Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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" ओरीस्सा ई. स. पूर्वे ३ जी सदीथी ई. स. नी । अगर ९ मी सदी सुधी जैन अने बौद्धधर्मनु मुख्य स्थळ हतुं, ए मानवाने आपणी पासे खास कारणो छे. ई. स. पूर्वे २६२ मां महान् मौर्य राजा अशोके कलिंग देश जीत्यो त्यारथी बौद्धधर्मनी असर थवा लागी; आ जीतमा घणां माणसोनो घाण निकळी गयो, ते वात तेना शिलालेख (Rock edict) नं. १३ मां मोजुद छे. सुधारानी असर थती गइ अने क्रमे क्रमे कलिंग देश आगळ पडतो थवा लाग्यो. जो के केटलाफ अशोकना लेखो मैसुरना उत्तर भागमां मळी आवे छे तोपण डॉक्टर भांडारकर, वीन्सेन्ट स्मीथे, विगेरे विद्वानो कलिंगने अशोकना राज्यनी दक्षिणसीमा गणे छे. बौद्धधर्मना प्रवर्तनना लीधे तेमज समुद्रना किनारा उपर आववाना लीघे कलिंगदेश अन्य देशोना संबंधमा आवतो गयो; तेनुं दरियाई बळ घणा वखत सुधी रघु हतुं, अने हवे तेमां नवो उत्साह उमेरावाने लीधे ते व्यापारनुं मुख्य मथक बन्यु. ई. स. पूर्व ७५ मां कलिंगथी निकळेला एक लाकरे जावा सर केयु. ज्यारे ई. स. ६२९ अने ६४५ नी वच्चे हुऐनसांग ( Hiuen Tsang ) उन्य अगर ओरीस्सा आव्यो त्यारे तेणे बौद्धधर्मनी असर दविनारा घणा म्होटा ' संघारामो । स्तूपो' विगेरे जोयां. तेणे कोई पण हिंदु देवालय विषे उल्लेख करेलो नथी. चे-ली-त-लो-चींग अगर चरित्रपुर अथवा हाल- पुरी, तेनी बहार तेणे " टावर सहित उंचा शिखरोवाळा साथे साथे पांच स्तूपो" जोयां.* आ स्तूपो घणा वखत
१ डॉक्टर फ्लीटतुं 'बॉम्बे गेझेटीअर' पु. १. तथा, डॉ. भांडारकरनो 'दक्षिणनो इतिहास' भा. १.
२ वी. स्मीथनी · अली हीस्टरी ऑफ इन्डीआ' पृष्ठ १३१. ३ 'साइकलोपीडाला ऑफ इन्डिा , पु. २.( १८८५). * कनांगहामनी अनश्यन्ट जोग्रॉफी ऑफ इन्डीआ.'
"Aho Shrut Gyanam"

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