Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 87
________________ प्राकृतलेखविभाग। वुथे वसे विजापराधिवासं अहत” पुर्व कलिंगपुवराजनमंसित . . . . . . . . . . . . . . . " धमकूटस . . . [पू]जित च निखितछत(६) भिंगारेहि तिरतनस' पतयो' संवरठिकभोजकेसादेवं किसयंति वांचे छ. K नु खरुं छे, तेणे डा ज वांच्यो छे अने शकमंद छे एम कहेलुं छे. ७. इ तथा थ बन्ने अक्षरो झांखा तथा शंकास्पद छे. K मां तथ जेवू देखाय छे. कदाच तथा होय. मने तो पहेलो अक्षर इ जेवो देखाय छे पण ते अ जोइए. ० इ आपे छे अने थ ने मूकी दे छे. ८. मूळ लेखमां चबुथे स्पष्ट छ. K मां विबुथे अने c मां प्रथम एक खोटा अक्षर पछी तथे छे. ९. 0 मां विसे छे पण मूळ लेखमां तथा K मां वसे स्पष्ट छे. १०. K ए स उपरतुं अनुस्वार मूकी दीधुं छे. C मां ते छे. ११-१२. त तथा व उपरना अनुस्वार झांखा छे ते बेउ नकलोमां नथी. १२. नमंसितं शब्दो झांखा छे. १४. नव अक्षरो जताज रह्या छे; मात्र ति रह्यो छे. १५. C ए कू मूकी दीधो छे अने K मां तेने बदले ट छे. मूळ लेखमां कू स्पष्ट छे. त्यार पछीना त्रण अक्षरो जता रह्या छ जेमांनो छेल्लो पू हशे कारण के तेनी पछी जिते आवे छे. १.० तथा K बन्नेमा तरतनंसा छे. मने पहेला अक्षर उपर घणोज अस्पष्ट इकार देखाय छे. २. C तथा K बन्नेमां पतय छे पण यो स्पष्ट छे. "Aho Shrut Gyanam"

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