Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 90
________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। कपरुखो' हयगजरसह यते सर्व घरावसधं . . . . . . . . . . यसवागहनं च कारयितुं बमणानं जम्हि रढिसारं ददाति अरहत. . . . . . . . . . • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •[निवासं' महाविजयपासादं का रयति' अठतिससतसहसेहि दसमे च बसे' . . १. K मां कपरुख छे. परंतु आ अनुस्वार नथी पण छिद्र छे अने ख उपर ओकार स्पष्ट छे. ८ मां किपरुख छे. २. अहीं c अने र बन्नेए भूल करी छे. अक्षरो झांखा छे पण ओळखी शकाय तेम छे. ३. c मां घरावसयं छे. पण जे भाग नीचे रह्यो छे ते उपरथी अक्षर ध जणाय छे. ४. 0 मां बइमनोनं छे जे तद्दन खोटुं छे. ५. ज थी रं सुधीना छ अक्षरो झांखा तथा घसाई गएला छे. पण ते वांची शकाय तेम छे. १. पहेला नव अक्षरो अर्धा भांगेला छे अने तेथी बराबर ओ. ळखी शकाय तेम नथी. निवा शब्द शंकास्पद छे. तेमना उपरनो भाग स्पष्ट छे. २. K मां कारयति ना का ने बदले दे छ. c मां बराबर छे अने मूळमां स्पष्ट रीते का छे. ३. K मां अठ नो अमूकी दीधेलो छे. ८ मां ते आपेलो छे. तिसयुसव ने बदले c मां हितहुसव छे अने K मां तसयसत. "Aho Shrut Gyanam"

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