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गुफायें भी हैं। इनपरसे अब या तो जैनधर्मकी छाप ही उठ गई या जैनियोंने उनको सर्वथा भुला दिया है ।
ऊपर हमने जो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्तकमें पाये जायगे । धर्महितैषी और जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त
कका अच्छी तरह अवलोकन करना चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा और अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट करना चाहिये कि कहां२ पुराने जैन मंदिर व मंदिरोंके ध्वंसावशेष हैं, कहां२ जैनमंदिर शैवमंदिरों और मसजिदोंमें परिवर्तित कर लिये गये हैं और कहां२ जैन गुफायें अरक्षित अवस्थामें हैं । जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानों को अवश्य देखें और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित करावें । बम्बई प्रांतमें अनेक स्थानों जैसे पाटन, ईडर आदिमें बड़े२ प्राचीन शास्त्र भंडार हैं । इनका सूक्ष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है । भारतवर्ष के जैनियोंकी लगभग आधी जन संख्या बम्बई प्रांत में निवास करती है । इन भाइयों का सर्वोपरि कर्तव्य है कि वे इस पुस्तक की सहायता से अपने प्रांतकी धार्मिक प्राचीनताको समझें और जैनधर्मके पुनरुत्थानमें भाग लें । पुस्तक के लेखकका यही अभिप्राय है ।
उपसंहार ।
गांगई । कार्तिक वदी ३० नि. सं. २४५१
हीरालाल
[ हीरालाल जैन एम० ए० सं० प्रोफेसर किंग एडवर्ड कालेज अमरावती-बरार ]