध थी।
. मालवा की सीमा - आरम्भ में मालवा की भौगोलिक सीमाएं निर्धारित करनी होंगी। इस सम्बन्ध में निम्नांकित उक्ति प्रचलित है जो यद्यपि अर्वाचीन है पर निःसंदेह प्राचीन परंपराओं पर अवलंबित है और एक सामान्य परिधि प्रस्तुत करती है।
इत चम्बल उत बेतवा मालव सीम सजान।
दक्षिण दिसि है नर्मदा, यह पूरी पहिचान।।' . अर्थात् जिसके पूर्व में बेतवा, उत्तर पश्चिम में चम्बल और दक्षिण में नर्मदा बहती है वही मालवा है। डॉ.रघुवीरसिंह मालवा की सीमा के विषय में लिखते हैं कि उत्तर-पश्चिम में मालवा को कांथल और बागड़ प्रदेश गुजरात और राजपूताना से अलग करते हैं और दक्षिण-पूर्व में मालवा की सीमा हाड़ोती, गोंडवाना और बुन्देलखण्ड द्वारा निर्मित है। श्री उपेन्द्रनाथ डे भी मालवा की प्रायः यही सीमा बताते हैं। मालवा के सम्बन्ध में पं.सूर्यनारायण व्यास का कथन है कि आज जिस शस्य श्यामल भूखण्ड को मालव प्रदेश कहा जाता है, वह उज्जैन के चारों
ओर का विभाग ही है। परन्तु पुरातनकाल में गुजरात से लेकर बुन्देलखण्ड तक विस्तृत नर्मदा के उत्तर की भूमि, जिसमें चम्बल, बेतवा आदि नदियों का उद्गम है, वह समूची भूमि मालवं भूमि मानी जाती थी। 'माल' शब्द का ही दूसरा नाम मालव है। यादव कोश में भी "मालं मालव देशेच" लिखा है। इससे ज्ञात होता है, 'माल' और 'मालव' यह एक ही भाव के दो शब्द हैं। कालिदास ने मालवा को ऊंची
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