Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 20
________________ चारेक वर्ष पहेलां म्हारा विद्वान् मित्र श्रीयुत नाथूरामजी प्रेमीना अवलोकनमां, बंगला भाषाना प्रतिष्ठित मासिक पत्र 'साहित्य' ना एक अंकमां खारवेल संबंधी कांइक हकीकत प्रकट थयेली ते आवी. तेमणे तुरत तेनो सार लइ पोताना " जैनहितैषी " नामना सुसंपादित मासिक पत्रमा " खण्डगिरि और कलिङ्गाधिपति खारवेल" ए नामे एक संक्षिप्त लेख प्रकट कर्यो. ए लेख वांची म्हने ते संबंधी विशेष जाणवानी जिज्ञासा यइ अने हाथीगुफावाळा ए मूळ लेखने मेळववा प्रयत्न कयों; परंतु संयोगाभावे ते वखते कांइ सफळता मळी नथी. गये वर्षे, वडोदरामां वासस्थान थता " प्राचीनजैनलेखसंग्रह " छपावी प्रकट करवानो विचार थयो अने तेनी सामग्री एकत्र करतां, आर्किओ. लॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डीआना सने १९०२-३ ना वार्षिक रीपोर्ट ( Archaeological Survey of India, Annual Report I, 1902-03 ) मां खंडगिरि संबंधी थोडीक हकीकत जोवामां आवी तेमज फ्रेंच विद्वान डॉ. ए. गेरीनोट ( A. Guerinot ) ना Repertoire Depigraphic Jaina नामना पुस्तकमांथी ते पुस्तकर्नु नाम पण मळी आव्यु के जेमा हाथीगुफानो आ मूळ लेख, पंडित भगवानलाल इंद्रजी द्वारा शुद्ध रीते संपूर्ण स्पष्टीकरण साथे प्रकट थयेलो छे. ए पुस्तक सन १८८३ मां फ्रांसमां छपायेलं होवाथी वडोदराना जेवी सेंट्रल लाय. ब्रेरीमा पण मळी शक्युं नथी. बीजी पण केटलीक जग्याए तपास करावी पण काइ पत्तो लाग्यो नथी. अंते पूनावाळा श्रीमान् देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर एम. ए. के जेओ आर्किऑलॉजीकल सर्वे ओफ वेस्टर्न इन्डीआना सुप्रिन्टेन्डेन्टना उच्च अने प्रतिष्ठित पद उपर प्रथम ज हिन्दी तरीके अधिकृत थयेला छे अने जेमनो जैन इतिहास अने साहित्य उपर खास प्रेम होइ म्हारी साथे मित्रता भर्यो संबंध छे, तेमणे म्हने ए उप. र्युक पुस्तक मेळवी आप्यु. एज पुस्तकना मूळ आधारे आ प्रस्तुत पुस्तक जैनइतिहासरसिकोनी आगळ उपस्थित करवानो प्रसंग प्राप्त थयो छे. "Aho Shrut Gyanam"

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