Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ २२ प्राचीनजेनलेखसंग्रह। कीडको ततो लेखरूपगणनाववहारैविधिविसारदेन सबविजोक्दातेन नववसानि" योवराज पसासित संपुणचतुविसतिवसोंचं दानवधमेन सेसयोवनाभिविजयवतिये १. C मां कीडिता नी की ने बदले री छे. पण मूळ लेखमां, K मां तथा फोटोग्राफमां की स्पष्ट छे. २. C मां भूलथी कीडका नो ड नथी. x मां छे. ३. ववहार ने बदले K मां ववपार तथा 0 मां ववेपार छे. पा अने हा अक्षरो लगभग सरखा छे. फेर मात्र हा मां बाजुना कापामां छे. जे पथ्थरमा फाटने लीधे बन्नेना ध्यानमा ते आव्यो नथी. C D वे खोटुं छे. ४. विजा ने बदले 0 मां तिजा छे. पण मूळमां तथा K मां वि स्पष्ट छे. विजावदातेन पछी तथा नव ना पहेला C ए इ अक्षर घुसाड्यो छे जे मूळमां नथी, K मां नथी तेमज अर्थनी पूरवणीमां जरुरनो पण नथी. ५. वसानि ने बदले K मां वसाना छे अने C मां °वसानि छे. जो के मूळमां नीचेनो भाग भांगी गयो छे तो पण ते नि जेवो देखाय छे अने खरी रीते तेज छे. ६. c मां योवराज ने बदले योवरज तथा K मां होवरज छे. पण मूळमां योवराज स्पष्ट छे. हुं धारुं छं के ज उपर अनुस्वार जोइए; जो के मूळमां होय तेम लागतुं नथी. ७. मां पसासिवं अने K मां पसासिव छे. जो के K मां छेल्लो अक्षर शंकास्पद छे. मूळ लेखमां आ अक्षरनी नीचे एक छिद्र छे तेथी आ भूल थह छे. "Aho Shrut Gyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124