Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RST - CELL શ્રેય જીર્ણોદ્ધાર -: સંયોજક :શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવના હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫. મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “અહો શ્રુતજ્ઞાનમ” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૧૭ પ્રાચિન જૈન લેખ સંગ્રહ ભાગ-- : દ્રવ્ય સહાયક : પૂજ્ય આગમોદ્ધારક આનંદસાગરસૂરિજી મ.સા.ના સમુદાયના પૂ. સાધ્વીજી શ્રી નિરંજનાશ્રીજી મ.સા.ના શિષ્યા પૂ. સાધ્વીજી શ્રી પ્રમુદિતાશ્રીજી મ.સા.ના શિષ્યા પૂ. સાધ્વીજી શ્રી પ્રશમિતાશ્રીજી મ.સા. તથા પૂ. સાધ્વીજી શ્રી મહર્ષિતાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી શા સુશીલાબેન મોહનલાલ શ્રાવિકા ઉપાશ્રય, સાબરમતીના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી સંયોજક શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૭ ઈ.સ. ૨૦૧૧ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર – સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯) સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ કર્તા-ટીકાકા-સંપાદક 001 002 003 004 005 006 007 008 009 010 011 012 013 014 015 016 017 018 019 020 021 022 023 024 025 026 027 श्री नंदीसूत्र अवचूरी श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी श्री अर्हद्गीता - भगवद्गीता श्री अर्हच्चूडामणि सारसटीकः श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं श्री मानतुङ्गशास्त्रम् अपराजित पृच्छा शिल्प स्मृति वास्तु विद्यायाम् शिल्परत्नम्भाग-१ शिल्परत्नम्भाग - २ प्रासादतिलक काश्यशिल्पम् प्रासादमञ्जरी राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र शिल्पदीपक वास्तुसार पर्णव उत्तरार्ध જિનપ્રાસાદમાર્તણ્ડ जैन ग्रंथावली હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ न्यायप्रवेशः भाग - १ दीपार्णव पूर्वार्ध अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-१ अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग २ प्राकृत व्याकरण भाषांतर सह तत्त्पोपप्लवसिंहः शक्तिवादादर्शः पू. विक्रमसूरिजीम. सा. पू. जिनदासगणिचूर्णीकार पू. मेघविजयजी गणिम. सा. पू. भद्रबाहुस्वामीम. सा. पू. पद्मसागरजी गणिम. सा. पू. मानतुंगविजयजीम. सा. श्री बी. भट्टाचार्य श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा | श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री विनायक गणेश आपटे श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री नारायण भारतीगोंसाई श्री गंगाधरजी प्रणीत श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री प्रभाशंकर ओघडभाई શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલસોમપુરા श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની श्री आनंदशंकर बी. ध्रुव श्री प्रभाशंकर ओघडभाई पू. मुनिचंद्रसूरिजीम. सा. श्री एच. आर. कापडीआ श्री बेचरदास जीवराजदोशी श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य श्री सुदर्शनाचार्य शास्त्री પૃષ્ઠ 238 286 84 18 48 54 810 850 322 280 162 302 156 352 120 88 110 498 502 454 226 640 452 500 454 188 214 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 028 029 030 031 032 033 034 035 036 037 038 039 040 041 042 043 044 045 046 047 048 049 050 051 052 053 054 क्षीरार्णव वेधवास्तु प्रभाकर शिल्परत्नाकर प्रासाद मंडन श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय? श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर श्री सिद्धम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय३ (१) श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय (२) (३) श्री सिद्धम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय ५ વાસ્તુનિઘંટુ તિલકમન્નરી ભાગ-૧ તિલકમન્નરી ભાગ-૨ તિલકમન્નરી ભાગ-૩ સપ્તસન્માન મહાકાવ્યમ્ સપ્તભઙીમિમાંસા ન્યાયાવતાર વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક સામાન્યનિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક સપ્તભઙીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી ન્યાયસમુચ્ચય સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ બૃહદ્ ધારણા યંત્ર જ્યોતિર્મહોદય श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री नर्मदाशंकर शास्त्री पं. भगवानदास जैन पू. लावण्यसूरिजीम. सा. પૂ. ભાવબ્યસૂરિનીમ.સા. પૂ. ભાવન્યસૂરિનીમ.સા. पू. लावण्यसूरिजीम. सा. પૂ. ભાવબ્યસૂરિનીમ.સા. પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) પૂ. લાવણ્યસૂરિજી શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. દર્શનવિજયજી પૂ. દર્શનવિજયજી સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી 414 192 824 288 520 578 278 252 324 302 196 190 202 480 228 60 218 190 138 296 210 274 286 216 532 113 112 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર – સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦)- સેટ નં-૨ ભાષા કર્તા-ટીકાકાસંપાદક પુસ્તકનું નામ सं सं ક્રમ 055 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहद्न्यास अध्याय - ६ 056 विविध तीर्थ कल्प 057 ભારતીય જૈન શ્રમણ સંસ્કૃતિ અને લેખનકળા 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः 059 | व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका જૈન સંગીત રાગમાળા 064 | विवेक विलास 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध 066 सन्मतितत्त्वसोपानम् 067 ઉપદેશમાલા દોઘટ્ટી ટીકા ગુર્જરાનુવાદ 068 | मोहराजापराजयम् 069 | क्रिया 070 कालिकाचार्यकथासंग्रह 071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका 060 061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश ) 062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं 063 | चन्द्रप्रभा मकौमुदी सं 072 जन्मसमुद्रजातक 073 | मेघमहोदय वर्षप्रबोध 074 075 शुभ. सं सं જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧ गु. सं 4.4.9 सं/गु. सं सं पू. लावण्यसूरिजीम. सा. पू. जिनविजयजी म. सा. शुभ. गु४. पू. पूण्यविजयजी म. सा. श्री धर्मदत्तसूरि | श्री धर्मदत्तसूरि श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | श्री सुदर्शनाचार्य पू. मेघविजयजी गणि श्री दामोदर गोविंदाचार्य पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. पू. लब्धिसूरिजी म.सा. પૃષ્ઠ 296 160 164 202 48 306 322 668 516 268 456 420 शुभ. पू. हेमसागरसूरिजी म. सा. सं पू. चतुरविजयजी म.सा. सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया सं/गु. श्री अंबालाल प्रेमचंद 406 सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य 308 सं/ हिं श्री भगवानदास जैन 128 सं/ हं श्री भगवानदास जैन 532 श्री हिम्मतराम महाशंकर जान 376 श्री साराभाई नवाब 374 638 192 428 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 076 | જન વિને જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 7 સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 7 | ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 079 | શિલ્પ ચિતામણિ ભાગ-૧ 080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 114 08 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083 આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 | કલ્યાણ કારક 085 | વિશ્વનયન વોશ 086 | કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 087 કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 હસ્તસગ્નીવનમાં | ગુજ. | શ્રી સારામાકું નવાવ 238 | ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવાવ 194 ગુજ. | શ્રી સારામારૂં નવાવ 192 ગુજ. | શ્રી મનસુહાનાન્ન મુવમન | 254 ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારીમ 260 ગુજ. | શ્રી નાગનાથ મંવારમ 238 ગુજ. | શ્રી નવીન્નાથ મંવારમ 260 ગુજ. | પૂ. વરાન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પાર્શ્વનાથ શાસ્ત્રી 910 सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा 436 ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન કોશી 336 | ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન તોશી | 230 સં. | પૂ. મે વિનયની પૂ.સવિનયન, પૂ. पुण्यविजयजी | आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 560 088 . 322 114 089 એ%ચતુર્વિશતિકા 090 સમ્મતિ તક મહાર્ણવાવતારિકા Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 272 92 240 93 254 282 95 118 466 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक |91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 96 पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी सं./अं साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१ | भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव टी. गणपति शास्त्री 99 . | भुवनदीपक पद्मप्रभसूरिजी सं. वेंकटेश प्रेस | 100 | गाथासहस्त्री समयसुंदरजी सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर साधुसुन्दरजी हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश न्यायविजयजी सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३ माणिक्यसागरसूरिजी आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण एसियाटीक सोसायटी 342 98 362 134 70 101 316 224 612 307 250 514 107 454 354 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 109 सं./हि 337 110 सं./हि 354 111 372 112 सं./हि सं./हि सं./हि 142 113 336 364 सं./गु सं./गु पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | नाहटा ब्रधर्स | जैन आत्मानंद सभा जैन आत्मानंद सभा | फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा | फार्बस गुजराती सभा 218 116 656 122 जैन लेख संग्रह भाग-१ पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-२ पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-३ पुरणचंद्र नाहर | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१ कांतिसागरजी जैन प्रतिमा लेख संग्रह दौलतसिंह लोढा 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह विशालविजयजी प्राचिन लेख संग्रह-१ । विजयधर्मसूरिजी बीकानेर जैन लेख संग्रह अगरचंद नाहटा 117 प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 122 __ इन मुंबई सर्कल-१ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 123 इन मुंबई सर्कल-४ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन । इन मुंबई सर्कल-५ कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत पी. पीटरसन __ इन्स्क्रीप्शन्स | 126 | विजयदेव माहात्म्यम् जिनविजयजी 764 सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु 404 404 121 540 रॉयल एशियाटीक जर्नल 274 रॉयल एशियाटीक जर्नल 41 124 400 अं. रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक 125 320 148 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। (प्रथम भाग) मुनि जिनविजय। "Aho Shrut Gyanam" Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवर्तककान्तिविजयजैन इतिहासमाला, चतुर्थ पुष्प । प्राचीनजैनलेखसंग्रह। प्रथम भाग। (प्राकृतलेखविभाग.) संग्राहक अने सम्पादक मुनि जिनविजय । पाटणनिवासी शाह भीखाभाई वसताचंद नी द्रव्य सहायर्थी प्रकट कर्ताश्रीजैन आत्मानन्द सभा भावनगर । । मूल्प वीर संवत् २४४४) विक्रमाद १९७३. ( आठ आना. "Aho Shrut Gyanam" Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकगांधी वल्लभदास त्रिभुवनदास, सेक्रेटरी श्रीजैन आत्मानन्द सभा, भावनगर. मुद्रक-- छोटालाल लालभाई पटेल, मेनेजर लक्ष्मीविलास प्रेस, भाऊकाळेनी गल्ली. वडोदरा. { तारीख ३०, ऑगष्ट, १९१७.) "Aho Shrut Gyanam" Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. उपोद्घात १ प्रारंभ. .... २ महत्त्वनां ऐतिहासिक साधनो. ३ स्थान परिचय. .... ४ गुफाओ संबंधी हकीकत. ५ जैन गुफाओ. .... .... ६ प्रसिद्ध गुफाओ अने तेमनो इतिहास. ७ कालगणना. .... .... ८ हाथी गुफा. .... .... ९ कलिंगनो संक्षिप्त इतिहास. १० कलिंगमाथी जैनधर्मर्नु निर्वासन..... ११ खारवेलनो लेख. .... .... १२ आ लेखथी जैन धर्म उपर पडतो प्रकाश. १३ उपसंहार..... १४ परिशिष्ट..... "Aho Shrut Gyanam" Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल निबन्ध-- १ लेखो संबंधी पंडित भगवानलाल इन्द्रजीतुं विस्तृत विवेचन. १-१९. २ हाथीगुम्फा लेख ( मूल पाठ ) .... ....२०-३९. ३ हाथीगुम्फा लेख (संस्कृत छाया.) .... -४३. ४ , (गुजराती भाषांतर.).... ....४४-४७. ५ लेख-२. .... .... .... .... ४८. ६ लेख-३. .... .... ... .... ४९. ७ लेख-४. .... ५.. ८ अनुपूर्ति. ( हाथीगुफा लेख उपर श्रीयुत के. ह. ध्रुवन विवेचन.) .... .... .... ....५१-६२. occ "Aho Shrut Gyanam" Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3.Itaque salg Billy Raj Have It? !. . . A napie int3898 yusgropez'ssipyorni Puldid so rmpje yn ymadrone TYT.... IR YPPERYTRY7318:43 € 7 3D FH21867

Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपोद्घात. प्रारंभ. जैनधर्म साथे संबंध धरावनारस जेटला प्राचीन शिलालेखो आज सुधीमां मळी आव्या छे तेमां आ पुस्तकमां आपेला " कटक नजीक आवेली उदयगिरिनी टेकरी उपरना हाथीगुफा तथा बीमा त्रण लेखो" सर्वथी प्राचीन छे. हाथीगुफा वाळो महामेघवाहन राजा खारवेलनो लेख जैनधर्मनी पुरातन जाहोजलाली उपर अपूर्व अने अद्वितीय प्रकाश पाडनारो छे. श्रमणभगवान् श्रीमहावीरदेव प्रबोधित पन्थना अनुयायिओमांना कोइपण प्राचीनमा प्राचीन नृपतिर्नु नाम जो शिला - लेखमा मळी आव्युं होय तो ते फक्त एकला आ प्रतापी नृपति खारवेलर्नु ज छे. जैनधर्मना इतिहासनी दृष्टिए तो आ हाथी गुफावाळो लेख अनुपम छ ज परंतु भारतवर्षना राजकीय इतिहासनी अपेक्षाए पण आनी उपयोगिता अनुत्तर ज जणाइ छे लगभग एक शताब्दी जेटला लांबा काळथी आ लेखनी चर्चा युरोपीय अने भारतीय पुरातत्त्वज्ञामां चाल्यां करे छे. अनेक लेखो अने पुस्तको आ लेखनाविषयमा लखायांछपायां छे. सेंकडो विद्वानो आ लेखनी मुलाखात लइ फोटा विगेरे उतारी गया छे-अने हजु पण एम ज चालु छे. आवी रोते ऐतिहासिक विद्वानो मां आ लेख एक महत्त्वनो अने प्रिय थइ पढ्यो छे. परंतु ए जाणाने म्हने साश्चर्य खेद थाय छे के जेमना धर्म साथे आ महत्त्वना स्थाननो सीधो संबंध छे, जेमनो एक प्रकारे आ कीर्तिस्तंभ छे अने "Aho Shrut Gyanam" Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेमनी प्राचीन प्रभुताना प्रकाशमय किरणो आमां अंकित थयेला छे ते जैनोमांथी हजी सुध! कोईने एनुं नाम पण जणायु-संभळायुं नथी ! ___ श्रमणभगवान् श्रीमहावीरदेवना निर्वाण बाद उदायी, चंद्रगुप्त, संप्रति अने विक्रमादित्य आदि नृपतिओ जैनधर्म पाळनारा अने जैनशासननी प्रभावना करनारा थइ गयाना उल्लेखो केटलाक जैनग्रंथोमां जोवामां आवे छे, परंतु ते कथननी सत्यता सिद्ध करनार एक पण ऐतिहासिक प्रमाण-के जेने निःशंक रीते सर्व कोई स्वीकारी शके-आज सुधीमां उपलब्ध थयुं नथी. जे ग्रंथोमां उपर्युक्त राजाओने जैनधर्मानुयायी जणाव्या छे ते ग्रंथो घणा पाछळना समये लखायला छे तेथी तेमना कथन उपर पुरातत्त्वज्ञो बहु विश्वास नथी राखता. कारण के आवा ग्रंथोक्तवर्णनोमाथी घणा खरा इतिहासनी दृष्टिए निमूल ठयों के अने ठरता जाय छे. दृष्टान्त तरीके जे विक्रमादित्य नामना राजाना विषयमा अनेक चरित्रो अने आख्यानो लखायां छे अने जेना नामथी आजे आखा भारतवर्षमा ( लगभग १२००-१५०० वर्षी ) राष्ट्रीय संवत् प्रवर्ते छ तेना अस्तित्व अने समय सुधा माटे पण आजना अनेक ऐतिहासिको शंकाशील छे !. महत्त्वना ऐतिहासिक साधनो. ऐतिहासिक साधनोमा शिलालेखो, ताम्रपत्रो अने शिकाओ सौथी वधारे महत्त्वना अने निःशंसय रीते प्रामाणिक गणाय छे. कारण के तेमां जे हकीकत आलेखेली होय छे ते, ते वखते बनेली अगर विद्यमान होय छे. किंवदन्ती के अतिशयोक्तिने तेमा बहुज अल्पस्थान मळे छे. कृत्रिमतानो संभव तेमां कल्पी शकातो नथी. आथी करीने पुरातत्त्वज्ञो जेटलो विश्वास ए साधनो उपर राखे छे तेटलो ग्रंथो उपर राखता नथी. अंथकारो पोतानी हयातीमां बनेली अने पोते खास "Aho Shrut Gyanam" Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुभवेली बाबतोमां पण घणीक अतिशयोक्ति अने अलंकार भरेली हकीकतो, पोताना धर्मानुराग के वर्णित-व्यक्तिगत पक्षपातने अधीन थइ उमेरी दे छे तो पछी सेंकडो हजारो वर्षों पहेलां थइ गयेला अने जनसमाजमां बहु ज पूज्य के माननीय रुपे गणाइ गयेला नरोना अनेक शताब्दीओ पछीथी लखायेलां जीवनवृत्तांतोना विषयमा तो पूछ ज शुं ? एज कारणना लीधे अशोक के कनिष्क जेवा राजाओ के जेमनु नाम पण जनसमाजना वातावरणमा आस्तित्व धरावतुं न हतुं तेमना विषयमां, फक्त पत्थरनी शिलाओ उपर खोदेली ५-१० पंक्तिओ जेटली नजीवी हकीकत उपर आजे सेंकडो विद्वान् पोतानी प्रतिभाने सतत परिश्रम आपता नजरे पडे छे, त्यारे महापुराण के महाभारत जेवा हजारो अने लाखो श्लोकोमा लखायला महान् ग्रंथोमां वर्णवेली व्यक्तिओ के वर्णनो तरफ भाग्येज कोइ सत्यनी दृष्टिए जुए छे ! एज कारण छे के, चंद्रगुप्त अने संप्रति जेवा जैनसमाजप्रसिद्ध नृपतिओना विषयमां ज्यारे अनेकानेक जैनग्रंथोमा विस्तृत रुघे वर्णन करवामां आवेलं होवा छतां अने निःशंसय रीते तेमने परमजैन तरीके जणावला होवा छतां तेमनुं जैनत्व स्वीकारवा माटे-अने संप्रतिनुं तो असंदिग्ध रीते अस्तित्व पण मानवा माटे-हजु विद्वत्समाज आनाकानी करे छे; त्यारे खारवेल जेवा एक सर्वथा अपरिचित-अज्ञात राजा माटे के जेनु नाम सुधां पण आखा जैनसाहित्यमा कोइ पण स्थाने मळतुं नथी, अने जेना बनावेला एवा महत्त्वना हाथीगुफा जेवा जैनीय धर्मस्थानना अस्तित्वनी कल्पना पण आज सुधी कोइ जैनना मनमा जागेली जणाती नथी, तेने एक परम जैन ( श्रीयुत के. ह. ध्रुवना वचनमां कहुं तो " हडहडतो जैन " ) नृपति के " जैनविजेता " तरीके सिद्ध करवा के कबूल करवामां आधुनिक इतिहासज्ञो मान के आनंद माने छ ! "Aho Shrut Gyanam" Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारेक वर्ष पहेलां म्हारा विद्वान् मित्र श्रीयुत नाथूरामजी प्रेमीना अवलोकनमां, बंगला भाषाना प्रतिष्ठित मासिक पत्र 'साहित्य' ना एक अंकमां खारवेल संबंधी कांइक हकीकत प्रकट थयेली ते आवी. तेमणे तुरत तेनो सार लइ पोताना " जैनहितैषी " नामना सुसंपादित मासिक पत्रमा " खण्डगिरि और कलिङ्गाधिपति खारवेल" ए नामे एक संक्षिप्त लेख प्रकट कर्यो. ए लेख वांची म्हने ते संबंधी विशेष जाणवानी जिज्ञासा यइ अने हाथीगुफावाळा ए मूळ लेखने मेळववा प्रयत्न कयों; परंतु संयोगाभावे ते वखते कांइ सफळता मळी नथी. गये वर्षे, वडोदरामां वासस्थान थता " प्राचीनजैनलेखसंग्रह " छपावी प्रकट करवानो विचार थयो अने तेनी सामग्री एकत्र करतां, आर्किओ. लॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डीआना सने १९०२-३ ना वार्षिक रीपोर्ट ( Archaeological Survey of India, Annual Report I, 1902-03 ) मां खंडगिरि संबंधी थोडीक हकीकत जोवामां आवी तेमज फ्रेंच विद्वान डॉ. ए. गेरीनोट ( A. Guerinot ) ना Repertoire Depigraphic Jaina नामना पुस्तकमांथी ते पुस्तकर्नु नाम पण मळी आव्यु के जेमा हाथीगुफानो आ मूळ लेख, पंडित भगवानलाल इंद्रजी द्वारा शुद्ध रीते संपूर्ण स्पष्टीकरण साथे प्रकट थयेलो छे. ए पुस्तक सन १८८३ मां फ्रांसमां छपायेलं होवाथी वडोदराना जेवी सेंट्रल लाय. ब्रेरीमा पण मळी शक्युं नथी. बीजी पण केटलीक जग्याए तपास करावी पण काइ पत्तो लाग्यो नथी. अंते पूनावाळा श्रीमान् देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर एम. ए. के जेओ आर्किऑलॉजीकल सर्वे ओफ वेस्टर्न इन्डीआना सुप्रिन्टेन्डेन्टना उच्च अने प्रतिष्ठित पद उपर प्रथम ज हिन्दी तरीके अधिकृत थयेला छे अने जेमनो जैन इतिहास अने साहित्य उपर खास प्रेम होइ म्हारी साथे मित्रता भर्यो संबंध छे, तेमणे म्हने ए उप. र्युक पुस्तक मेळवी आप्यु. एज पुस्तकना मूळ आधारे आ प्रस्तुत पुस्तक जैनइतिहासरसिकोनी आगळ उपस्थित करवानो प्रसंग प्राप्त थयो छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थान परिचय. जे स्थाने खारवेलनो आ लेख आवेलो छे ते स्थान जैनप्रजाना वासस्थानथी घणा दूर अंतरे आवेलुं छे तेथी तेनी काईक ओळखाण आपवी आवश्यक छे. हिन्दुओ-वैष्णवोनुं प्रसिद्ध तीर्थ जगन्नाथपुरी जे प्रदेशमा आवेलं छे तेने हालमा ओरीस्सा अथवा ओढिया प्रांत कहेवामां आवे छे. ए प्रान्त हिन्दुस्थानना पूर्व भाग उपर बंगालना उपसागरने काठे आवेलो छे. प्राचीनकालमा ए प्रान्त कलिंग देशना नामे प्रख्यात हतो. अंग, बंग अने कलिंग-एम ए त्रगे देशोनी एक त्रिपुटी गणाती. 'प्रज्ञापनासूत्र' ना प्रथम पादमा जे २५॥ आर्यदेशो जणाव्या छ तेमां कलिंगनू पण नाम आपेलु छे अने तेनी मुख्य राजधानी तरीके कांचनपुरी जणावी छ+. ए प्राचीन कलिंग के आधुनिक ओरीस्सा प्रांतमां कटक शहेर नजीक भुवनेश्वर करीने एक प्रसिद्ध स्थान छे तेनी पासे आ लेखवाळी 'खंडगिरि अने उदयगिरिनी टेकरीओ जेने खंडगिरि ज कहे छे ते ( २०१६' उ. अक्षांश, अने ८५°४७' पू० रेखांश ) भुवनेश्वरथी उत्तर-पश्चिममां ४-५ माइल दूर आवेली छे. आ बे टेकरीओनी वचमां भुवनेश्वरना मार्गने अनुसरनारी एक खीण छे. अॅटघरथी चीलका सरोवर तरफ जता एक रेताळ पत्थरो + रायगिह मगह, चंपा अंगा, तह तामलित्ति पंगा य । ___ कंचणपुरं कलिंगा, वाणारसी चैच कासी य । परंतु ब्राह्मणोना आदित्यपुराणमां तो आ देशोने अनार्य गणाव्या छे अने एमां जवाथी ब्राह्मणो पतित थाय छ-एम लख्युं छे. यथा-'अंग-बंग-कलिंगाश्च लाट-मालविकास्तथा।' इत्यादि, तथा-वैताम्कामतो देशान् कलिंगांश्च पतेत् द्विजः ॥ "Aho Shrut Gyanam" Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाळा ( Sandstone ) पर्वतना एक भागमा ते आवे छे.+' मेजर कीड ( Kittoe ) के जेणे ज सर्वथी प्रथम (इ. स. १८३५ नी लगभगा) मा लेखनी संपूर्ण नकल करी हती, ते आ स्थाननो परिचय आपतां नीचे प्रमाणे जणावे छे. ___ खंडगिरि अने उदयगिरिनी टेकरीओ पत्थरीआ पहाडनी लांबी हारना भागो छे. आ पहाड ओरीस्सानी पत्थरनी टेकरीओना तळीआ नजीक थईने अॅटघर डेक्कुनल ( Autghar Dekkunol ) थी कुर्दा थई दक्षिण दिशामां चीलका सरोवर तरफ आगळ वधे छे. भुवनेश्वरथी उत्तर-पश्चिममा चार माइल दूर खंडगिरि आवेलो छ; अने कटकथी दक्षिण-पश्चिममां १९ माइल दूर छे. आ घे टेकरीओनी वचमां लगभग १०० यार्ड पहोळी एक खणि छे.........खंडगिरिना शिखर उपर बहु ज थोडी गुफाओ छे........उदयगिरिना दक्षिण तरफना शिखर उपर न्हानी न्हानी अनेक गुफाओ आवेली छे. लोकोमा एवी दंतकथा प्रचलित छे के उदयगिरिमां प्रथम ७५२ गुफाओ हती. आमांनी घणीखरी गुफाओ टूटी फूटी गई छे, तोपण हजी घणीक तद्दन आखी छे. अमुक कदनी कोई पण गुफा नथी. धणी खरी ६+४' लंबाई पहोळाईमां तथा ४ थी ५ फीट उंचाईमां होय छे. तेमनी आगळ एक एक ओटलो छ, तथा न्हाना हाना द्वार छे के जे पहाडमाथी कोतरी काढेला छे. केटलीक गुफाओ विचित्र आकारनी कोरी काढेली छे जेवी के ' सर्पगुफा ' ' व्याघ्रगुफा ' विगेरे.* " + बाबु मनोमोहन गंगुले रचित Orissa and her remains ancient and Medieval. * जर्नल ऑफ धी बेंगाल एसीयाटक सोसायटी पुस्तक ६, पृष्ठ १०७९ "Aho Shrut Gyanam" Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुफाओ संबंधी इकीकत. बाबु मनोमोहन गंगुले नामना एक बंगाली विद्वाने थोडा समय पहेलां ओरीस्साना प्राचीन अने मध्यकालीन ध्वंसावशेषोना विषयमा " Orissa and her remains ancient and medieval" ए नाम, एक सुंदर पुस्तक लख्युं छे. एमां तेमणे घणीज शोधपूर्वक ओरीस्साना प्राचीन इतिहासनी साथे तेना ध्वंसावशेषो-खंडेरोनुं सविस्तर वर्णन आप्युं छे. खंडगिरिनी गुफाओना विषयमां पण ए पुस्तकमां केटलुक सारुं लखवामां आव्यु छ जेमाथी प्रस्तुत उपयोगी काइक भाग आपवो अत्रे उचित थइ पडशे. बाबु मनोमोहन खंडगिरिना विषयमा लवे छे के " आ टेकरी उपर घणी गुहाओ आवेली छे. जेमा पहेला बौद्ध अने जैन श्रमणो रहेता हता, अने जेमांनी केटलीक इ. स. पूर्वे त्रीचा सैकाना पहेलांनी छे. आ गुहाओमां शिल्पकलानी उत्तमताना जुदा जुदा नमुना छे. केटलीक अने ते खास करीने खंडगिरिनी गुहाओ पशुओनी गुहाओ जेवी न्हानी छे तथा बीजी के टलीक काइक म्होटी छे. सामान्य रीते तेमा एक ओरडो अने तेनी आगळ ओटलो होय छे, केटलीकमां परसाळमां बे के त्रण भोयरा छे. म्होटी गुहाओमां बे माळ छे, अने केटलोकमां उपरनो माळ पाछळ पडतो छे. आ गुहाओ धणीज सादी छे. पाछळना ओरडामा पांच के छ भोयरां करवामा आव्यां छे, अने आगळ एक लांबी ओटलानी हार छे जेने स्तंभोनो टेको आयेलो छे. घणी खरी गुहाओ एवी छे के जेमना आगळना ओटलानी त्रण बाजुए १ श्री १६' सुधी उंची पत्थरनी पाटली आवेली छे. ओटलानी बे भीतो टोंच उप. "Aho Shrut Gyanam" Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रथी एवी रीते कोतरी काढवामां आवी छे के जेथी ते कबाटना देखाव प्रदर्शित करे छे. आमा बौद्ध अगर जैन साधुओनो थोडो सामान रहेतो. तेमनां द्वार घणा न्हानां छे, तेथी साधुओने पेटे चाली जवू पडतुं. राणी गुफा जेवी अगत्यनी गुफामां पण द्वारनुं माप ३"-११+२' छे. घणी खरी गुफाओमां बारसाखो अंदरथी ढाळ पडती होय छे. ए गुफाओ एवी नीची छे के कोई माणस तेमां सुखेथी रही शके नहि. पण ते साधुओने माटे हती तेथी तेमने तो ते योग्य ज हती. ओरडानां भोयरां लगभग " ना पातळा पत्थरना आंतराथी जुदां पाडेलां छे. भोयरानी भीतो उपर बौद्ध दंतकथानां तथा जैन तीर्थंकरोना चित्रो-आकारों उपसेलां काढ्यां छे. ओटलाना स्तंभो घणा ज सरल छे अने ते उपरथी तथा नीचथी चोरस अने बच्चेथी अष्टकोणाकृति छ घणा कोतरेला स्तंभोन वर्णन खंडगिरि टेकरीनी जैनगुफावाला वृत्तान्तमा आपवामां आव्युं छे. स्तंभोनी कोरणी सीधी नथी पण काइक चांकीचुंकी छे. आ स्तंभोमाथी ब्रेकेट्स आगळ पडता आवे छे अने तेमना उपर " म्होटां स्तनवाळी अने पाछळ पडता मुखवाळी" स्त्रीओनी आकृतिओ छे. ब्रेकेट्स कोतरी काढेला छे अने तेमनी वचमां वाकुं छे. घणु खलं, ओटलानुं छापरुं परसाळना छापराथी नीचुं छे. ___ उपर कहेवामां आव्युं छे के आ गुहाओ कारीगरीनी उत्तमतानी भिन्नता दर्शावे छे. केटलीक गुहाओमां तो रही शकाय तेवु छ अने केटलीक तो 'कुतरानी बोड' करतां भाग्ये ज म्होटी छे. आ उपरथी केटलाक युरोपीय अने तेमनी साथे केटलाक हिंदी विद्वानो पण भूल करे छे के जे गुहाओ म्होटी छे ते हाल करेली छे. डॉक्टर हन्टर आ प्रमाणे कहे छे:--' आ हानी गुहाओ हजु सुधीमां हाथ "Aho Shrut Gyanam" Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लागेलां हिंदुस्थाननां लोकोनां पहेलानां घरो छ." आ गुहाओना मूळ तथा उत्तरोत्तर वधारामां आ विद्वानो तेमनो विस्तार ( Evolution) गणे छे. खेदनी वात छे के आ शब्द ( Evolution ) अयोग्य स्थळे वापरवामां आवे छे. प्रो. हक्षलीए 'सायन्स अने कल्चर' नामना पुस्तकमां कयुं छे के “ केटलांक सत्यो दंभी शरु थाय छे अने शंकामा विराम पामे छे. " आ शब्दो अभिव्यक्तिवाद ( Theory of Fivolution ) ने माटे तद्दन खरा छे. उदयगिरिनी गुहाओनी उत्तरोत्तर वृद्धि शोधवानो मुख्य हेतु ( म्हारा धारवा प्रमाणे ) ए छे के, जे गुहाओ घणा कोतरकामवाळी छे ते अर्वाचीन छ अने ते परदेशी असरथी थयेली छे. तथा पत्थरनु शिल्पकाम ग्रीक लोकोए दाखल कयुं छे, आ बाबत पूरवार करावनारी छे. उदयगिरि अने खंडगिरिमां बौद्ध श्रमणो रहेता हता अने ते यात्रानां स्थळ हता. कलिंगना राजाओए जुदे जुदे वखते आ श्रमणो माटे तथा अन्य धार्मिक हेतुओथी आ गुहाओ तैयार करावी हत्ती. गरीब तथा तवंगर बधा, श्रमणो माटे, आवी गुहाओ खोदी तैयार करे ए घणी उंडी धार्मिक श्रद्धाने लीधे छ; अने खरेखर गरीब तथा तवं. गरना गजा प्रमाणे आ गुहाओ ' कुतरानी बोड ' जेवी अगर विशाळ थती. जो कोई तवंगरना महेलनी साथे ज कोईक भिखारीनी झंपडी आवी होय तो ते झुपडी महेल करता जुनी छे एम मान, भूलभरेलु नथी ! हवे आपणे बीजी रीते जोईए. धार्मिक श्रद्धानो प्रथम आविभर्भाव उदार कामोमां थाय छे अने वखत जतां ते रुढ ( Convent ional) थाय छे. तेथी प्ररुढ धार्मिकश्रद्धानो आविर्भाव कळानां "Aho Shrut Gyanam" Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामोमां थाय छे. तेथी करीने केटलीक गुहाओ मात्र 'कुतरानी बोड' करतां बहु म्होटी नथी." जैन गुफाओ. “ केटलीक गुहाओमां अने खास करीने जैन गुफा, नवमुनि गुफा, विगेरेमा जैन असर स्पष्ट जणाय छे. भीतो उपर तीर्थंकरोनी आकृतिओ उपसेली काढवामां आवी छे. डॉक्टर राजेन्द्रलाल मीत्रे तेमने भूलथी बुद्धनी छे एम कडं छे. सर्व गुहाओमां मळीने जैनतीर्थकरोनी नम मूर्तिओ बुद्धनी आकृतिओ करतां घणी वधारे छे. हा गुफा जेवी प्रख्यात गुफाना लेखमां पण जैन असर स्पष्ट जणाइ आवे छे. ए लेखमां जेने डॉक्टर राजेन्द्रलाल बौद्ध स्वस्तिक कहे छे ते खरी रीते जैन स्वस्तिक छे. वळी आरंभमां नमस्कार पण जैन रीति मुजब छे. आथी आपणे निर्णय उपर आवी शकीए के उदयगिरि अने खंडगिरिनी गुहाओमां जैन तथा बौद्ध बने असर व्यक्त थाय छे. केटलीक वखत बौद्ध तथा जैननो भेळसेळ थयेलो होय छे. बनारसमां सारनाथ आगळ एक जैन देवालय छे. बुद्ध गयामां पण एक जैन देवालय आवेलुं छे. खंडगिरिनी गुहाओमांनी शतघर अगर शतवक्र, नवमुनि अने अनन्त गुहाओ जरुरनी छे. आमांनी पहेली बेमां जैन असर व्यक्त छे अने बाकीनीमा बौद्धोनी असर छे. शतवक गुहाने एक ओटलो हतो, जेना उपर स्तंभो हता. तेनी अंदर सात न्हाना स्तंभो हता जे हाल जता रह्या छे. तेमां बे गुहाओ छे जेनी वचमा एक पातळी भीतनो आंतरो छे. तेमनां नाम, त्रिशूल अने बारभुजा गुहाओ छे. शतघर गुहामां दक्षिणना भागनी परसाळनी दिवालो उपर लांछनो साथे जैनतीर्थकरोनी आकृतिओ कोतरेली छे. परसालना डाबा खुणाथी शरु करीने तीर्थकरोनी आकृतिओनं वर्णन नीचे आपं छं. "Aho Shrut Gyanam" Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आ एक ऋषभदेवनी उभी नग्न आकृति छे अने तेनी पासे एक पोठीओ छे अने बे बाजुए उंचे हाथमा गायननां साहित्यो लइने उभेला चे सेवको छे. वळी बे बाजुए बीजा बे सेवको छे. तेमांना जमणा हाथ तरफना सेवकना हाथमां चामर छे तथा डाबा हाथ भणीना सेवकना हाथमा पंचपात्र छे. तेओ एक उंचा भाग उपर उभा छ. तथा ध्यानग्रस्त स्थितिमा पलाठी वाळीने बेठेली उपसेली बे आकृतिओ छे. तेमांनी डाबी आकृतिना हाथ छाती आगळ जोडेला छे अने जमणी आकृतिनी डाबी हथेली जमणी हथेली उपर मूकेली छे. आ आकृतिओनी नीचे बे नागणीओनी आकृतिओछे जे हाथ जोडीने प्रार्थना करे छे तथा जेमना उपर सर्पनी फणाओ आवेली छे. आनी नीचे वचमा एक बळदनी आकृति छे जेनी डाबी बाजुए नाळचावार्छ एक पाणी, वासण छे तथा जमणी बाजुए एक शंख तथा सिंह छे. बळद कुदरती रीते ज काढयो छे. तेना शरीरनी करचलीओ पण काढेली छे. (२) आ अजीतनाथनी लांबी नम आकृति छे. उपरनी बाजुए चंद्र आप्यो छे. उपरनी जे बे आकृतिओ छे ते हाथमा प्याला लइने उभेली ये स्त्रीओ छे. बच्चे बे सेवकोनी आकृतिओ छे तेमांनी डाबी आकृतिना हाथमां चामर छ, तथा जमणी आकृतिना हाथमा पंखो छ, निचेनी आकृतिओ (१) नी आकृतिओ जेवी छे. अहीं चिन्ह तरीके हाथी काढेलो छे. अने तेनी बे बाजुए सिंहो काढेला छे, ( ३ ) आ संभवनाथनी मूर्ति छे ते ध्यानग्रस्त स्थितिमा छे. ते एक प्रफुल्ल कमळ उपर बेठेली छे अने तेनी डाबी हथेली उपर जमणी हथेली छे. वच्चेनी बीजी आकृतिओ ( २ ) ना जेवी छे. अहीं घोडाने चिन्ह तरीके काढयो छे. डाबी बाजुए नाळचावाडं पाणीनुं वासण छे तथा बन्ने बाजुए बे सिंह छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) आ अभिनन्दननाथनी ' ध्यानी ' आकृति छे ते (३) ना जेवी छे; उपरना बे सेवकोने बदले बे कमळो छे. चिन्ह तरीके मांकडु चितरेलं छे. (५) आ ( ३) ना जेवी छे; डाबी बाजुना सेवकनो हाथ माथाना मुकुट उपर छे. चिन्ह तरीके हंस छे. आ सुमतिनाथनी आकृति छे. (६) आ ( ३ ) ना जेवी छे चिन्ह तरीके पद्म काढेलु छे. आ कमळनी जमणी बाजुए (३) नी माफक पाणी, वासण छे अने डाबी बाजुए कुंभ छे. आ पद्मप्रभुनी आकृति छे. (७) आ सुपार्श्वनाथनी ध्यानी आकृति छे. उपरनी आकृतिओने बदले अहीं आर्छ शोभावाढं काम करवामां आव्युं छे. अहीं चिन्हमा स्वस्तिक छ जेनी शाखामो घडीआळना क्रमथी उलटी दिशामां वाळेली छे. (८) आ (७) ना जेवी छे. पण उपर- आर्छ काम तेना करतां जरा जुदुं छे. चिन्ह तरीके अर्धचंद्र छे. आ चंद्रप्रभुनी आकृति छे. (९) आ (८) ना जेवी छ; अहीं उपरनी आकृतिओमां कमळो छे. चिन्ह तरीके मोर छे. आ आकृति जेवी बीजी एके नथी. कारण के कोईपण तीर्थकरने मोरनु चिन्ह नथी. (१०) आ (९) थी जुदी छे. तेमां तीर्थकरनी उभेली नम आकृति छे. चिन्ह जतुं रडुं छे. बे पोपटनी आकृतिओ छे. आ भाकृति जेवी बीजी नथी. (११) आ (१०) ना जेवी छे. पण नग्न आकृति उपर सर्पनी छाया छे. उपरनी आकतिओमां बे उडती परीमो छे. चिन्ह "Aho Shrut Gyanam" Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरीके एक अजाण्यो छोडवो छे. बन्ने बाजुए बे घडा तथा सिंहनी आकृतिओ छे. कदाच आ २१ मां तीर्थंकर नमिनाथ होइ शके. (१२) आ (१०) जेवी छे. आनुं चिन्ह स्पष्ट जणातुं नथी. कारण के हालमां तेनी आगळ एक हानी प्रतिमा घालेली छे. आना जेवी बीजी आकृति नथी. ( १३ ) आ ( १ ) ना जेवी छे. चिन्ह- म्होंढुं भांगी गयुं छे. (१४) आ (५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. अहीं चिन्ह तरीके एक मघर छे तेनी बे बाजुए थे सिंहाकृति छे. आ ९ मा तीर्थकर सुविधिनाथनी आकृति छे. (१५) आ ( १४ ) ना जेवी छे. अहीं ( १२) नी माफक चिन्ह उपर एक न्हानी प्रतिमा घालेली छे. आ आकृतिना जेवी बीजी जाणवामां नथी. (१६) आ ( १५ ) ना जेवी छे. सेवकोना हाथमां चामरो छे. चिन्ह भांगी गयुं छे, घणुं खलं ते हरण- हशे. आ १६ मा तीर्थकर शांतिनाथनी आकृति छे. (१७) आ ध्यानी आकृति छे; उपरनी आकृतिओ शोभा माटे छे. चिन्ह भांगी गयुं छे अने ते घेटा, होय तेम जणाय छे. १७ मा तीर्थकर कुंथुनाथनी आकृति छे. (१८) आ ( १५ ) ना जेवी छे. मच्छर्नु चिह्न छे. आना जैवी बीजी आकृति जाणवामां नथी अने कदाच ते कल्पित हशे. कारणके कोई पण तीर्थकरने मच्छर्नु चिह्न नथी. (१९) आ ध्यानी आकृति छे. उपरना भागमां कमळो छे. तेमां पाणीना वासणर्नु चिह छे तेथी ते १९ मां तीर्थकर मल्लीनाथनी आकृति छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) आ (१५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. एक कल्पित छोडनुं चिह्न छे तेथी २१ मा तीर्थंकर नमीनाथनी आकृति दर्शावे छे. (२१) आ (१५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. काचबानुं चिह छे. तेथी ते २० मा तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथनी आकृति दर्शावे छे. (२२) आ ध्यानी आकृति छे; उपरना भागमां देवांगनाओ काढेली छे. शंखनी निशानी छे अने तेनी बे बाजुए मोर छे अने तेथी ते २२ मा तीर्थंकर श्री नेमीनाथनी आकृति दर्शाये छे. (२३ ) आ एक उभी नग्न आकृति छे. उपरना भागमा कमळो छे. तीर्थकरना मस्तक उपर जळनी धारा करती होय तेम हाथमां कुंभ लइने बे देवांगनाओ काढेली छे. गेंडीनुं चिन्ह छे. आ आकृतिमां ११ मा तीर्थंकर श्रेयांसनाथ छे. ( २४ ) आ एक उभी नग्न आकृति छे. उपरनी बाजुए (१) नी माफक गायननां साहित्यो सह अप्सराओ उभेली छे. सिंहनु चिन्ह छे. अने छेल्ला एटले २४ मा तीर्थंकर महावीरस्वामीनी आकृति छे. * निम्नगत, जैन कोषकर्ता हेमचंद्रनी कडीओ उपरथी एम जणाशे के उपरोक्त आकृतिओ उपसेली काढवामां अमुक शैली अनुसरवामां आवी ज नथी. केटलीक आकृतिओ पुनः पुनः आवी छे तथा केटलाक तीर्थकरोने काढी नांखवामां आव्या छे. ११ मी अने २० मी आकृतिओमां २१ मा तीर्थंकर नमीनाथ आपवामां आव्या छे. तीर्थकरोने चिन्हो सह कालगणना प्रमाणे गोठववामां आव्या छे. केटलीक* वृषो गजोऽश्वः प्लवग: क्रौञ्चोऽनं स्वस्तिकः शशी । मकरः श्रीवत्सः खड्गी महिषः शूकरस्तथा ! श्येनो वजं मृगच्छागौ नन्दावों घटोऽपि च । कूमो नीलोत्पलं शंख: फणी सिंहोऽहतां ध्वजाः ॥ (श्री हेमचंद्रः) "Aho Shrut Gyanam" Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ वार आक्रमनो भंग करवामां आव्यो छे, परंतु क्रमभंग सलाटोना अज्ञानने लोवे छे. ९ मी अने १८ मी आकृतिमां जणाव्या प्रमाणे जैन शास्त्रमां नहि कहेली एवी आकृतिओ काढवा परथी तेमनुं अज्ञान साबीत थाय छे. त्रिशूळ गुहानी उत्तरमां बारभूजा छे अने तेनी साथे नवमुनि गुदा छे. नवमुनि गुहा एक साधारण गुहा छे, तेमां वे ओरडा छे अने एक ओटलो छे. आ गुहानी जरुर एटली ज छे के तेमां जैन श्रमण शुभचन्द्र विषेो एक लेख छे अने तेनी मिति ई. स. १० मी सदी छे. आर्कीओलॉजिकल सर्व्हे रिपोर्ट पु. १३ ना प्रकाशके आ कोतरेली आकृतिओ बुद्धनी छे एम गणवामां भूल करेली छे. ई. स. १८ मी सदीना अंतमां खंडगिरिना शिखर उपर मराठाओए बंधावेला जैन देवालय विषे सहज सूचना करूं छं. कीट्टो ( Kittoe ) घारे छे के हालनुं देवालय कोइक चैत्यनी जग्या उपर बांधेलुं छे, कारण के त्यां जुना मकानोनी सामग्री तेने जडी हती. पण कोट्टोना कहेवा प्रमाणे त्यां कोई जुनुं देवालय पहेला होय तेम म्हने लागतुं नथी. आ जैन देवालयथी पश्चिमे अने लगभग सपाट जमीन उपर केटलाक उभा चोरस पथ्थरो छुटा छवाया पड्या छे अने कर्नीम्हामना कहेवा प्रमाणे ते चैत्यो दर्शावे छे. आ ' देव सभा ' छे. कदाच आ नाम ए जम्यानुं ज होय. नाइट्रोग्लीसराइन, फोडवानां दारु, गनकॉटन, कीसलगढ अगर नोबल डायनेमिक विगेरे पदार्थोनी शोध थयां पईला आवा खडकने * कोडोनुं जे. ए. एस. बी. पु. ६ पा. १०७९. ९ कनरहामनो आकओलॉजिकल सर्व्हे ऑफ इंडिया, पु. १३, पा. ८०. "Aho Shrut Gyanam" Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ए estadt केलं अवरुं काम हशे ते मात्र कल्पनामां ज आवी शके, पण अहीँआ पथ्थरो पोचा तथा काणांवाळा छे तेश्री खोदाणकाम सदेलाइथी थइ शके तेम छे. सामान्य रोते मुख्य खडकथी दूर ढाळ पडती जमीनथी गुहाओ खोदवामां आवो छे, ज्यां बनी शके त्यां बहार जोवाने बाकां करेला छे. म्हारे कहेवानी जरुर नथी के आ बाकां रेल्वेने माटे खडको कोरतां जोवामां आवे छे तेवा छे. त्यां पाणी जवानी रीत संतोषकारक रीते राखवामां आवी छे. आ उपरथी प्रीन्सेप उपर एवी सज्जड असर थइ के तेणे जर्नल ऑफ घी एशियाटिक सोसायटी, पु. १६ पा. १०७९ मा नीचे प्रमाणे लख्धुं छेः 44 - . ओरडामाथी पाणी जवाने माटे एक अदभुत युक्ति वापरी छे, नहि तो पथ्थरना छिद्राकुपणाने ही चोमासामा पाणी टपकत. तेथी छतमां नानां छिद्रो कर्या छे अने ते सर्व नीचेना खुणामां भेगां थाय छे. ज्यां आगळ बहार पाणी जत्रा माटे एक म्होढुं बाएं राख्युं छे. " ओरडानी छत घणीवार जराक वांकी देखाय छे. जैनगुफानी छतनो उठाव तथा पहोळाईनुं माप म्हें लीधुं छे अने तेथी मालुम पड्युं के तेना उठाव अने पहोळाईनं जे प्रमाण छे ते हाल पण हरकोई इजनेर कबूल करे तेवुं छे. " प्रसिद्ध गुफाओ अने तेमनो इतिहास. - खंडगिरि उपर जे न्हानी म्होटी सेंकडो गुहाओ के तेमां हाथीगुफा, अनन्तगुफा, राणीगुफा, बैकुंठगुफा, माणेकपुर गुफा, जयाविजयागुफा, गणेशगुफा, स्वर्गपुरीगुफा, शतवत्र अने नवमुनिगुफा आदि गुफाओ विशेष प्रसिद्ध छे, आमां केटलीक गुफाओ बौद्धधर्मनी " Aho Shrut Gyanam" Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे अने केटलीक जैनधर्मनी छे. परंतु परस्पर बने धर्मनी सेळमेळ थइ जवाना लीधे तथा बने धर्मोमां जे केटलोक समानता छे तेना लोधे, आ गुफा-समूहमांधी केटली अने कइ जैनोनी छे अने कइ बौद्धोनी छे ते बरोबर तारवी शकाय तेम नथी. आ बधी मुहाओ एकी वखते बइ नयी परंतु जुदा जुदा समये बनी छे. बाबू मनोमोहन जणावे छे के "आ गुहाओनो इतिहास अंधारामां रखो छे अने घणा विद्वानोर ते इतिहास जाणवाने निष्फळ प्रयत्नो कर्या छे. हिंदुस्थानना आ भागनी गुहाओनो पश्चिम विभागनी गुहाओ साथे घणो संबंध नथी. तेथी मिति शोधवामां तथा नक्की करवामां शोधक आडे मार्गे चढी जाय तेम छे. हाथीगुकाना [ आ ] लेखथी ओरीस्साना आ अंधा. रामा रहेला इतिहास उपर अजवाडं पडे छे. पंडित भगवानलाल इन्द्रजीना बांचवा प्रमाणे ते गुहाओनी मिति धणामां घणी इ. स. नी बीजी सदी होइ शके. तेमना कहे वा प्रमाणे आ गुफा जैन राजा खारवेले खोदी काढी हती. लिपिना अक्षरो उपरथी एम कही सकाय के घणी खरी गुहाओ इ. स. पूर्व बीजा अगर त्रीजा सैकामां खोदी का. ढेली छ; अने इ. स. पूर्वे चोथा अगर पांचमा सैकामां पण ते थयेली होय एम कहेवामा काइ खोटुं नथी; एटले के हाथीगुफा लेखनी पहे. लांना समयमां; कारण के जे स्थळे आ गुहाओ छे ते स्थळने धार्मिक लोको घणा समयर्थी पवित्र गणता होवा जोइए." काळगणना. " आ गुहाओनी चोकस रीते कालगणना करवी ए तद्दन अशक्य छ. अने जैन तथा बौद्ध गुहाओना सेळभेळना लीधे अशक्यता वधी छे. भिन्न भिन्न विद्वानोए तेमनी भिन्न भिन्न मितिओ नकी करी छ ए ज "Aho Shrut Gyanam" Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेनी अशक्यता पूरवार करे छे. दाखला तरीके अनंतगुहा जेनी मिति जुदा जुदा लेखो प्रमाणे चार सैकामां आवे छे. 'केव टेम्पल्स ऑफ इन्डिआ ' ना कर्ताओए तेनी मिति इ. स. पूर्वे २०० भने १५० नी वचमा मूकी छे. कनिंगहामे* ई. स. नी बीजी के त्रीजी सदीमां गणी छे. गुहानी भीतो उपरना लेखोथी आ बाबत नकी थइ शके तेम नथी, कारण के ते लेखो चोकस नथी; तेमना अर्थ जुदा जुदा थइ शके छे अने एक ज अर्थ थाय तो पण कालगणना विषे भिन्न भिन्न निर्णयो कढाय छे. दाखला तरीके हाथीगुफा लेखनी मिति डॉक्टर मित्रे इ. स. पूर्वे ३१६ अने ४१६ नी मध्ये मूकी छे. अने प्रीन्सेपे अशोकना लेखो करतां अर्वाचीन राखी छे. ' कॉरपस इन्स्क्रीप्श्यॉनम् इन्डिकॅरम' नो फर्ता प्रीन्सेपना मतने मळे छ, अने ई. स. पूर्व १७५ अने २०० नी वचमा मूके छे. वळी भगवानलाल इन्द्रजीए प्रीन्सेप, मित्र, विगेरेना मत खोटा गण्या छे अने पोतानी एक नवी मिति नक्की करी छे, जे ई. स. पूर्व १५८ अने १५३ नी वच्चे छे. हालमां ' जर्नल ऑफ रॉयल एशियाटीक सोसायटी ' ना एक अंकमां डॉक्टर फ्लीटे आ मत विषे पुनः शंका करी छे. आ उपरथी एम जणाशे के जुदा जुदा विद्वानोना मत जुदा जुदा पडे छे. आ हरकत हमणा वधी छे; कारण के बखत जतां अक्षरो वधारे घसाइ गया छे. तेथी ज शिल्पकाम उपरथी तेनी मिति नकी करवानो म्हें प्रयत्न कर्यो छे." __ " मुख्य मुख्य गुहाओना खोदाण कामनी शक्य मितिओ नीचेना कोठामा आपुं छं. * कनिंगहामनो ' आर्किऑलॉजीकल सर्वे ऑफ इन्डिआ, पु. १३ (१८७५-७६) पृष्ठ ... "Aho Shrut Gyanam" Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबर. गुफा. मिति. हाथीगुफा. ई. स. पूर्वे ३००. अनन्तगुफा. " २५० थी २००. राणीगुफा. २०० थी १००. जया-विजया. २०० थी १०.. गणेशगुफा. १०० थी १. स्वर्गपुरीगुफा. , १०० थी १. शतवक्र, नवमुनि नेवी , ५० थी ई. स. १००. जैन गुफाओ. खंडगिरिनी जैन गुफाओनो समय नक्की करवामां घणी हरकतो आवे छे. म्होटा स्तंभो अने जैनतीर्थंकरोनी म्होटी प्रतिमाओ उपरथी एम स्पष्ट थाय छे के ते बौद्ध गुहाओथी अर्वाचीन छे. संस्कृत कोषकार अमरसिंहना ई. स. ना छठा सैकामां बंधावेली होवी जोईए एम धारवामां आवे छे. परंतु गयाना जैन देवालय करता आ जैन गुहाओ नक्की प्राचीन छे एम कही शकाय. हाथीगुफाना लेखमा जेनी अर्वाचीनमा अर्वाचीन मिति ई. स. पूर्व बीजी सदीनी मध्यमा छ, मां खारवेलना महान् जैनवंश विषे उल्लेख करेलो छे. आ विगत उपरथी आपणे एम अनुमान करी शकीए के हाथीगृहानी नजीकमा जेनश्रमणो माटे गुहाओ खोदवामां आवी हशे. कळी उदयगिरि उपर घणी बौद्ध गुहाओ छे अने तेथी बौद्धोथी जुदा रहेवा माटे जैन साधुओए खंडगिरि पसंद कयों होय अने ते ई. स. पूर्व पहेला सैकार्थी ई. स. ना पहेला सैकामां होई शके. " "Aho Shrut Gyanam" Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " परंतु नवमुनिगुहामा एक लेख छ जेमा उद्योतकेशरी जे ई. स. ना १० मा सैकाना प्रथम २५ वर्षमा थयो एम म्हें आठमा प्रकरणमा पूरार कर्यु छे, तेना विषे उल्लेख छे. आ गुहामा एक जैनश्रमण कुलचंद्रनो शिष्य रहेतो हतो एम धारवामां आवे छे. आ लेख उपरथी एम निर्णय थई शके के आ गुहा दशमा सैकामां खोदाई हशे; पण ज्यारे . गणेशगुफा, जे ई. स. पूर्व सातमा सैकानी बौद्धगुहा छ तेनी परसाळमां गणेशनी आकृति अगर खंडगिरिनी एक जैनगुहामां हिंदुदेवी दुर्गानी आकृति जोईए छोए त्यारे ए निर्णयमा शंका उत्पन्न थाय छे. जो एम कहीए के गणेशगुहा अगर जैनगुफा ब्रामणगुफाओ छ, कारण के त्यां हिंदु देवो जोवामां आवे छे, तो ते अयोग्य गणाय. खरी रीते आ आकृतिओ पाछळथी धुसाडवामां आवी छे. केटलांक कारणो उपरथी तथा उद्योतकेशरी एक जैनोनो म्होटो पोषक हतो ते उपरथी एम बनी शके के आ लेख खोटो छे अने ते गुहा थया पछीनो छ, तथा पोताना विचारोनी उदारताने माटे जे वखणायो हतो तेना मानमा मात्र आ लेख कोतरेलो होवो जोईए." हाथीगुफा. उपर वर्णवेला गुफा-समूहमा ज प्रस्तुत लेखवाळी हाथीगुफा पण आवेली छे. आ गुफा उदयगिरिना शिखर उपर छे. आना विषयमां बाबू मनोमोहन ए जे पुस्तकमां जणावे छ के-" हाथीगुफा एक नैसर्गिक गुफा छे. तेना उपर घणी ज थोडी कारीगरी करवामां आवी छे अने जो के शिरुषीनी नजरथी ते बहु उपयोगी नथी तो पण त्यांनी सर्व गुफाओ करता ते घणीज महत्त्वनी छे. कारण के "Aho Shrut Gyanam" Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेमां एक म्होटो लेख छे, जेमां कलिंगना एक राजार्नु स्ववृत्तांत लखेलं छे. डाक्टर भगवानलालना वांच्या पहेलां आ लेख हिंदुस्तानमा जुनामां जुनो गणातो अने जो के हाल ते प्रमाणे मनातुं नथी तो पण आ गुहानी उपयोगिता जरापण ओछी थइ नथी. एने प्रथम शोधी काढनार मी. ए. स्टलींग हता. अने कर्नल मेकेन्झीनी मददी १८२० मा तेनी नकल लीघी अन पोताना घणा उपयोगी लेख “ एन एकाउन्ट, जोसोफीकल, स्टेटीस्टीकल, एन्ड होस्टोरीकल ऑफ ओरिस्सा प्रोपर, और कटक" ( An Account Geogrophical, Statistical, and Historical of Orissa Proper or Cattack ) साथे एशीयाटीक रीसर्चीस ( Asiatic Researches ) पु. १५ मां १८२४ मां भाषांतर विना प्रकाशित कों. मी. स्टींग आ लेख वांचवाने अशक्तिमान हतो अने तेथी ग्रीक अक्षरो साथे तेना अक्षरोनी सरंखामणी, तथा हिंदुस्तानना जुदा जुदा भागोना लेखोमांना अक्षरो साथे मेळववा शिवाय ते काइ करी शके तेम नहोतो. १८३७ मां 'जर्नल ऑफ पी एशियाटीक सोसायटी ' पु. ६ मां लेफटेनन्ट कीटोनी नकल उपरथी जेम्स प्रीन्सेपे भाषांतर तथा नकल सहित आ लेख प्रकाशित कयों छे. तेमना करेला भाषांतर उपरथी अहीना विद्वानोनुं ध्यान ते तरफ खेंचायु. डाक्टर राजेन्द्रलाले ते लेख पुनः तपासी जोयो अने १८८० मां केटलाक फेरफारोसह 'एन्टीक्वीटीझ ओफ ओरिस्सा' पु. २ मां प्रकाशित को. श्रीन्सेप तथा मित्रनो मत एवो छ के ए लेख कलिंगना राजा भैरनो हतो, जे राजा मूळ राज्य पचावी पख्यो हतो अने जेणे घj "Aho Shrut Gyanam" Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ दान कर्यु, तळावो खोदाव्यां अने आवाज बीजां जनहितनां कामो करीने लोकोनो मानीतो थयो प्रीन्सेपना मत प्रमाणे ए लेख ई. स. पूर्वे २०० वर्षथी जुनो नथी. ' कॉरपस इन्स्क्रीप्श्योनम् इंडीकेरम् ( Corpus Inscriptionum Indicarum ) ना कर्ता प्रीन्सेपना मतने मळे छे अने धारे छे के ए लेख अशोकना लेखोथी जुनो नहीं होई ई. स. पूर्वे बीजा सैकाना छल्ला पचीस वर्षमां थएलो छे. 'कारण के कोईपण अक्षर उपर माथु के मात्र दोरेला नथी. ' परंतु डाक्टर मित्र ए लेखने ई. स. पूर्वे ४१६ ने ३१६ नी बच्चेनो गणे छे. तेमनो निर्णय ई. स. पूर्वे ४१६ थी ३१६ सुषी राज्य करनार नव नन्दोमांथी एक नंदराजा उपर आधार राखे छे. जे भागमां (लौटी ६ ) नंदो विषे कहेवामां आव्युं छे ते भागनुं भाषांतर हुं नीचे आपुं छु: " रत्नो—बधी सामग्री ते देवने आपे छे. त्यारबाद दान - करवानी इच्छा थवार्थी-नन्द राजानां नाश करेला सो महेलो, अने तेने पण काढी मुकेलो, अने विजयनादी जे कांई हतुं ते सर्व लूटने उपर कर्त्तुं ते प्रमाणे दानमां वापरी दीधी. * गुहा बौद्धनी छे. कारण श्रीन्सेप अने मित्रना मतप्रमाणे आ के एना लेखमां बौद्धनां चिन्हो नजरे पडे छे. परंतु डाक्टर भगवानलाल इंद्रजीए ते जैननी छे एम पूरवार कर्तुं छे अने ते खारवेलनी बनावेली छे एम कहुं छे. आ लेखनी छेल्ली अगर १७ मी लीटीमां खाखेनुं नाम आवे छे. भगवानलालना मत प्रमाणे आ लेखनी मिति मौर्यसन १६५ अगर ई. स. पूर्वे १५७+ छे. मौर्यसन ई. स. पूर्वे * जे. ए. एस. बी. पु. ६० + Actes du Sixieme Congres or, 174-177. "Aho Shrut Gyanam" tome iii. pp. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२१ थी शरु थाय छे, तेथी गुन्हानो वधारेमां वधारे जुनो वखत ई. स. पूर्व बीजा सैकानो होइ शके, हालमा डाक्टर फ्लीटे ' जर्नल ऑफ घी एशीयाटीक सोसायटी ऑफ ग्रेटबीटन ' ना एक अंकमा प्रकट कर्यु त्यार पहेलां वीन्सेन्ट स्मीथ विगेरे शोधकोनो पण तेवोज भत हतो. पंडित ( भगवानलाल )नु मत मने पसंद नथी, पण ई. स. पूर्वे श्रीजा सैकाना अंतमां होई शके एम हुं धारुं छं. एटले के मगधनी गादी उपर अशोक आव्यो ते पहेलां. डाक्टर फरग्युशन अने बरगेसना मतप्रमाणे ' आ लेखनी मिति घणुं खलं ई. स. पूर्वे ३०० छे. ' तेओ कहे छे के अशोकना राज्यथी, खडकोमाथी भोयरां खोदी काढवानी रीति शरु थह अने त्यारबाद उत्तरोतर प्रगतिथी आ काम १००० वर्ष सुधी चाल्यु. ____ आ लेखनी १६ मी लाटीमां कहेवामां आव्युं छे के आ राजाए 'जमीननी तळे ओरडा; तथा देवालय अने स्तंभोवाळां भोयरां कराव्यां,' आ उपरथी आपणे एम कहीं शकीए के हाथी गुफानी पासे तेना जेटली जुनी बीजी गुहाओ छे. जो के ते आपणे निश्चयपूर्वक कही शकीए नहिं. वळी आपणे एम पण कही शकाए के चैत्य, देवालय तथा स्तंभोवाळी गुहाओ करतां बीजी जुनी गुहाओ हशे." कलिंगमो संक्षिप्त इतिहास. आ प्रमाणे खंडगिरि अने त्यांनी गुफाओगें वर्णन छे. कालना महात्म्यनी गति अकल छे. जे जैन अने बौद्धधर्मना श्रमणो माटे १ वी. स्मीथनी 'अली हीस्टरी ऑफ इंडीआ' पा. ३५ ( टीप ). २ फरग्युसन अने बरगेशनी ' केवटेम्पल्स ऑफ इंडीआ' पा. ६७. "Aho Shrut Gyanam" Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ बधां ' लयनो' बनाववामां आव्यां छे तेमां भाजे सेंकडो वर्षेथी ए धर्मना कोईपण श्रमणे तो शुं परंतु गृहस्थे पण पग सुधां नहि मूक्युं होय, जे प्रदेशमा पूर्वे जैनधर्म आटली बधी जाहोजलाली भोगक्तो हतो त्या आजे : जैन ' ए शब्दधी पण लोको सर्वथा अज्ञात छे. कटकमां थोडाक जैन दुकानदारो छे अने तेमना तरफथी एक न्हार्नु सरखं (दिगंबर संप्रदायर्नु) नवीन मंदिर पण खंडगिरि उपर बनाववामां आवेलुं छे, परंतु ते बधु परदेशीय छे. ए दुकानदार जैचो दक्षिणमाथी व्यापारार्थे जइने त्यां वसेला छे. ओरीस्साना मूळ वतनीओमांथी कोई पण जैनधर्मने ओळखतो नथी. ओरीस्तानो इतिहास यथार्थ रीते हजी सुधी उपलब्ध थयो नी तेथी ए जाणी शकातुं नथी के ए प्रदेशमां जैनधर्मे केटली प्रगति करी हती ? सोपण ना गुफाओ अने लेखो उपस्थी विद्वानो अनुमानो करे छे के घणाक समय सुधी जैनधर्म ए प्रदेशमा राज्यधर्भ तरीके पळातो रह्यो छे. जैन अने बौद्ध धर्म बंने साथै साथे ज आ प्रदेश उपर खील्या होय एम जणाय छे अने तेमनी असर ब्राह्मणधर्म उपर पण फेटलीक रीते सज्जड थयेली मनाय छे. आ विषयमा बाबू मनोमोहन लखे छे के ___" इसवी सननी शरूआत पहेलां अहीं जैनधर्म तथा बौद्धधर्म प्रवर्ततो हतो अने तेमनी असर हिंदुधर्म अथवा खरी रीते कहीए तो ब्रह्मधर्म उपर थइ हती. ब्रह्मधर्मनो बौद्ध अगर जैन धर्मनी साथे मेळाप थतां कळा कौशल्यना दरेक विभागमा फेरफार थया; शिल्पकला पण तेनी असरथी अळगी रहे तेम नहोतुं. बौद्धधर्मनी सर्वव्यापी असर हजु पुरीमा दृष्टिगोचर भइ शके छे." "Aho Shrut Gyanam" Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ओरीस्सा ई. स. पूर्वे ३ जी सदीथी ई. स. नी । अगर ९ मी सदी सुधी जैन अने बौद्धधर्मनु मुख्य स्थळ हतुं, ए मानवाने आपणी पासे खास कारणो छे. ई. स. पूर्वे २६२ मां महान् मौर्य राजा अशोके कलिंग देश जीत्यो त्यारथी बौद्धधर्मनी असर थवा लागी; आ जीतमा घणां माणसोनो घाण निकळी गयो, ते वात तेना शिलालेख (Rock edict) नं. १३ मां मोजुद छे. सुधारानी असर थती गइ अने क्रमे क्रमे कलिंग देश आगळ पडतो थवा लाग्यो. जो के केटलाफ अशोकना लेखो मैसुरना उत्तर भागमां मळी आवे छे तोपण डॉक्टर भांडारकर, वीन्सेन्ट स्मीथे, विगेरे विद्वानो कलिंगने अशोकना राज्यनी दक्षिणसीमा गणे छे. बौद्धधर्मना प्रवर्तनना लीधे तेमज समुद्रना किनारा उपर आववाना लीघे कलिंगदेश अन्य देशोना संबंधमा आवतो गयो; तेनुं दरियाई बळ घणा वखत सुधी रघु हतुं, अने हवे तेमां नवो उत्साह उमेरावाने लीधे ते व्यापारनुं मुख्य मथक बन्यु. ई. स. पूर्व ७५ मां कलिंगथी निकळेला एक लाकरे जावा सर केयु. ज्यारे ई. स. ६२९ अने ६४५ नी वच्चे हुऐनसांग ( Hiuen Tsang ) उन्य अगर ओरीस्सा आव्यो त्यारे तेणे बौद्धधर्मनी असर दविनारा घणा म्होटा ' संघारामो । स्तूपो' विगेरे जोयां. तेणे कोई पण हिंदु देवालय विषे उल्लेख करेलो नथी. चे-ली-त-लो-चींग अगर चरित्रपुर अथवा हाल- पुरी, तेनी बहार तेणे " टावर सहित उंचा शिखरोवाळा साथे साथे पांच स्तूपो" जोयां.* आ स्तूपो घणा वखत १ डॉक्टर फ्लीटतुं 'बॉम्बे गेझेटीअर' पु. १. तथा, डॉ. भांडारकरनो 'दक्षिणनो इतिहास' भा. १. २ वी. स्मीथनी · अली हीस्टरी ऑफ इन्डीआ' पृष्ठ १३१. ३ 'साइकलोपीडाला ऑफ इन्डिा , पु. २.( १८८५). * कनांगहामनी अनश्यन्ट जोग्रॉफी ऑफ इन्डीआ.' "Aho Shrut Gyanam" Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थयां जमीनदोस्त थई गयां छे, परंतु बौद्धनी असरनुं जे काई गुफाओमां हाल बाकी रह्यो छे ते उपरथी बौद्धधर्मनी चढती विष ख्याल आवी शके. हिंदुओने प्रिय एवा जगन्नाथ विषे बौद्धधर्मे घणी सचोट असर करी छे." __ " हाथीगुफा लेखमां पंडित भगवानलाल इंद्रजीए वांच्यु ते प्रमाणे तेनी मिति ई. स. पूर्व बीजा सैकानी वचमा छे अने तेनो कर्ता कलिंगनो राजा अने जैनधर्मनो उत्तेजक खारवेल छे. आपणे खारवेल तेमन तेना वंश विषे काई पण जाणता नथी, मात्र उदयगिरिनी स्वर्गपुरी गुहाना एक लेखमां तेनी स्त्रीन नाम जोवामां आवे छे. आ छूटी छूटी हकीकत उपरथी एम साबीत थाय छे के कलिंग देश उपर जैन राजाओं एक वखते राज्य करता हता. खंडगिरि अने उदयगिरीनी गुहाओ उपरथी स्पष्ट रीते जैन अने बौद्धधर्मनी असर दृष्टिगोचर थाय छे." " जैनधर्म कलिंगदेशमां एवां सज्जड मूळ घाल्यां हतां के जेनी असर आपणे ई. स. ना १६ मा सकामां पण जोई शकता हता. सूर्यवंशी राजा, ओस्सिाना अधिपति प्रतापरुद्रदेवने जैनधर्म विषे घणी ममता हती. धी रेवरन्ड लाँगे तेने जैन ठराव्यो छे. + खंडगिरि उपरनी नवमुनि गुहामांना एक लेखमा जैन श्रमण शुभचंद्रनुं नाम जोवामां आवे छे. " " आवी छूटी छूटी विगत उपरथी आपणे निर्णय उपर आवी शकीए के अहींआ केटटोक बखत जैनधर्मनुं जोर हतुं अने ते राज्य + ' जर्नल ऑफ एशीयाटीक सोसायटी ऑफ बेंगाल ' पु. २८, नं. १-५ ( १८५९). "Aho Shrut Gyanam" Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म हो ई. स. नी शरुमातमा कया कया वंशो कलिंग उपर राज्य करता हता तेना विषे चोकस रीते जाणी शकी तेम नथी; पण पटलं तो आपने जाणीए छीए के हिंदुस्थानमा मुदा जुदा देशोना राजाओए कलिंग देश जीत्यो हतो. तेनी समृद्धि विषेनी प्रख्याति घणे दूर सुघी पहोंची इती. अने तेथी पासेना राजाओगे ते देश जीतवानी उत्साह थतो. कलिंग देश घणो समृद्धिवान् हतो, ए नीचेनी विगत उपरथी कही शकाय :- कलिंग देश ' नवखंड पृथ्वी ' ना नव खंडोमाथी एक खंड गणातो हतो; ए प्रमाणे तामील शब्दकोघोमां जणान्युं छे. (जुओ सेन्डरसननो कानडी कोष. ) " 在 रामायण अने महाभारतनो वखत बाद करतां त्यार पछीना वखतमां जे जे राजाओए ते देश उपर हमला कर्या ते राजाओ एटला बधा छे के तेमनुं वर्णन थई शके तेम नथी. ई. स. पूर्वेना ३ जा सकामां अशोके ते देश जीत्यो ए विगत म्हें उपर आषी छे. घणे भागे अन्ध्रवंशना राजा शातकर्णीना हुमला विषे हाथीगुफाना लेखमां आपवामां आव्युं छे. तेणे " घणा घोडा तथा हाथीयो " मोकल्या पण ते बधा खारवेले हरायी. " (< ई. स. ना बीजा सैकानां कलिंगदेश अन्त्र राजाओना हाथमां गयो, मंगलेश राजाना स्तंभलेख उपरथी आपणे जाणी शकीर छीए के बदामी (Badami ) ना पश्चिमीय चालुक्योना राजा पहेला कीर्तिवर्मा जेणे ई.स. १६७-६८ थी २९७-९८ सुधी राज्य कर्यु, तेणे कलिंगना राजाने हराव्यो तेज वंशना कीर्तिवर्माना पुत्र बीजा पुलकेशीए ई. स. सातमा सैकामां ते जीत्यो अने ते वखते कनोजमां हर्षवर्धन राज्य करतो हतो. " १वी. स्मीथनी 'अहिस्टरी ऑफ इन्डीओ ' पू. १८५. "Aho Shrut Gyanam" Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ “ ई. स. ८ मा सैकानी मध्यमां राष्ट्रकूटना राजा दन्तिदुर्गे कलिंगदेश जीत्यो, पुनः ई. स. ९ मा सैकामां जैनधर्मना पोषक अकालवर्षे ते जीत्यो. ज्यारे ज्यारे बखत मळतो त्यारे त्यारे पूर्वना चालुक्यो ते देश उपर हमलो करता. ई. स. ना ११ मा सैकामां पूर्वीय चालुक्योना राजा राजराजदेवे तेना उपर स्वारी करी. "* महान संस्कृत कवि कालिदास ई. स. ना ७ मा सैकामां थयो, तेथी नैसर्गिक रीते तेणे रघुनी जीतनो देखाव कलिंगमां मूक्यो इशे + ई. स. ना १२ मा सैकामां लखायला राजतरंगिणिमां कल्हण पंडिते ललितादित्यनी कलिंगनी जीत विषे घणुं रसमय वर्णन आप्युं छे. 8 66 कलिंगदेश जीतवो ए मात्र उपचार थर पढ्यो अने ' कलिगाधिपति ' ए इस्काब घणो मानवंतो थयो; कारण के कोसल तथा चालुक्योना राजाओनी पाछळ ' त्रिकलिंगाधिपति 'नो इल्काब जोडेलो आपणे जोइए छीए. " $6 ई. स. ९ मा सैकाना आरंभ सुधनो ओरीस्सानो इतिहास अस्तव्यस्त स्थितिमां छे. त्यां एक जोरावर वंश राज्य करतो हतो, ए ना कही शकाय तेम नथी, परंतु एक पछी एक कथा राजाओ * डॉ. इ. हुल्टझना • दक्षिणाना लेखो ' पृ. ६३. + स तीर्खा कपिशां सैन्यैर्बद्ध द्विरदसेतुभिः । उत्कलादर्शितपथः कलिङ्गाभिमुखं ययौ ॥ रघुवंशम्, ४-३८. $ ' राजतरंगिणी ' इंग्रेजी भाषांतर, कर्ता डॉक्टर स्टेन, पु. १, भा. ४, १४७ मोोक, पृष्ठ १३४. " Aho Shrut Gyanam" Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेनी गादी उपर आव्या ए नक्की कर सरल नथी कारण के तेनी सत्तावार विगत मळती नथी." कलिंगमाथी जैनधर्मर्नु निर्वासन. कलिंगना आ संक्षिप्त इतिहास उपरथी जगाशे के ते देशमा एक वखत जैनधर्मे घणी उंची सत्ता भोगवी हती. आवी उन्नतदशाए पहोंचेलो जैनधर्म ते देशमाथी पाछळथी एटले सुधी विलुप्त थइ गयो के तेनुं नाम के निशान पण आजे त्यां जणातुं नथी ए एक खरेखर आश्चर्यकारक बनाव कही शकाय. बौद्धधर्म लुप्त थाय तेना तो अनेक कारणो छे अने ते कारणोने लइने ते एकला कलिंगमाथी ज नहि परंतु आखा भारतवर्षमाथी पण विलुप्त थयो छे; परंतु जैनधर्मना इतिहासमां आवां कशा कारणो जगातां नथी, तेमज ते अद्यावधि आर्यावर्तना अनेक प्रदेशोमा पोताना अस्तित्वने उत्तम रीते टकावी पण रह्यो छे. कलिंगमाथी जैनधर्म आवी रीते क्यारे अने कयां कारणोने लइने लुप्त थयो ते अद्यापि अज्ञात छ. उपर आपेला इतिहासथी एम जणाय छे के ई. स. ना ११ मा सैका सुधी तो ते प्रदेशमां जैनधर्म प्रचलित हतो. कारण के प्रथम तो खंडगिरिनी नवमुनि नामनी गुहामा ज जे एक लेख ए शताब्दीनो छे तथा जेमां जैनश्रमण शुभचंद्र अने कुलचंद्रनुं नाम आवे छे अने जे बाबत उपर लखाइ गइ छ, ते उपरथी सिद्ध थाय छे के ए समय सुधी तो त्यां जैनश्रमणो रहेता हता. बीजें उपर जे कलिंगनो संक्षिप्त इतिहास आपेलो छ तेमां जे चालुक्यो अने राष्ट्रकूटवंशीय राजाओ समये समये ए देश उपर चढाइ लइ जह एने पोताने ताबे बनावता हता एव॒ जणाव्युं छे, तेमांना केटलाए राजाभो तो जैनधर्मने माननारा के मान आपनारा हता तेथी तेमना "Aho Shrut Gyanam" Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयमां जैनधर्मनो लोप थनो असंभवित छे. म्हारा धारवा प्रमाणे ई. स. ना १२ मा सैका पछी त्यांथी जैनधर्म अदृष्ट थयो होवो जोइए. कारण के ए समय पछी वैष्णवोनो जोर वधवा मांड्यो हतो अने दक्षिण अने कर्णाटकना जे राजवंशो जैनधर्म प्रति सद्भाव धरावता हता ते पण ( रामानुजाचार्यना संप्रदायना प्रादुर्भाव अने प्रभावना लीधे ) आ समयमां जैनधर्मथी पराङ्मुख थवा लाग्या हता. आथी करीने घणी रीते संभवित छ के ए समय पछी कलिंगमांथी जैनधर्म अदृश्य थयो हशे. अने ते अदृश्य थवामा मुख्य कारण कोई प्रबल राजकीय उपद्रव ज होवा संभव छे. मी. वीन्सेन्ट स्मीथना कहेवा मुजब*, जेम दक्षिणना केटलाक शैव राजा. ओए ई. स. ना सातमा सैकामां जैनधर्म उपर अत्याचार गुजार्यो हतो अने अनेक जैनोनो सर्वनाश को हतो, तेम ए कलिंगमा पण कोई हिंदुराजाए आवी ज वर्तणुक चलावी होय अने तेना लीधे जैनोने पोताना प्राचीन भने प्रिय एवा ए प्रदेशनो सर्वथा त्याग करवो पढ्यो होय, ते धणी रीते बनवा जोग छे. जो के कलिंगना इतिहासमाथी ए विषे कशो विशेष उल्लेख मळतो नथी तो पण छूटी छवाइ एवी दंतकथाओ अवश्य संभळाय छे के जे आ वातने पुष्टि आपती होय. ' आर्किओलॉजीकल सर्वे ऑफ इन्डीआ' ना सने १९०२-०३ ना एन्युअल रीपोर्टमां मी. T. H. Bloch आ बाबत उपर लखे छे के " खंडगिरिनी आ गुहाओनो जैनोए क्यारे त्याग कर्यो ए खरी रीते जा वाने आपणी पासे साधन नथी. मात्र पुरीना देवालयना इतिहासमांनी एक अव्यक्त दंतकथा छे. जेमां कहेलुं छे के कोडगंगाना पौत्र मदन महादेवे भुवनेश्वरनी आजुबाजुनी टेकरीओमा रहेता जैन तथा बौद्ध * जुमओ, अली होस्टरी ऑफ इन्डीभा, पृ. ४५४-५. "Aho Shrut Gyanam" Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुओ उपर जुलम गुजार्यो हतो. जो आ वात खरी होय तो ते इ. स. ना १२ मा सैकानी आस्वरमां बनी होवी जोईए " आ उपरथी संभवित छे के कलिंगना कोई राजाए ज जैनोने ए देश सदाने माटे छोडी जवानी कठोर फरज पाडी होवी जोईए. खारवेलनो लेख. आ प्रमाणे खंडगिरि अने त्यांनी गुफाओर्नु काईक प्राचीन-अ. र्वाचीन वर्णन छे. आ वर्णन अने तेनी साथे आपेला कलिंगदेशना संक्षिप्त इतिहास उपरथी वाचकोने हाथीगुफावाळा ए खारवेलना लेखनी हकीकत अने महत्ता बरोबर समजी शकाशे. आ लेख, हिंदुस्थानना बीजा बधा लेखो करतां अपूर्व अने विलक्षण छे. मी. T. H. Bloch कहे छे के " आ लेख तद्दन ऐतिहासिक छे के जे हिंदमा प्रथम ज छे. आनी शैली राजा डेरीअस ( Darius ) ना बेहिस्तुन (Behistun) लेखना जेवी छे.' " आ लेख एक बरड शिला उपर कोतरेलो होवाथी कालना घसाराना लीधे एनो मध्यनो केटलोक भाग नष्ट थई गयो के के जे आगळ लेखमा स्पष्ट जणाय छे. ए नष्टभाग ऐतिहासिक दृष्टिए धणो ज महत्त्वनो हतो. आ लेखना स्पष्टीकरण माटे जेम उपर जणाववामां आव्यु छे तेम, अनेक विद्वानोए बहु परिश्रम उठाव्यो छे परंतु तेमां पूरेपूरी सफळता तो गुजरातना गौरवभूत पुरातत्त्वज्ञ पंडित भगवानलालने ज मळी छे. तेमणे ज ए लेखना कानुं वास्तविक नाम अने संबद्ध वर्णन खोळी काढयु हतुं. एमनी पहेलाना शोधको तो लेखकानुं नाम पण — ऐर' बतावता हता अने पाठो पण आडा + बाबु मनमोहन चक्रवर्ती एम. ए. ना “ नोट्स ऑन धी रीमेन्स इन धौली एन्द इन घी केस ऑफ उदयगिरि " पृष्ठ ९. १ आर्किओलॉजीकल सर्वे ऑफ इन्डीआ, एन्युअल रीपोर्ट, १९०२-०३. "Aho Shrut Gyanam" Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवळा लगाडता-बेसाडता हता. गुजरातना ए गौरवमां ओर उमेरो करनार गुर्जर साक्षररत्न श्रीयुत केशवलाल हर्षदराय ध्रुव छ के जेमणे पोताना एक देशबंधुए करेला ए 'सुवाच्य ' लेखने स्वकीय प्रतिभाना प्रकाशथी अधिक ओप आपी सर्वना भाटे - सुग्राह्य ' बनाव्यो छे. श्री भगवानलालना निबंधमां जे अपूर्णता हती अने जेना लीधे आखो लेख अस्पष्ट जेवो जणातो हतो तेनी पूर्ति श्रीयुत केशवलाले करी छे अने लेखमांनी दरेक हकीकतने सुसंगत अने स्पष्ट बनावी छे. मगधना जे राजा उपर खारवेले चढाह लइ जइ विजय मेळव्यानो आ लेखमा उल्लेख करेलो छ परंतु त्रुटित पाठना लीधे जेनुं नाम समजी सकातुं नथी, ते श्री केशवलालना विचार प्रमाणे बीजो कोई नहि पण पाटलीपुत्रनो प्रख्यात पुष्यमित्र ज छे के जे छेल्ला मौर्यराजा बृहद्रथनो सेनानी हतो अने जेणे राज्यलोभ वश थई पोताना राजानुं व्यायामभूमिमां कपटथी खून करी, तेना सिंहासननो स्वामी बन्यो हतो. पाछळथी ए ज पुष्यमित्र अश्वमेध यज्ञ करी चक्रवर्ती बन्यो हतो. भाष्यकार पतंजलि अने स्वप्नवासवदत्तादि नाटककार महाकवि भास ए ज पुष्यमित्रना आश्रित हता. आवी रीते खारवेलने पुष्यमित्रनो विजेता बनावी तेना लेखना बधा अव्यवस्थित अंकोडाओने यथास्थाने गोठवी ई. स. पूर्वेना बीजा सैकानी खंडित ऐतिहासिक शृंखलाने अखंड बनावी छे. जाते ' महामेघवाहन ' होवा छतां पण क्रूर कालना कठोर पंजामां सपडाई जई बे हजार वर्ष सुधी ऐतिहासिक अंधकारवाळी उंडी गुफामां पड़ी रहेला ए खारवेलना जीर्ण-शीर्ण नामने पोतानी प्रतिभाना किरण वडे आकर्षी वौसमी सदीना वैद्युतिक आलोकवाळा विज्ञ जगतना विचारोद्यानमा लावी मूकवावाळु पतितोद्धारक ' केशव ' कृत्य सुजनो द्वारा अवश्य स्तुत्य ज छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ खारवेलना समय विषे जो के हजु सुधी विद्वानोमां केटलोक मतभेद दृष्टिगोचर थाय छे तो पण अधिकांश विचारो पंडित भगवानलालना मतने ज मळता थता जाय छे अने तेमां श्रीकेशवलालना निर्णये सबळ पुष्टि आप छे तेथी हवे घृणा भागे ए ज समय निश्चित रुप लेशे. आ लेखथी जैनधर्म उपर पडतो प्रकाश. खारखेलना आ लेखे जैनधर्म अने तेना इतिहास उपर केटलोक अपूर्व प्रकाश पाड्यो छे. अनेक नवी बाबतो आ लेख उपरथी जाणवामां आवी छे, तथा विचारवा जेवी जणाइ छे. तेमांनी मुख्य मुख्य आ छे: —— अने तेमना १. जे केटलाक आधुनिक पाश्चात्य विद्वानो, संसर्गथी केटलाक भारतीय पंडितो पण, प्रथम एम धारता हता के जैनधर्म कोइ पण वखते राज्यधर्म तरीके स्वीकारायो नहोतो अथवा तो अशोक अने कनिष्क विगेरे राजाओए जेम बौद्धधर्मनी उन्नति माटे प्रयत्नो कर्या तेम जैनधर्म माटे कोइए कांइ कर्य नथी; ते बधाने आ लेखे खोटा पाड्या छे, अने जैनधर्मना प्राचीन गौरवने तेमना हृदयमां यथोचित स्थान आप्युं छे. तेमने एम कबूल करता बनाव्या छे के जैनधर्म पण पूर्वे अनेक देशोमा अने अनेक राजवंशोमां राज्यधर्म तरीके पळायो छे. तेनी असर प्रजाना पण म्होटा भाग उपर थइ हती अने ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य विगेरे दरेक वर्णोमां ते प्रचलित थयो हतो. जैन ग्रंथोमां जे अनेक ठेकाणे राजाओनां जैनत्वमाटे वर्णनो आवे छे ते केवळ धर्मना महात्म्यने वघारवा माटे कल्पितरुपे बनावी लीघां छे एम ज नथी परंतु तेमां जैतिहासिक सत्य पण होई शके छे एमआ लेख उपरथी मानी शकाय छे, "Aho Shrut Gyanam" Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. जैनसाहित्यमा जे बे चार पैतिहासिक राजाओना जैन होवा बाबतना जेवा तेवा उल्लेखो मळी आवे छे तेमना शिवाय बीजा पण अनेक आवा प्रतापी राजाओ थइ गया छे के जेमणे जैनधर्मनी उन्नति अने प्रगति करवा माटे विशेष विशेष प्रयत्नो कर्या छे, परंतु तेमनां नामो आपणा स्मरणपट उपरथी क्यारनाए भुसाइ गया छे. ए एक खरेखर आश्चर्यकारक वात लागे छे के संप्रति जेवा राजाने माटे तो, के जेनी विश्वसनीय कृति क्यांये पण आजसुधी उपलब्ध थइ नथी, केटलाए ग्रंथोमां बहु बहु वखाण करेला छे, त्यारे तेना ज समयनी आसपास थइ गयेला तथा साहसिक अने वीर एवा प्रख्यात पुष्यमित्र सरखा वैदिक नृपति उपर आर्दशरूप विजय मेळवनार खारवेल सेवा परम जैन राजानुं नाम सुधां पण कोइए स्मरी राख्यु नथी ! ३. जेम बौद्ध श्रमणोनी समये समये अमुक स्थानमा एकत्र परिषद् मळती हती तेम जैनश्रमणोनी पण परिषद् मळती होवी जोइए एम आ लेखनी वळण उपरथी जणाय छे. अशोक अने कनिष्क जेवी रीते बौद्ध श्रमणोनी पाटलीपुत्र अने मथुरामा परिषदो मेळवी हती तेवी रीते खारवेले पण सर्व दिशामांथी ज्ञानवृद्ध अने तपोवृद्ध निग्रंथ श्रमणोने आह्वान करी कुमारी पर्वत* उपर एक साधु परिषद् भरी हती. * कुमारी पर्वत ते कयो भने क्यां आगळ आवेलो छे ए बाबत प्रथम केटलोक तपास करेली परंतु काई खुलासो मळी शक्यो नहि. ज्यारे आ लखाण छेल्ली वारनुं संशोधित थइ प्रेसमां जाय छे ते वखते वडोदरेधी श्रीयुत चिमनलाल डाह्याभाई दलाल एम. ए. नुं पत्र मळ्युं तेमां तेओ आ बाबत लखे छे के-" कुमारगिरि (एटले कुमारी) पर्वत विषे आज Epigraphia Indica, October. 1915, P. 166. मां पांचवामां आव्यु के उदयगिरिनु मल नाम कुमार पर्वत हतुं अने खण्डगिरिनु नाम कुमारी पर्वत हतुं. १० मा ११ मा सैका सुधी आ बन्ने पर्वतो कुमार-कुमारी पर्वत तरीके जाणीता हता." आ उपरथी जणाय छे के कुमारी पर्वत ते खम्डगिरि ज छे अने एना उपर ज खारवेले निग्रंथ श्रमणोनी परिषद् भरी इती. "Aho Shrut Gyanam" Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ ४. जेवी रीते बौद्ध श्रमणोना रहेवा माटे जुदा जुदा प्रदेशोना अनेक राजाओए रमणीय पर्यतो उपर गुफा - मंदिरो कराव्यां इतां तेम जैनश्रमणोना निवास माटे जैन राजाओए पण अमुक अमुक स्थळे गुफा - मंदिरो बनाव्यां छे. आ गुफा-मंदिरोना संबंधमां एक ए बात विचारवा जेवी छे के अत्यार सुधीमां नेटलां जैन-गुफा मंदिरो जणायां छे ते बधां दिगंबर जैनाना वस्तिवाळा प्रदेशमां ज वधारे छे, श्वेतांबरोना वासप्रदेशमां नथी. खंडगिरि उपर पण दिगंबर जैन मुनिओनोज निवास रहेतो हतो. जो के खारवेलना समयमां दिगंबर श्वेतांबर भेदो व्यक्तरुपे नहि होय ते बखते तो घणा भागे जैनधर्म अविभक्तरुपे ज हतो-तोपण पाछळथी तो ए प्रदेश उपर दिगंबर संप्रदायनुं ज स्वामित्व हतुं खंडगिरिनी जैनगुफाओमा जे जैनमूर्तिओ विगेरे कोतरेली छे अने जेमनुं वर्णन उपर आपवामां आव्युं छे ते बधी दिगंबरी ज छे. एरुला, अणकीटणकी विगेरे बीजा स्थाने पण जे जैनगुफाओ छे तेमां दिगंबर संप्रदायना ज चिह्नो नजरे पडे छे.* आनुं ► * ब्राह्मणो अने बौद्धोना गुहामंदिरोनी अपेक्षा जैनगुहामंदिरो प्रमाण घण ज थोडां जणायां छे. जैनगृहामंदिरोनो म्होटो भाग दक्षिण हिन्दुस्थानमा - मुंबई इलाखामां ज आवेलो छे' केव टेम्पल्स् ऑफ इन्डीओ' नामना उपयोगी पुस्तकमां हिन्दुस्थाननां बधां गुहामंदिरोनुं सविस्तर वर्णन आपवामां आव्युं छे. आना छेवटनां प्रकरण मां जैनगुहामंदिशे बाबत पण स्वतंत्र विवेचन करवामां आत्र्युं छे. तेमां जणाव्या प्रमाण मुख्य मुख्य जैनगुहा मंदिरो आटली जग्गाए आवेलां छे :- दक्षिणमां बदामी पासे, कसा पासे; अंबा अगर मोमीनाबाद पासे; सोलापुरनी उत्तर बाजुए आवेला धारसिण्वा पाऐ; नाडीकथा थं डाक माइल दूर अत्रेला चामरलेना पासे; चांदोरनी पासे भामेरगुहा; पीटलखोरा पासे; खानदेशमां अणको पासे आशिवाय एरुला अने गवालीअर पासे पण जैनगुहामंदिरो के कोरेला खडको आवेला छे. आ बधां गुद्दामंदिरो डॉ. फर्ग्युसन अने बर्जेसना मत प्रमाणे दिगंबर जैन संप्रदायनां छे. जैनगुहा मंदिरी, ब्राह्मणो अने बौद्धोना गुहामंदिरो करता उतरता प्रकारनां अने " Aho Shrut Gyanam" Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारण ए ज होई शके के श्वेतांबर साधुओ वस्त्रधारी होवाथी तेओ घणा भागे जनसमाजना सहवासवाळा वास स्थानमा ज विशेष रहेता हता अने दिगंबर मुनिओ नमदशामा रहेता होवाथी तेमने निर्जन प्रदेशमा ज रहेवानी विशेष फरज पडती हती, तेथी तेमना रहेवा माटे तेवा प्रदेशोमां आवां लयनो-गुफामंदिरो बनाववानी आवश्यकता पडी होवी जोईए. आ विषयमा एक वात अवश्य विचारवा जेवी छे अने ते ए छे के:-- जैनशास्त्रोमा जे निग्रंथोना आचारो बांधवामां आव्या छे तेमां एक एवो. पण नियम छे के साधुना माटे-खास साधुने उद्देशीने-बनावेला कोइ पण स्थानमा साधुए निवास न करवो जोइए अने जो साधु तेमां जाणतो छतो निवास करे तो तेने वसतिकर्मनो दोष लागे. आ नियम तेमनो म्होटो भाग सातमा सैकानी लगभगमा थयलो छ. जैनगुहामंदिरोमांधी ध्यान खेंचे तेवां अने कारीगरीनी दृधिए उत्तम जणायला एवा फक्त बेज छे. जे एरुलाना आश्चर्यकारक अने प्रसिद्ध गुहामंदिरोना महान् समूहमा रहेला छे अने इन्द्रसभा अने जगन्नाथसभाना नाम ओळखाय छे. ' केव टेम्पल्स ऑफ इन्डीआ' ना कर्ताओk कथन छे के, ज्यारे बौद्धधर्मनी उतरती कळा थवा लागी त्यारे जैनधर्म प्रकाशमां आववा लाग्यो भने बौद्धोनी देखादेखी जैनो पण पाछळथी पोताना तेवा गुहामंदिरो बनाववा लाग्या... विगैरे. हेमन आ कथन भूल भरेलुं छे. कारण के ? हाथीगुफावाला लेख अने तेनवर्णनथी स्पष्ट जणाय छे के जैनो पण शुरुआतथी ज आवां गुहामंदिरो बनावता आव्या छ. उदयगिरिनी आ गुहाओने उक्त ग्रंथकर्ताओए बौद्धधर्मी गणी छे परंतु आलेखमा स्पष्टीकरणथी ते जैनधर्मनी छे एम उपर निश्चि तरुपे कहेवाइ गयुं छे. जैन अने बौद्धधर्मनी केटलीक समानताना लिधे आवी जातनी भ्रान्तिमा घणो वधारो थयो छ, संभव छ के उपर जणाव्या शिवाय बीजां पण जैन महामंदिरो हशे परंतु तेमनामां कोई विशेष चिह्न नहि जणावाथी ते बौद्धधर्मन! ज मानी लेवामां आव्या होय. वान्सेन्ट ए. स्मीथना कथन मुजब जेम जनरल कनि: गहामे स्तूपमात्रने बौद्धधर्मना मानी मथुरा विमरेना जैनस्तूपोने पण बौद्धस्तृपल्या छे, तेम आ गुहामंदिरोनी वाबत पण केम नहि बन्यु होय. "Aho Shrut Gyanam" Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर अने श्वेतांबर बने शास्त्रोमा आपेलो छ अने ते प्रमाणे केटलीक रीते ते पळातो पण आन्यो छे. त्यारे हवे आ लेखो तरफ जोहए छीए तो नं. २ जानो जे लेख छे तेमां तो स्वास स्पष्ट लखवामां आव्यु छे के खारवेलनी पटराणीए कलिंगना निग्रंथ श्रमणोना निवास माटे आ लयन कराव्युं छे. ऐतिहासिक दृष्टिए आ वात अवश्य विचारवा जेवी छे. दिगंबर अने श्वेतांबर बने संप्रदायना जैनग्रंथो जोतां जणाय छे के प्राचीनकालमां जैनमुनिओ घणा भागे. निर्जन स्थानोमा ज वास करता हता. शीतकाळ अने उष्णकाळना समयमां तो तेओ वृक्षोना आश्रय नीचे रहीने पण पोताना संयमनो निर्वाह करी शकता होय पण वर्षाकाळमां तो तेम निर्वाह थइ शके नहि अने तेटला माटे तेमने आवा पार्वतीय स्थानोना आश्रयनी अपेक्षा अवश्य रहेती ज होवी जोइए. हवे आवा पार्वतीय स्थानो तो दरेक ठेकाणे काइ नैसर्गिक रीते ज बनेला -हाथीगुफा जेवा-नहि होह शके, ते तो कोइना ने कोइना बनावेलां न म्होटे भागे होइ शके छे. अने आवां स्थानो केवळ श्रमणो-साधुओ शिवाय बीजा कोइने माटे बनाववानी आवश्यकता होय नहि तेथी आवा स्थानोमां ज जो पूर्व साधुओ वसता होय तो तो ते तेमना निमित्ते ज बनेलां होवां जोइए, अने तेमां ज साधुओ पोतानो संयम-निर्वाह करता होवा जोइए. तो पछी आवी स्थितिमां शास्त्रोक्त वसतिदोषनो परिहार शी रीते थइ शके छ ? विज्ञजनोए आ वात खास विचारवा जेवी छे. ५. आ लेख उपरथी छेल्ली जे विचारवा जेपी बाबत छे, ते मूर्ति पूजा विषयक छे. जैन श्वेतांबर संप्रदायनी एक शाला के जे ' स्थानकवासी' के ' टुंढिआ ' ना नामथी ओळखाय छे, ते शाखावाळा मूर्तिपूजानो स्वीकार नथी करता. तेमनुं कथन छे के जैनधर्ममा जे मूर्ति "Aho Shrut Gyanam" Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ पूजा छे ते पाछळथी दाखल थइ छे. महावीर देवना निवण बाद ८ म के ९ मा सैकामां तेनी शरुआत थई छे. तेनी पहेलां जैनोमां तीर्थकरोनी मूर्ति मानवानो के बनावबानो प्रचारन हतो. ए विषयमा बने संप्रदा योमां परस्पर अनेकवार क्लेशजनक चर्चाओ थई छे. खारवेलना आ लेख उपरथी ए विवादग्रस्त चर्चानो एकदम निकाल अने निर्णय धई शके छे. लेखमां आवेली हकीकत उपरथी स्पष्ट अने सत्य रोते जणाय छे के, ते वखते अने तेना पहेला पण जैनोमां मूर्तिपूजा प्रचलित हती. आ लेखनी १२ मी पंक्तिना पावला भाग उपरथी जणाय छे के “ आदि तीर्थंकर ऋषभदेवनी मूर्ति नंदराजा उपाडी गयो हतो, ते.... पाटलिपुत्र थी राजगृह पाछी आणी जैन विजेताए नवा भव्य प्रासा दम भारे उत्सव समारंभथी तेनी स्थापना करी. " ( जुओ, पृष्ट ९८--९९, श्रीयुत के. ह. ध्रुवनुं विवेचन. ) आ कथनथी असंदिग्धता. पूर्वक सिद्ध थाय छे के ई. स. पूर्वेना ३ जा सैकामां तेमज तेनी पण पहेलां जेनमूर्तिपूजा यथार्थ रीते प्रचलित इती. श्रीमान् ध्रुव महाशय ता. ८-२-१९१७ ना म्हारी उपरना एक खानगी पत्रमां आ बाबत खास विचारपूर्वक लखे छे के " खारवेलना लेखना एक महत्व धरावता भाग उपर आपने लक्ष न गयूँ होय, तो हूं ते तरफ दोवा रजा लेउं छू. एमां एक ठेकाणे राजगृहमांथी ऋषभदेव भगवाननी मूर्ति नंदराजा उपार्ड गयानूं लख्यूं छे. आथी ईसवी सन पूर्वे चोथा सैकामां मूर्तिपूजा जैनोमा प्रचलित हती एम सिद्ध थाय छे. आ बाबतने पुष्यमित्रना इतिहास साधे प्रत्यक्ष संबंध न होवाथी में ते लक्ष खेचाय तेवी रीते नोधी नथी. " हंधा के के आ विषयमा आना करतां बधारे सबल प्रमाण " Aho Shrut Gyanam". Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई होइ शके नहि अने ते मांगवानी कोह धृष्टता पण करे नहि. मूर्तिपूजा मानवी के न मानवी ए एक जुदी बाबत छे अने तेनो संबंध तत्त्वज्ञाननी साथे विशेष छे, परंतु अमुक समय पहेला जैनोमां मूर्तिपूजा हती के न हती, ए तिहासिक प्रश्ननुं तो निराकरण आ लेखथी एकदम थइ जाय छे अने श्रमण-भगवान् श्रीमहावीरदेवना निर्वाबाद बीजा ज सैका जेवा पुराण कालमां पण मूर्तिपूजा प्रचलित होवार्नु सर्वमान्य प्रमाण आ लेखमां स्पष्ट जोवामां आवे छे. उपसंहार. ___ उपोद्घातनो उपसंहार करतां जणावयु जोइए के १७ पंक्ति जेवा आ न्हानकडा लेखनु आटलं लांबु पूंछडं जोइ केटलाक वाचकोने तो आश्चर्य थशे अने केटलाकने कदाच कंटाळो पण आवे, परंतु जो तेओ ध्यानपूर्वक आ समग्र निबंधनुं अवलोकन करशे तो आशा छे के तेमने केटलीक अपूर्व वातो आमा जणाइ आवशे अने जैनधर्मना प्राचीन गौरवना संबंधमां तेमना ज्ञानमा काइक वधारो ज थशे. जैनसमाजनो विशिष्ट भाग व्यापारी होवाथी स्वाभाविक रीते ज तेमा केळवणीनी म्होटी न्यूनता छे अने तेमां वळी आवा इतिहास जेवा उंडा अने अरसिक विषयमा तो तेनो प्रवेश ज क्याथी होइ शके, आq विचारीने, लेखोक्त हकीकत बरोबर अने सविस्तर समजाय तेटला माटे आटलं लंबाण करवानी जरूरत पडी छे. ज्यारे आ लेखसंग्रहने छपाववानी शुरुवात करी हती त्यारे प्रथम बीजा जे आधुनिक संस्कृत लेखो छे तेमनो एक संग्रह करी प्रथम भाग तरीके बहार पाडवो अने पछी आ खंडगिरिना लेखो तथा मथुराना लेखोनो एकत्र संग्रह करी 'प्राकृतलेखविभाग' ना नामे बीजा "Aho Shrut Gyanam" Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग तरीके प्रसिद्ध करवानो विचार राख्यो हतो. परंतु पाछळथी केटलाक जनोना विचारथी तेम ज जैनलेखोमां आ लेखोनें स्थान सौथी प्रथम होवाथी प्रथम भाग तरीके प्रथम एमने ज एकला प्रकट करवामां आव्या छे. बीजा भागमां मथुराना बधा लेखो आवशे अने त्रीजामां बाकीना बधा संस्कृत लेखोनो संग्रह थशे. अंतमां, आ लघु प्रयत्नमां म्हने श्रीमान् दे. रा. भांडारकर एम. ए. तथा श्रीयुत् के. ह. ध्रुव बी. ए. महाशयो तरफथी जे प्रत्यक्ष के परोक्ष रीते सहायता मळी छे तेना माटे हुं तेमनी अंतःकरणपूर्वक आभार मानी विरमुं छु. श्रावणी पूर्णिमा. वालकेश्वर, मुनि जिनविजय. मुंबई. "Aho Shrut Gyanam" Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट. आ उपोद्घातमां अनेक ठेकाणे खंडगिरिनी नवमुनि नामनी गुहामा __ भावेला उद्योतकेशरिना समयना तथा शुभचंद्र अने कुलचंद्र नामना जैनश्रमणोना उल्लेखवाळा लेखोनू सूचन करवामां आव्युं छे. हालमा ' एपीग्राफीआ इन्डीका' ना सन १९१५ ना अक्टोबर मासना अंकमां मी आर. डी. बेनरजी एम. ए. नो लखेलो ' उदयगिरि अने खंडीगरिनी गुहामांना शिलालेखो' ए शीर्षक एक लेख प्रकट थयो छे. ए लेखमां, हाथीगुहा लेख सिवाय, उक्त स्थळे आवेला बीजा बधा न्हाना न्हाना लेखो केटलीक नोटो साथे प्रकट करवामां आव्या छे.x ए लेखोमां उद्योतकेशरि संबंधी लेखोनो पण समावेश करवामां आव्यो छे. आ निबंध साथे ए लेखोनो खास संबंध होवाथी, मी. बेनरजीना वक्तव्य साथे आ परिशिष्टरुपे अत्र आफ्वामां आवे छे. ------ -- नवमुनि गुहाभां उद्योतकेशरीनो शिलालेख. ईस्वीसनना दशमा सैकानी लगभगमा एकज तारीखना लखा यला नवमुनि गुहामां बे शिलालेखो छे. पहेलो लेख उद्योतकेशरिदेवना राज्यना अढारमा वर्षमा कोरेलो छ, अने ते कमानना अंदरना x प्रस्तुत पुस्तकमा जे नं. २, ३ अने ४ ना लेखो छे ते पण मी. बेनरजोए किंचित् संशोधन साथे पुनः प्रकाशित कर्या छे. बेनरजीना संशोधनमां कोई विशेषता न होत्राथी अत्र तेमनो उल्लेख करवो उचित धार्यो नथी. "Aho Shrut Gyanam" Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ भागमां नजरे पडे छे. ए लेख सौथी पहेलां महुम मी. जे. डी. एम. बेगलरनी दृष्टिए पढ्यो हतो अने तेणे कनिंगहामना भाषांतर साथै प्रकट कर्यो हतो ( Arch. Surv. Rep, Vol. XIII, P. 85 Note ) उद्योतकेशरिनो हजु सुधी जाणवामां आवेलो बीजो एक लांबो शिलालेख प्रिन्सेपे प्रकट कीधो छे ( Journ. Beng. As Soc. Vol VII, pp. 558ff.) पण ते अत्यारे उपलब्ध थतो नथी. मी. मनमोहन चक्रवर्तीए पण ए नवमुनिगुहाना लेखने वांचवानो प्रयत्न कर्यो हतो. ए त्रण पंक्तिनो छे अने स्पष्ट रीते कोरेलो छे. मूल-लेख. 1 ओं श्रीमद् उद्योतकेशरिदेवस्य प्रवर्धमाने विजयराज्ये संवत १८ 2. श्रीभार्यसंघप्रतिवद्धग्रहकुलविनिर्गत देशीगण आचार्यश्रीकुलचन्द्र 3 भट्टारकस्य शिष्य सुभचन्द्रस्य । भाषांतरः -- श्रीमद् उद्योतकेशरिदेवना वृद्धि पामता विजय राज्यना संवत् १८ मां श्री आर्यसंघना ग्रहकुलमांथी निकळेला देशीगणना आचार्य कुलचन्द्र भट्टारकना शिष्य सुभचंद्रनी ( कृति ? ). नवमुनि गुहामां बीजो लेख. आलेख वे भागमा व्हेंचायलो छे, अने गुहानी अंदरनी बे ओरडीओ वच्चे भींत उपर कोरेलो छे. एनी लीपी उपरना लेख जेवी ज छे. एना बे भाग छे-पहेलो भाग अपूर्ण छे, कारण के एम लखेलं वाक्य अधुरुं छे. ' श्रीधर छात्र ' एटले शिष्य श्रीधर. "Aho Shrut Gyanam" Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीजो भाग त्रण लींटीनो छे अने ते आ प्रमाणे छ:1 ओं श्रीआचार्य कुलचन्द्रस्य तस्य 2 शिष्य खल्ल सुभचन्द्रस्य 3 छात्र विजो भाषान्तर:-श्रीआचार्य कुलचन्द्रना शिष्य खल्ल ( ? ) सुभचंद्रना शिष्य विजो (विद्या अथवा विद्यनी कृति.) ललितन्दु गुहामा उद्योतकेशरिनो बीजो लेख. आ ललितेन्दु अथवा तो सिंहद्वारना नामथी ओळखाती गुहामां आवेलो शिलालेख ई. स. १९१३ मा अॅक्टोबर महिनामा आर्किओं लॉजीकल सर्वेना फोटोग्राफर मी. एस. गंगुलोए प्रथम शोधी काढ्यो हतो. आ लेख गुहानी पाछळनी भींत उपर कोरेलो छे, अने गुहाना भोयतळीयाथी लगभग त्रीश चाळीश फीट उंचे, दिगंबर जैनमूर्तिओना समूह उपर आवेलो छे. एनी बहु सारी संभाळ लेवायली लागती नथी. लेख पांच पंक्तिमा कोतरेलो छे अने लीपी उपरना बे लेखो जेवी ज छे. लेखनी भाषा अशुद्ध संस्कृत छे. ____ मूल लेख. 1 ओं श्रीउद्योतकेशरिविजयराज्य संवत् ५. 2 श्रीकुमारपर्वत (1) स्थाने जीर्णवापि (2) जीर्ण इशाण (3) 3 उद्योतित ( 4 ) तस्मिन् स्थाने चतुर्विशति तीर्थ ङ्कर 4 स्थापित प्रतिष्ठा[का]ले इ[रि] ओप (5) जसनन्दिक 5 का (१) दा (?) ति(१)द्रथा(?)श्रीपार्श्वनाथस्य कर्मखयः टिप्पण. (1) बीजी लाइन उपरथी जणाय छे के खंडगिरिनु प्राचीन नाम ‘कुमार पर्वत' छे. खारवेलनो हाथीगुहालेख उदयगिरिनु "Aho Shrut Gyanam" Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन नाम ' कुमारी पर्वत ' सूचवे छे. ते बंने टेकरीओ इ. स. ना दशमा अगियारमा सैका सुधी ' कुमार-कुमारी पर्वत ' तरीके जाणीती होय एम लागे छे. (2) वापि' शब्द टेकरी उपरना स्वडकोमा कोरी काढेला न्हानां न्हानां संख्याबंध कुंडोने सूचवे छे. (3) बीजी पंक्तिनो छेलो शब्द 'इसण' अथवा तो 'शान' लागे छे. आ शब्द विक्रम संवत् १०८३ मां थयेल महीपालना सारनाथना शिलालेखमा जोवामां आवे छे. आ शिवना अनेक नामोमा एक नाम छे, एम डॉ. वागेल कहे छे; ( Arch. surv. of India, Annual Report, 1905-6, P 98, Nove I.) पण उपरोक्त शिलालेखमां तेनो संबंध-अर्थ तथा उपयोग विचारतां ते शब्दनो अर्थ मंदिर थतो होय तेम लागे छे. (4) ' उद्योतित' शब्दनो साधारण अर्थ प्रकाशित थाय छे. पण अहिं तीर्थकरना मंदिरो अने कुवाओ सुधारवामां-स्मराववामां आव्या हता एवं सूचन आ शब्दथी थाय छे. (5) चोथी पंक्तिनो छेल्लो भाग अने पांचमी पंक्तिना प्रारंभना शब्दो बील्कुल समजाता नथी. भाषान्तर. श्रीमद् उद्योतकेशरिना विजयि राज्यना पांचमा वर्षमा श्रीकुमारपर्वत उपर आवेलां जीर्ण मंदिरो तथा जीर्ण वापिओ प्रकाशित करवामां आवी हती, अने ते जग्याए चोवीस तीर्थकरनी मूर्ति ओ बेसाडवामां आवी हत्ती. प्रतिष्ठाना समये............. श्रीपार्श्वनाथनी जग्यामां ( मंदिरमा ! ).......... जसनंदी. ... .... .... .... ........ "Aho Shrut Gyanam" Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग | *कटक नजीक आवेली उदयगिरिनी टेकरी उपरना हाथीगुफा तथा बीजा ऋण लेखो । ल --AV शोकना वखत पछी पूर्व हिंदुस्ताननो इतिहास तथा तेनी भाषा विषे माहिति मेळववामां हाथीगुम्फा लेख घणोज उपयोगी छे. प्रथम तेने इ. स. १८३० मां मी. स्टलींगे (Stirling) कर्नल मेकेन्झी (Mackenzie) नी बनावेली अपूर्ण नकल उपरथी प्रकाशित कर्यो. + मेजर कीड (Kittoe) ए इ. स. १८३७ मां नजरे जोइने तेनी नकल करी, अने आ नकल उपरथी प्रीन्सेपे ( Prinsep) भाषांतर सह * Actes Du Sixieme Congres International Des Orientalistes, tenu en 1883 â Leide. नामना पुस्तकना ३ भागमा ( पृष्ट १३३ थी १७९ सुधीर्मा ) प्रख्यात विद्वान पंडित भगवानलाल इंद्रजीना THI HATHIGUMPHA AND THREE INSCRIPTONS, IN THE UDAYAGIRI CAVES NEAR CUTTACK नामना इंग्रेजी निबंधनो आ संपूर्ण गुजराती अनुवाद छे -- संग्राहक. + एशियाटीक रीसर्वोस, पु. १५. ( Asiatic Reserches, XV.) " Aho Shrut Gyanam" Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। प्रसिद्ध कर्यो, ते वखते आ विषयनो प्रारंभज हतो तेथी प्रथमना भाषां. तरमां केटलीक चूको थइ होय तो तेमा कांइ आश्चर्य पामवा जेवू नथी. पण जाणवा जेवू मात्र ए छे के जे राजाना वखतमां आ लेख थएलो छे ते राजानुं नाम प्रीन्सेप वांची शक्या नहि अने हजु पण आ भूल कोइए सुधारी नथी. इ. स. १८७७ मां जनरल कनींगहामे (General Cunningham ) कॉरपस इंडीस्क्रीप्श्यानम इंडीकरम ( Corpus Inscrip. tionum Indicarum) ना पु. १ मां आ लेखनी नकल आपी छे, पण मेजर कीट्टनी नकल करतां आ नकलथी काइ वधारे फायदो थाय तेम नथी. त्यारबाद डॉक्टर राजेंद्रलाल मीत्रे पोताना ' अॅन्टीक्वीटीझ ऑफ ओरिस्सा ' नामक पुस्तकमां तेनुं भाषांतर बहार पाड्यु. आ भाषांतर विष घणी आशाओ राखवामां आवी हती; पण काइ अजवाळु पाडवाने बदले ते भाषांतरथी गुंचवाडी वध्यो. आ पुस्तक साथे जे नकल आपवामां आवी छे ते इ. स. १८६६ मां डॉक्टर भाउ दाजीने माटे में जाते प्रत्यक्ष जोइने तैयार करेली नकल उपरथी तथा कलकत्ता स्कुल ऑफ आर्ट्सना मी. लॉके (Locke) जे प्लास्टर फोटोग्राफ लीधेलो अने जे जनरल कनींगहामे मारा तरफ मोकली आप्यो ते उपरथी तैयार करेली छे. आ लेखनुं नाम, जे गुहा उपर ते कोतरेलो छे ते गुहाना नाम उपरथी पडेलं छे. त्यांनी जमीन उपर पडेला केटलाक भांगेला कटका उपरथी एम जणाय छे के आ गुहा कोइ वखते भागेली हशे अने त्यारबाद तेनो पुनरुद्धार करी फरी बंधाववामां आवी हशे. हाथीगुम्फा ए नाम शा कारणथी पडयूं हशे ते जाणवू अशक्य छे. कदाच एम "Aho Shrut Gyanam" Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेख विभाग | होइ शके के आ गुहानी आगळ जे खडक आवेलो छे तेना उपर हाथीनी आकृति कोतरेली होय. S आलेख शिला उपर कोतरेलो छे. आ शिला सपाट नहीं होतां अंदर खाडापडती छे. लेख १७ लीटीमां होई ८४ चौरसफुटमां छे. आ शिला उपर लेख कोतरवा माटे सपाटी साफ करेली होय तेम लागतुं नथी पण अक्षरो मोटा अने उंडा कोतरेला छे. समयनी असर आना उपर पण थएली छे, प्रथमनी छ लीटीओ सारी स्थितिमां छे. अने छेली चार पंक्तिओ मध्यम अवस्थामा छे. आ बेनी वच्चेनी जमीन घणीज खराब थइ गइ छे. केटलोक भाग तद्दन घसाई गयो छे अने केटलेक ठेकाणे छूटा अक्षरो के अक्षरसमूहो नजरे पडे छे. खास करीने आ लेखनो डायो भाग बहुज जीर्ण थइ गयो छे अने ते तरफना छेल्ला अक्षरो बिलकुल जता रह्या छे. आ लेखनी बन्ने बाजुए बब्बे चिह्नो आपेलां छे. ( जुओ प्लेट १ ). एक चिह्न लेखनी पहेली बे लीटीओनी डाबी बाजुए छे; अने बीजुं चिह्न एज बाजुए पांचमी अने छठ्ठी लीटीनी शरुआतमां छे. त्रीभुं चिह्न लेखनी जमणी बाजुए पहेली अने बीजी लीटीना छेडे छे, अने चोथुं चिह्न सतरमी लीटीना अंतमा छे अने अहीं लेखनी समाप्ति थाय छे. प्रथमनां त्रण चिह्नो पश्चिम हिंदना गुहालेखो उपर जोवामां आवे छे. दाखला तरीके पहेलुं चिह्न जुन्नर (Junnar ) ना बीजा लेखमां, कार्ले ( Karle ) ना पहेला तथा भाजा ( Bhaja ) ना 8 मुंबइनी सामे आवेला हाथीबेटनुं नाम पथ्थरमां कोतरेली एक मोदी आकृति उपरथी पडेलुं छे. आना कटका विक्टोरिआ म्युझिअममा छे. P. P. आ प्लेटो मूल पुस्तकमा आपेली छे । अत्र आपी शकाणी नथी-संग्राहक. " Aho Shrut Gyanam" Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। जीजा लेखमां वपरायलुं छे.' केटलीक उदयगिरिनी गुफाओना द्वारनी कमानो उपरनां कोतरकामो उपर पण ते काढेलं छे. जुनागढनी एक गुहाना द्वार उपर शुभ शकुनवाळी घणी चीजो काढेली छे. स्वस्तिक, दर्पण, कलश, घडीआळनी शीशी जेवी नेतरनी खुरशी, भद्रासन, बे नानां मत्स्यो, फुलनी एक माळा, अने आंकडो-आ बधामां आ चिह्न जोवामां आवे छे. सांचीना तोरण उपरनी त्रीजी आकृति उपर पण ए आवेलुं छे. तेमज गळानां घरेणांमां पण ते घणीवार जोवामां आवे छे. आ चिह्ननो अर्थ शो छे ते जणातुं नथी. पण जाणवू जोइए के पहेलांना बौद्धो आ चिहने सारुं गणता हता. त्यार पछीना बौद्धो तेम गणता होय एम लागतुं नथी. कारणके इलुरा, अजन्टा, नाशिक अने कान्होरमांनां बौद्ध कामो उपर ते जोवामां आवतुं नथी. बीजु चिह्न ' स्वस्तिक ' छ जेने विजयदर्शक गणवामां आवे छे अने जेनो अर्थ संस्कृत लेखोमा प्रथम वपराता · स्वस्ति' शब्दना जेवोज छे. आ चिह्न दुनियाना घणा भाग उपर वपराय छे अने एना अर्थ विषे विद्वानोना घणा जुदा जुदा मतो छ.' तेनो गमे ते अर्थ थतो होय पण एटलं तो नक्की के जुदा जुदा धर्मना लोकोए ते वापरेलुं छे तेथी एम धारी शकाय के ए लोको पोतपोतानां कारणोने लीधे तेने शुभ गणे छे. १ आर्कीऑलॉजीकल स] ऑफ वेस्टर्न इंडिआ, सॅपरेट पेम्फलेट १०, पृ. २३, २८, ४२. २ नुमीस्मेटीक कॉनीकल, न्यु सीरीझ पु. २०, पृ. १८-४८; इंडीअन अॅन्टी क्वेरी, पु. ९; पृ. ६५, ६७, १३५; इंडीअन अन्टी क्वेरी, पु. १०, पृ. १९९; कनींगहामनी भील्सा टोप्स, ३५६ नोट. "Aho Shrut Gyanam" Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। सौथी पहेलां आवां चिह्नो अशोकना जौगड ( Jaugada) लेख उपर जोवामां आवे छे ज्यां त्रीजुं चिन्ह पण जोडेलुं छे. त्यारबाद केटलीक पश्चिम हिंदुस्ताननी गुहाना लेखोमा ए दृष्टिगोचर थाय छे. केटलीक वखते ते आरंभमां के, अंतमा अगर बन्ने ठेकाणे पण जोवामां आवे छे.' आ चिह्न हजु पण हिंदु तेमज जैनोमां शुभ गणाय छे अने लम प्रसंगे अगर एवा बीजा कोई शुभ प्रसंगे कपडां, वासण तथा फळो उपर काढवामां आवे छे. नानां बाळकोने प्रथम मुंडन कराव्या पछी माथा उपर आ चिन्ह कुंकुमथी काढवामां आवे छे. लग्न थया पछी पहेला शुभ दीवसे गुजरात तथा कच्छना लोको जमीन उपर रातुं वर्तुल दोरे छे अने तेमा स्वस्तिक चिन्ह काढे छे तेने "घौरी स्वस्तिक" कहे छे. गायना छाणथी लीपेली जमीन उपर कुलदेव बेसाडीने तेमनी आगळ आ चिन्ह काढे छ जेने “साथीओ" कहे छे. आ शब्द संस्कृत 'स्वस्तिक' ना प्राकृत 'सत्थिओ' उपरथी थयो छे. हालना जैनो पण एने 'साथीओ' कहे छे. तेओनो मत एवो छे के सातमा तीर्थंकर सुपार्श्वनाथन ए लांछन छे, तेमज जैनोनां आठ शुभ लांछनोमांनो प्रथम ए छे. खरतरगच्छना एक विद्वान यति प्रेमचंद्रना कहेवा प्रमाणे जैनो तेने सिद्धनी आकृति तरीके गणे छे. जैनो धारे छे के दरेक प्राणी एक जन्ममां करेलां पोतानां मानसकर्मो प्रमाणे वीजा जन्ममां चारमाथी एक स्थितिने पामे छे. ते देव थाय छे, अगर न जाय छ; अगर क्षुद्र प्राणीओमां या मनुष्य जातिमां जन्म ले छे. पण सिद्धने आमार्नु कांइ पण थतुंनथी, कारण १ जुन्नर लेखोमां शरुआतमा ५, ६, २०, ३२, ३४; कार्ले लेखोमा ३, अने जुन्नर लेखोमा २२, २९ अने ३१, ३३; आरंभ अने अंत-कार्ले लेख २ अने जुन्नर लेखो १८ ने ३०. २ आ शब्द ' गोमयलिप्तस्वस्तिक ' संस्कृत शब्द उपरथी थएलो छ तेनो अर्थ · जमीन उपर लीपेलो स्वस्तिक ' थाय छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजेनलेखसंग्रह। के आ चार अवस्थानुं मुख्य कारण जे कर्म छे ते तेमने लागता नथी अने तेथी ते मुक्तात्मा कहेवाय छे. स्वस्तिकमां आप्रमाणे सिद्धनी आकृति समाएली छे. जे मध्यबिंदुमाथी चार रस्ता नीकळे छे ते जीव छे अने जे चार रस्ता छे ते जींदगीनी चार अवस्था छे. पण सिद्ध आ चार अवस्थाथी मुक्त होवाथी चारे रस्ताओने पछीथी जे वाळेला छे ते एम जणाये छे के आ चार अवस्था तेमने माटे नथी. हुं एम नथी कहेतो के आ ए स्वस्तिकर्नु मूळ छे. बौद्धो के जेमनां धर्मतत्त्वो जैनोना जेवांज छे ते पण स्वस्तिकनो आवो अर्थ करता होय ए शक्य छे. जो एम होय तो बौद्ध लेखोना आरंभमां सिद्धम् शब्द वपराय छे तेने बदले आ स्वस्तिक पण वपराय छे. दाखला तरीके, उषवदातना नाशिकना नं. १० ना लेखमां आ स्वस्तिक सिद्धम् शब्दनी पछी तरतज मूकेलो छे, आवी रीते वपरायाथी जैनोना आवा अर्थने पुष्टि मळे छे. त्रीजु चिह्न अशोकना जौगड लेखमांना ( ) चिह्नना जेवुज छे. ए तारस ( Taurus ) ना ग्रीक चिह्ना जेवं छे. पहेला बे चिहोनी माफक आ चिह्न लेखोना आरंभमां तथा अंतमां तथा कोइक वखत शोभाने माटे जुदाज आकारमा जोवामां आवे छे. बौद्ध लेखो उपरथी एम जणाय छे के पहेला बे चिह्नो करतां आ चिह विषे तेमनी मान्यता ओछी होय तेम जणातुं नथी. सांची लेखोमां बोधीवृक्षनी नीचे वेदि उपर ते मुकेलं छे. जो ते पूजनीय न होय तो ते आवी जग्याए होइ शके नहि. वळी आ चिह्न घरेणामां तथा जुना बौद्ध सिकाओमां पण जोवामां आवे छे. कान्हेरी नजीक पदण टेकरी उपर बीजां चिह्नोमां आ - मूल पुस्तकमां आ तथा हवे पछी आवनारी दरेक आकृतिओ आपली छे परंतु अत्रे जे आपी शकाणी नथी तेना ठेकाणे ( ) आवा कौंसमा जग्या खाली राखेली छे.-संग्राहक । "Aho Shrut Gyanam" Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। चिह्न पण ' नन्दिपदम् । एवा नाम साथे जोवामां आवे छे; जे उपस्थी जणाय छे के बौद्धो तेने ' वृषभ-लांछन ' कहे छे. वैदिक धर्ममा वृषभने पवित्र गणेलो छ; अने जो आवोज मत बौद्धोमा प्रचलित होय तो तेमणे पण तेने पवित्र गणेलो होवो जोइए. चोथु चिह्न वेदि अगर बेठक उपर मोनोग्राम ( Monogram) जेवं लागे छ (y + t+e ? ). उदयगिरिनी व्याघ्र गुहामांना एक लेखना आरंभमां आq चिह्न छे. फेर मात्र एटलोज छे के ज्यारे आमां कापा डाबी बाजुए छे त्यारे व्याघ्रगुहाना चिह्नमां जमणी बाजुए छे. उदयगिरिनी वैकुंठ गुहामा एक चिह्न छ जेमां अने आमां फेर एटलो छे के एमां नीचे वेदि नथी तथा डाबी बाजुए बे कापाने बदले बन्ने बाजुए एक एक छे. एक बौद्ध सिकामां पण आ चिह्नना जेवू एक चिह्न छे. जे लिपिमां आ लेख लखेलो छे ते लिपि अशोकथी अर्वाचीन छे अने पश्चिम हिंदना नानाघाट लेखनी लिपिने मळती छे. अशोकना वखतनी लिपि अने आ लिपिमा मुख्य फेर ए छे के ज्यारे अशोकना बखतना क ने आडी तथा उभी लीटीओ सरखी छे (+) त्यारे अहींआं आडी करतां उभी लीटी लांबी छ (1); ते वखतनो ग खुणा पडतो (^) हतो त्यारे हालनो कमान जेवो (0); ते वखतनां घ (L), प (U), ल (-J) अने ह (5) ना नीचेना भागो गोळाकार हता अने हालमां सपाट छे (tuli, -11, म (४) अने व (B) नी नीचेना आकारो बराबर गोळ हता त्यारे हाल त्रिकोणाकारे छे (1); १ जर्नल बॉम्बे बेन्च रॉयल एशियाटीक सोसाइटी, पु. १५, पृ. ३२०. २ वील्सन्स भेरीआना अॅन्टीका, प्लेट १५, आकृति ३२. "Aho Shrut Gyanam" Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन जैनलेखसंग्रह | तनां नीचेनां वे पांखडां खुणावाळां हतां (A) अने हाल ते गोळाकार छे (h). ते वखते इकारना पांखडा खुणाकारे हतां ( ), हाल ते प्रमाणे नहि होता ते उंचा जाय छे ( ). आ प्रमाणे कारणो छे ते उपरथी आ लिपि अशोकथी अर्वाचीन छे एम प्रतिपादन थाय छे. आ आखो लेख द्यां छे. तेनी भाषा प्राकृत छे अने अशोकना लाट लेखोथी भिन्न छे पण पश्चिम हिंदना गुहा लेखानी जुनी महाराष्ट्री प्राकृतना जेवी छे. आरंभमां अर्हतो अने सिद्धोने नमस्कार कर्यो छे. अने आ उपरथी लेख बनावनारनी उंडी धार्मिक श्रद्धा आपणने जणाइ आवे छे. जैनोना मुख्य सूत्रनो ए भाग होय तेम जणाय छे जेने 'नमोक्कार' अगर 'नोकार' कहेवामां आवे छे अने जेनो वारंवार तेओ जप करे छे तथा जे तेमनां सूत्रोनां आरंभमा घणीवार जोवामां आवे छे.' ते सूत्र अने आ नमस्कार मां फेर एछे के आमां फक्त अर्हत 'अने' सिद्धनाज-बेनांज नाम आवे छे, त्यारे सूत्रमां 'आचार्य', 'उपाध्याय', अने 'साधु' ए त्रण नामो वधारे छे. लेखमां आ नामो मूकी दीघां छे तेनुं कारण ए छे के पहेला बेनी पेठे आ त्रण बहु जरुरनां नथी. आ लेखना नमस्कारनी समजुती विषेनी पुष्टिमां जाणवुं जोइए के उदयगिरिनी माणेकपुर गुहाना ३ जा लेखमां एम कहेलुं छे के ए गुहा " कलिंगना श्रमणो अर्हन्त प्रसादानम् " ने माटे बनाववामां आवी छे. अर्हन्तो उपर आ प्रमाणे धार्मिक श्रद्धा राखवी ए जैनोनी खासीयत छे, आ गुहाओमां कोई पण ठेकाणे शाक्यभिक्षु अगर एवो बौद्ध शब्द खास करीने वापरेलो नथी. १ सूत्र आवो छे:- नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहुणं । तेनो अर्थ:-अर्ह न्तोने नमस्कार, सिद्धोने, आचार्योंने, उपाध्यायोने, अने विश्वना साधुओने नमस्कार. "Aho Shrut Gyanam" Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत लेखविभाग | 6 उदयगिरिनी गुहाओनां कोतरकामोमां एवं कांइ खास नथी के जेथी आपणे नक्की करी शकीए के ए जैन अगर बौद्ध गुहाओ छे. गुहाओमां एके जुनी प्रतिमा नथी. कोतरकामोनी पूजनीय वस्तुओमां मात्र वृक्षो छे तथा माणेकपुर गुहामाना नीचेना भागमां जे भांगेला स्तूप ' जेवुं लागे छे तेनी आगळ नमस्कार करती माणसोनी अकृतिओ छे. वळी आ गुहाओनी टेकरीनी टोचे एक जुना ' स्तूप ' नो पायो छे अने आ स्तूपनी आजुबाजुना कठेराना सळीआनां छिद्रो हजु पण जोवामां आवे छे. परंतु आ उपरथीन मात्र आपणा प्रश्ननो जवाब नीकळी शके नहि; कारण के शरुआतनो जैनधर्म बौद्धधर्म जेबोज हतो जेथी वृक्ष तथा स्तूपोनी पूजा तेमनामां भिन्न नथी; ज्यां ज्यां महावीर गया ते ते गामना पादरना झाड तळे बेठेला महावीरनां वर्णनो केटांक सूत्रोमा छे. बौद्धोनी पेठे जैनतीर्थंकरोने पोतपोतानुं बोधिवृक्ष छे. महावीरनुं बोधिवृक्ष वड छे अने उदयगिरिनी जयविजय गुहामां कोतरेलुं बोधिवृक्ष पण वड छे. ' हाल पण जैनो शत्रुंजय टेकरी उपर रायण वृक्षनी पूजा करे छे, ( मिमुसोप्स कौकी ( Mimusops kauki; ) संस्कृत - राजातन अगर राजादन, पाली - राजायतन ) जे ऋषभदेवनुं बोधिद्रुम छे अने गिरनार उपर बाबीसमा तीर्थंकर नेमिनाथनुं बोधिद्रुम आंबो छे के जेनी पण तेओ पूजा करे छे. स्तूप - पूजा पहेलांना जैनोमां पण प्रचलित हती. मथुरामांथी मने मळेला एक लेखवाळा कोतरकामनी बच्चे एक स्तूप छे. तेनी आजुबाजुए कठेरो छे. तेने एक द्वार छे अने स्तूप उपरज कोतरेली वे कठेरानी हारो छे; एक मध्यमां गोळ तथा बीजी जरा उंचे छे. स्तूपनी बन्ने १ अॅन्टीक्वीटीझ ऑफ ओरीस्सा पु. २, प्लेट १९, आकृति १. लेखक, डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र. 2 "Aho Shrut Gyanam" Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजेंनलेखसंग्रह। बाजुए एक नाचती स्त्री छे अने आ स्त्रीनी पेलीपार एक स्तंभ छे. जमणी बाजुना स्तंभने सिंह छे अने डावी बाजुना स्तंभ उपर 'धर्मचक्र' काढेलु छे. उंचे साधुओ तथा स्तूप तरफ दोडता आवता होय तेवा किन्नरो छे. किन्नरोने रुवाटावाळु शरीर तथा मनुष्यना जेवू मुख छ तथा दिगम्बर जैनोनी माफक आ साधुओ नग्न छे. ___ आ स्तूप आकारमा तथा देखावमा हजु सुधी मळेला बौद्ध स्तूपोने एटलं बधुं मळतुं आवे छे के जो आ लेख न होत तो तेने बौद्ध स्तूप तरीकेज गणवामां आवत. बे कठेरानी हारोनी बच्चेनो छ लीटीओ वाळो लेख जैनोनो छे एम स्पष्टज छे. लेखना अक्षरो इ. स. पूर्वे ५० ना होय तेम लागे छे; भाषा प्राकृत छ, सरल नथी. लेखनी नकल. (१) नमो अरहतो वधमानस दंदाये गणिका (२) ये लेणशोभिकाये धितु शमणस निकाये (३) नादाये गणिकाये वासये आरहतादेवकुले (४) आयगसभाप्रपाशिलापटा प्रतिस्ठापितं निगमा (५) ना अरहतायतने सह मातरे भगिनिये धितरे पुत्रेण (६) सविन च परिजनेन अरहतपुजाये ( आ लेखनु संस्कृत भाषांतर. ) (१) नमोहते वर्धमानाय दण्डाया गणिका (२) या लयनशोभयिच्या दुहितुः श्रमणस्य निकाये (३) नादाया गणिकाया वासाय अर्हतो देवकुले (४) आर्यकसभा प्रपा शिलापट्टः प्रतिष्ठापितः नैगमा (५) नां अर्हतायतने सह मात्रा भगिन्या दुहित्रा पुत्रेण (६) सर्वेण च परिजनेन अर्हतपूजाये "Aho Shrut Gyanam" Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग । गुजराती भाषांतर. अहेन्त वर्तमानने नमस्कार. गणिका दंडानी पुत्री गणिका नन्दाए वेपारीओना आहेतदेवालयमां श्रमणेसमूहने रहेवा माटे तथा अर्हन्तनी पूजा माटे एक नानुं आहेत-देवालय, आचार्यों माटे बेठको, एक होज ( पाणीनो ) अने एक शिल्लापट्ट, ( देवालयनुं पुण्य ) मा , व्हेन, पुत्री, पुत्र, अने सगांओ साथे ( भोगववाने ) कराव्यां. ___ वर्द्धमान अर्हन्त २४ मा तीर्थंकर महावीर छे. बौद्धोनी पेठे जैनो पण तीर्थकरोना हाडकां विगेरेने पूजता हता. तेमना ग्रंथोमां केटलेक ठेकाणे कहेलं छे के मृत्युवश थया पछी तीर्थकरोना शरीरने अग्निसंस्कार देवो आपे छे तथा तेमनां हाडकां विगेरेने तेओ पूजामाटे स्वर्गमां लइ जाय छे. हालनां जैनदेवालयोमा स्तूप अगर तीर्थंकरोना हाडकांनी पूजा जोवामां आवती नथी; पण बेशक एटलं तो नक्की के आ प्रमाणे एक वखत हतुं अने ते एटले सुधी के तेरमा सैकामां मथुरामां जैनो एक स्तूपने तीर्थकर सुपार्श्वनुं स्तूप छे एम गणीने पूजता हतो. हालमां खरतरगच्छना जैन साधुओ ' थापना ' नामनो पांच दांतवाळो एक चंदननो प्यालो पूजा माटे वापरे छे अने आ तीर्थकरोनां जडबांनी नकल छे. तेज प्रमाणे साध्वीओ जे शंखने थापना तरीके पूजामां वापरे छे तेने तेओ महावीर स्वामीना धुंटणर्नु हाडकुं गणे छे.* १ मूळमां 'आयतन' शब्द छ जेनो अर्थ मोटं देवालय थाय छे. गणिकानु देवालय मोटा देवालयनी पासे बांध्यु हशे अने ते ना, हशे. २ मूळमां निकाये 'छे. पण जो ' निकायस' न वाचवामां आवे तो लेखनो सारो अर्थ नीकळी शकतो नथी. ३ जूओ-जिनप्रभसूरीनुं (विविध) 'तीर्थकल्प'. * हालमां, तपागच्छमां जे स्थापनाचार्य रखाय छे तेने उद्देशीने आ उल्लेख छ, "Aho Shrut Gyanam" Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। आ उपरथी प्रतिपादन थाय छे के स्तूपनी तथा वृक्षनी पूजा पहेलां जैनोमां प्रचलित हती. उदयगिरिनी गुहाओमां बौद्धोनी एके प्रतिमा नथी तेमज अर्वाचीन बौद्धोए पश्चिम हिंदनी बौद्ध गुहाओमां बेसाडेली प्रतिमाओमांनी पण एके नथी. उलटुं, केटलीक अर्वाचीन गुहाओमां तीर्थंकरोनी जैनप्रतिमा तथा यक्ष अने देवोनी प्रतिमाओ कोतरेली छे अने उदयगिरिनो बीजो भाग जेने खंडगिरि कहे छे तेना उपर हजु पण दिगम्बर जैनोनां देवालयो छे. आ सर्व उपरथी एम जणाय छे के तेनो बौद्धधर्म करतां जैनधर्म साथे वधारे संबंध छे ___अर्हन्तो तथा सिद्धोने नमस्कार कर्या बाद लेखमां खारवेल राजानो जन्मथी मांडीने ३८ वर्ष सुधीनो वृत्तांत आपेलो छे. तेने चेत अगर चैत्रराजवंशनो विस्तार करनार कहेवामां आव्यो छे; अने आ विशे. पण ते आ वंशनो छे एटलुं जणाववा माटे ज मात्र वापरवामां आव्यु छे. तेथी एम स्पष्ट रीते अनुमान थइ शके के खारवेल राजा चैत्रवंशनो हतो. आ राजाना बीजां विशेषणो 'वेर ' ' महाराज' अने ' महा. मेघवाहन ' तथा ' कलिंगाधिपति ' छे. 'वेर' नो शो अर्थ छे ए संतोषकारक रीते समजावी शकाय तेम नथी; पण हुं धारुं छे के तेने बदले 'वीर' जोईए. महाराज शब्द मात्र तेनी मोटाइ दर्शाववानेज वापरवामां आव्यो छे. 'महामेघवाहन' नो अर्थ 'जेनुं वाहन मोटो मेघ छे, एवो छे. जे उपरथी एम जणाय छे के एना राज्यना जे हाथीओ उपर आ राजा बेसतो तेमनुं नाम 'महामेघ' हशे. ' कलिंगाधिपति ' उप परंतु आना विषयमा पंडितजीनी जे कल्पना छे ते वास्तविक छे के केम ते खास विचारवा जेवी छे. कल्पना रमणीय छे.-संग्राहक. २ सरखावो-जनरल कनींगहामर्नु, आकीओ० सहे. पु १३, पृ. ८४ तथा कॉरपस इंस्काश्यानम इंडीकॅरम, १.२७. "Aho Shrut Gyanam" Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। रथी एम सूचित थाय छे के ते कलिंगनो राजा हतो. राज्यगादी उपर बेठा पहेलानां तेनां चोवीस वर्षनो हेवाल आ प्रमाणे छे. प्रथमनां पंदर वर्षों रमत गमतमां गयां; बाकीनां नव वर्षमां ते लखवानु, चित्रकाम, हिसाब अने कायदाकानुनो शीख्यो तथा युवराजपद भोगवतो हतो. आ उपरथी एम जणाय छे के युवराजनी स्थितिमांज तेणे आ अभ्यास कयो. ज्यारे ते चोवीस वर्षनो थयो त्यारे ते तख्तनशीन थयो त्यारबाद बीजां १३ वर्षभां तेणे करेला उपयोगी कामो विषे लेखमां वर्णन आवे छे: __ प्रथम वर्षमा तेणे दरवाजा, किल्लो तथा महेलो जे जीर्ण थयां हतां ते तथा कलिंग शहेर तेमज तेने फरतो कोट समराज्यो. तेणे पाणीना होज तथा कुवा बंधाव्या, बधी जातनां वाहनो राख्यां अने तेना नगरमा ३५०,००० माणसो हता.' बीजा वर्षमा (राजा) सातकनी (सं. शातकर्णी) ए तेना (खारवेलना हुमला) थी पश्चिम भागने बचाववा माटे (खंडणी तरीके) घोडा, हाथीओ, माणसो, रथ तथा पुष्कळ धन मोकल्यु. तेज वर्षमां तेणे मसीक १) शहेर कुसुम्ब (१) क्षत्रीओनी मददी लीधुं. त्रीजा वर्षमां ते गीत विद्या शिख्यो अने नाच, गायन, अने वाजींत्रो तथा आनंदोत्सवोथी लोकोने तेणे आनंद पमाड्यो. 1 आ घणी मोटी संख्या छे. आ मात्र अनुमान हशे, कारण ते वखतमा सेन्सस नहोती. मात्र तेनो अर्थ एमज छे के शहर घणुं भव्य हतुं. २ आ लेखना अक्षरी नानाघाट लेखना अक्षरो जेवा छ तेथी हुं धारु छु के भा सातकनी ते कदाच नानाघाट बावलामांना चोथा बावलानो श्री सातकनी होय. सरखावो-बॉम्बे गेझेटीअर, पु. १६, नाशीक गुहा उपरनी टीका. "Aho Shrut Gyanam" Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। ___चोथा वर्षनो हेवाल तुटी गयो छे अने संबंध पण बेसतो नथी. एटलं तो जाणी शकाय छे के धर्मकूट टेकरी उपर- एक जुर्नु चैत्य तेणे समराव्यु अने तेमां छत्र तथा कलशो आणी आप्या अने तेनी पूजा करी.' ते कहे छे के राष्ट्रीक अने भोजक, तेना खंडीआ राजा ओमांना त्रिरत्नमां श्रद्धा उत्पन्न करवा माटे. तेणे आ प्रमाणे कर्यु हतुं. __पांच, वर्ष दाननुं छे. आ वर्षमां तेणे नन्दराजनो त्रिवार्षिक सत्र पुनः शरु कर्यो अने पाणीनी सवड कर्यानुं देखाय छे. (Water Works Scheme.) पण आ भाग भांगी गयो छे तेथी अर्थ शंकायुक्त छे. छठ्ठा वर्षनो अहेवाल घणो खरो जतो रह्यो छे पण आ वर्षमा तेणे लोकोपयोगी लाखो कामो कर्यानुं जणाय छे. सातमा वर्षनो हेवाल बधो जतो रह्यो छे. जे आठमा वर्षनो हेवाल छे ते ऐतिहासिक दृष्टीथी घणो उपयोगी छे. परंतु तेनो एक भाग जतो रह्यो छे ए शोकनी वात छे. आ वर्षमा एक राजा जेणे बीजा राजाने मारी नांख्यो हतो अने जे राजगृहन राजाने दुःख आपतो हतो, ते खारवेलना पाछळ पडवाथी तथा खारवेलना लष्करना मोटा अवाजथी मधुरामां नासी गयानुं कहेवामां आव्युं छे. आ राजाओ कोण हता ते भांगेला भागमां जतुं रडुं छे, १ आ लेखमां आथी कांइ वधारे होय तेम लागे छे. (जोके स्पष्ट नथी क रणके ए भाग केटलीक जग्याए खंडित थएलो छे.) ते ए छे के कलिंगना पहे लांना राजाओने आ चैत्य साथे कोई जातनो संबंध इतो. "Aho Shrut Gyanam" Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। नवमा वर्षमां तेणे करेला केटलांक कामो विषे उल्लेख छे. घणो भाग भांगी गयो छे पण जे भाग रह्यो छे ते उपरथी एम जणाय छे के तेणे ते वर्षमा एक कल्पवृक्षनी' बक्षीस करी अने तेनी साथे घोडा, हाथीओ, रथो, घरो तथा अन्य उत्तम वस्तुओ ब्रामणोने दान करी. वळी तेणे · महान्यय* ' नामनो एक प्रासाद बंधाव्यो जेनुं खर्च २८०००० थयु. __ दसमा वर्षनी हकीकतमाथी घणो भाग जतो रह्यो छे; तथा अगीआरमा वर्षनी तद्दन जती रही छे. दसमा अने बारमा वर्ष वच्चेनो हेवाल तुटक तुटक छे अने जोके तेनो संबंध संतोषकारक रीते जाणी शकाय तेम नथी तोपण नीचे प्रमाणे अनुमानो घडी शकाय, के दसमा वर्षमां तेणे हिंदुस्थाननी यात्रा करी अने ज्यारे तेने खबर पड़ी के केटलाक राजाओ तेना उपर चढाई करवाना छे त्यारे तेणे पगलां लेवा मांड्या. त्यार बाद घणा भागे अगीयारमा वर्षेनी हकीकत आवे छे, ए वर्षमा तेणे गर्दभनगरमाथी पहेलांना राजाओए नांखेलो एक कर कमी को. त्यारबाद जे आवे छे ते असंबद्ध छे तथा तेनो केटलोक भाग नाश पाम्यो छे. पण काइक १३०० वर्ष पछी पुनः शरु कर्यानुं कहेलं छे. * लेखमां ' महाविजय' शब्द छ अने तेना संस्कृत तथा इंग्रेजी बन्ने अनुवादोमां पण 'महाविजय ( Mahavijaya)' शब्द ज वापरवामां आव्यु छे छतां आ ठेकाणे पंडितजी तेनुं नाम ' महाव्यय ( Mahavyaya)' आपे छे तेनुं कारण समजातुं नथी, कदाच मूलधी ' महाविजय' ना ठेकाणे ' महाव्यय' लखाई गयुं होय.-संग्राहक. 1 कल्पवृक्षनुं दान आठ महादानमांनुं एक छे. ते चारथी आठहजार रुपीआभारतुं एक सोनानुं झाड, घोडा, हाथी तथा घराणां सहित ब्राह्मणोने आपवामां आवतुं. सरखावो-हेमाद्रिनो 'चतुर्वर्गचिन्तामणि' धानखंड, प्रकरण ५. "Aho Shrut Gyanam" Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। बारमा वर्षमां उत्तरापथ (उत्तर) ना जुलमी राजाओ विषे काइक कहेलुं छे. त्यारबाद जे आवे छे ते जतुं रघु छे तेथी तेनो संबंध कळी शकाय तेम नथी. पण घणुंखरूं खारवेले तेमना उपर चढाइ करी हशे. त्यारबाद खारवेले मगधना राजाने बीक बतावी अने तेना हाथीओने गंगामां स्नान कराव्युं एटले के गंगा सुधी जइ पहोंच्यो; तेणे मगधराजाने शिक्षा करी अने पोताना पग तरफ नमाव्यो. त्यारबाद कोइक नंदराज जेणे जैनोना अनजिन आदीश्वर (नी मूर्ति) अगर अप्रजिनकाइक लइ लीधुं हतुं ते राजा विषे छे अने आ मूर्ति अगर वस्तु खारवेल पाछी लाव्यो छे. त्यारबाद मगधमा वसेला एक शहेरनु वर्णन छे, पण तेना पछीनो भाग जतो रह्यो छे. त्यारबाद खारवेले कांहक बंधाव्यानुं वर्णन छे के जेमना शिखर उपर बेसीने विद्याधरो आकाशमां जइ शके. तेनो अर्थ एवों होवो जोइए के आ मकानो घणांज उंचां हता. त्यारवाद खारवेले एक हाथीनुं दान कयु जे दान तेणे पहेलां अगर पछीनां सात वर्षमा कयु नहोतुं. त्यारबाद जे आवे छे ते तुटी गयुं छे. पण तेमां तेणे जीतेला कोई देश, वर्णन आवे छे. तेरमा वर्षमा कुमारी टेकरी उपर आहेत-देवालयनी नजीक, बहारनी बेठकनी पासे, काइ काम कर्यानुं कहेलुं छे, पण शुं कर्यु छे ते जतुं रघु छे. कारण के आ भाग तुटी गयो छे. त्यारबाद विद्वानो तथा विश्ववंद्य यतिओनी एक सभा बोलाव्यानुं कहेलं छे. अने काइक, कदाच एक गुहा, आहेत बेठकनी नजीक खडकमा, उदयगिरिउपर हुंशियार कारीगरोना हाथे कराव्यानुं कहेलुं छे तथा वैडूर्यगर्भ, पटालक अने चेतकमां स्तंभो कराव्या विषे छे. आ काम मौर्य संवत् १६४ पछी १६५ मा वर्षमा कराववामां आव्युं हतुं. १ पटालक अने चेतक कदाच गुहाओनां नाम छे अने वैद्यगर्भ तेमनो एक भाग छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। त्यारनाद खारवेलनी वंशावळी आपी छे. खेमराज ( तेनो पुत्र ). वृद्धराज (तेनो पुत्र ). भिक्षुराज. आ लेखमां बताव्या प्रमाणे भिक्षुराज खारवेलनें बीजं नाम होय तेम लागे छे. भिक्षुराज, राज्य- पालन करनार, सुख भोगवनार, अनेक सद्गुणसंपन्न, सर्वधर्मपर आस्था वाळो,........संस्कार पाडनार, राज्य, वाहनो अने एक अजित लश्करवाळो, राज्यनी लगाम हाथ करनारो, देशने पाळनार, महाराजाओना वंशमां उत्सन्न थएलो, आ महान् खारवेल राजा छे. ___अहिंआं कहेली सदी मौर्य सदी छे. हजु सुधी मौर्य राजकाल कोई ठेकाणे जोवामां आव्यो नथी अने तेथी नक्की करवू जोइए के आ सदी क्याथी शरु करवानी छे. प्रश्न ए छे के आ सदी प्रथम मोर्यराजा चंद्रगुप्तथी अगर ए वंशना कोइ बीजा राजाथी शरु करवानी छे ? हुं धारूं छु के ते अशोकना आठमा वर्षथी शरु थाय छे तेनां बे कारणो छे:--( १ ) आ लेख कलिंग राजानो छ ( २ ) अने अशो. कना तेरमा लेखमां ते कहे छे, के मारा आठमा वर्षमा में कलिंग जीत्यु ते वखते घणा माणसोनो घाण नीकळी गयो; पण तेने माटे ते नाखुश छे परंतु ते आथी संतोष माने छे के सलाह स्थपाइ हती तथा धर्म आगळ वध्यो हतो. आवी मोटी जीतथी कलिंगना लोको नवी सदी शरु करे अने आ वर्षने आ सदीनुं प्रथम वर्ष मानिए तथा अशोकनी राज्यगादी बेठानी मिति के जे हवे नक्की थई गई छे तो आ लेखनी मिति हमेशने माटे नकी करी शकाय. "Aho Shrut Gyanam" Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। जो के अशोकना तख्तनशीन थयानी मिति विषे भिन्न भिन्न मतो छे पण ते थोडाक वर्षना अरसामा नक्की थाय तेम छे. जनरल कनींग. हामनी गणतरी प्रमाणे ( अने जे मारा मत प्रमाणे खरी छे) अशोकनी तख्तनशीन थयानी मिति ई. स. पूर्वे २६३ छे. ए प्रमाणे तेना कलिंग जीत्या पछी- आठमुं वर्ष ( अने कदाच ते वखते आ सदी शरु थई हशे ) ई. स. पूर्वे २५५ छे. खारवेले केटलांक कामो उदयगिरि टेकरी उपर कराव्यां तेनी मिति १६५ मौर्य संवत् अगर ( ई. स. पूर्वे ( २५५-१६५ ) ई. स. पूर्वे ९०. ते खारवेलना तख्तनशीन थयार्नु तेरमुं वर्ष छे जे तेनी मिति ई. स. पूर्वे १०३ आवे छे अने ते ९ वर्ष पहेलां युवराज थयो तेथी ई. स. पूर्वे ११२ मां यौवराज्य शरुं थयु. अने पहेलां पंदर वर्ष रमतमां गयां तेथी खारवेलनी जन्मतिथि ई. स. पूर्वे १२७ छे. तेना बाप तथा पितामहने माटे वीस वीस वर्ष गणतां नीचे प्रमाणे यादी थाय छः खेमराज ( सं. क्षेमराज ) ( ई. स. पूर्वे १६७) वुधराज ( सं. वृद्धराज ) ( , १४७) भिखुराज ( सं. भिक्षुराज) अगर खारखेल जन्म ई. स. पूर्वे १२७. युवराज थयो-ई. स. पूर्व ११२. राज्य उपर बेठो ई. स. पूर्वे १०३. उदयगिरि उपर कामो ॥ ९०. "Aho Shrut Gyanam" Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। बीजो लेख खारवेलनी स्त्रीनो छे. जे पोताने लालकना पौत्र हाथी. पाह ( हाथीसिंह ) नी पुत्री तरीखे ओळखावे छे. त्रीजा लेखमा एम कहेलं छे के जे गुहामां ए कोतरेलो छे ते गुहा वक्रदेव राजानी बक्षीस छ. आ लेखमां वक्रदेवनां जे विशेषणो छे ते खारवेलना जेवांज छे: र, कलिंगाधिपति, अने महामेघवाहन. आ उपरथी स्पष्ट जणाय छे के बन्ने एकज वंशना छे. आ लेखना अक्षरो खारवेलना लेखना अक्षरोना जेवा, कदाच अर्वाचीन छे; पण प्राचीनतो नहिज; अने खारवेलना रहेलांना बे राजाओने आपणे जाणीए छीए तेथी नकी वक्रदेव तेना रहेला होय नहि. कदाच ते तेनो पुत्र अने वारस होय. जे गुहामां बीजो लेख छे ते गुहामां चोथो लेख छ जेमा ' वदुख राजानु लयन' लखेलं छे अने अक्षरो सरखा छे तेथी वदुख ते वक्रदेवनो पुत्र होय म लागे छे, आ उपरथी नीचे प्रमाणे यादीनो कोठो घडी शकाय. खेमराज ( सं. क्षेमराज ) __ लालक. | (ई स. पूर्वे १६७) । (ई.स. पूर्वे १८०) वुधराज ( सं, वृद्धराज ) (नाम नथी) (ई. स. पूर्व १४७) | ( ई. स. पूर्व १६०) हस्तीसाह. अगर (इ. स. पूर्वे १४०) हस्तीसिंह. भिखुराज ( सं. भिक्षुराज) अगर खारवेल, राज्य शरु कयु-परण्यो-कन्या. (ई. स. पूर्वे १०३) । वक्रदेव (ई. स. पूर्व ९५ ) वदुख ( ई. स. पूर्वे ७५ ). "Aho Shrut Gyanam" Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। लेख १ ( हाथीगुम्फा लेख.) - -*०* नीचे आपेली नकल मारा लेखनी साथे तैयार करेली मारी नकल उपरथी छे. में जनरल कनींगहाम अने मेजर कीटुनी नकलो जोइ छे अने वापरी छे तथा पाठोमा जे फेरफार छे ते टीपमा आप्या छे. जे भागनी नीचे लीटीओ दोरी छे ते शंकाग्रस्त छे अने मूळ लेख साथे तेने काळजीपूर्वक मेळववो जोइए. नकल. (१) नमो अरहतान नमो सवसिधानं घेरेने महाराजेन महामेघवाहनेन चेतराजैवसवधनेनं पसयसुभैल१. कीटुनी नकलमां मो खोटो छे. जनरल कनिंगहाम ते खरं आपे छे. फोटोग्राफमां पण ते जुएं छे. २. हजु सुधी बधा विद्वानो वे ने बदले ऐ वांचे छे, जे शब्द ऐरेन एम कहे छे पण ऐ अक्षर हजु सुधी प्राकृतमा जोवामां आव्यो नथी, त्यारे वेरस एज वंशना बीजा राजानु विशेषण छे एम लेख नं. २ उपरथी जणाय छे. ( प्रीन्सेपना लेखामां नं. ६). वे नो व, मेघवाहनना वा ना व जेवो छे. फेर एटलो छ के तेनुं गळं सांकडं कर्यु छ जेथी ते ऐ जेवो लागे छे. ३. *K अने C बन्नेमा चेतराजना रा ने बदले का छे. पण ए * K (के) थी मेजर कीड ( Kittoe ) मी नकल समजवी. अने C (सी) थी जनरल कनींग हाम ( General Cunningham.) नी कॉपी समजवी.-संग्राहक vvvvvvv ww "Aho Shrut Gyanam" Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। खने न] चतुरंतकठीनगुनोपगतेनं कलिंगाधिपतिना सिरिखारवेलेनं. पंदरसवसानि सिरिकुमारसरीरवता कीडितो कुमारपथ्थरमां फाट छ जेथी ते क जेवो देखाय छे. ते जम्या उपर जइने में जोयुं छे के ए सीधी लीटी नथी. ४. वधनेन ने बदले K तथा c बन्नेमा छधनेन छे. पण मूळ लेखमां व चोखो छे. ५. मुभ ना भ ने बदले ( तथा C मां के छे. मूळ लेखमां अक्षर अस्पष्ट छे. तेथीज आ भूल थई छे. भ अक्षर विषे मने खात्री छे. ६. 0 मां चतुरंकल छे. पण K मां त छे अने मूळ लेखमा त स्पष्ट छे. ७. ( नी नकलमां गुनोपगतेन खोटुं छे. ८ मां छेल्ला प अने ग अक्षरो जे स्पष्ट छे ते सिवाय ते खरुं छे. ८. कलिंगाधिपति ना मूळ लेखमा लिं उपरनुं अनुस्वार जो के जरुरनुं छे तोपण नथी C पोतानी नकलमां अनुमान तरीके अनुस्वार आपे छे. हुं धारूं छु के x नी नकलमा लि नो इकार आवेलो नथी. छेल्लो अक्षर K नी नकलमां रा जेवो देखाय छे. C नी नकलमां चा छे जे खोटुं छे. ९. K मां सिरिखेरवेलोनं तथा c मां सिकावारवेलेन छे. पण मूळमां सिरि स्पष्ट छे. खारवेलेन मा छेला चार अक्षरो स्पष्ट छे. पेहेलो अक्षर शंकास्पद छे, ते खा अगर खि होई शके पण घणे भागे ते खा छे. कारण के आ लेखनी छेल्ली लौटीमां खारवेल ए माम स्पष्ट आपेलं छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ प्राचीनजेनलेखसंग्रह। कीडको ततो लेखरूपगणनाववहारैविधिविसारदेन सबविजोक्दातेन नववसानि" योवराज पसासित संपुणचतुविसतिवसोंचं दानवधमेन सेसयोवनाभिविजयवतिये १. C मां कीडिता नी की ने बदले री छे. पण मूळ लेखमां, K मां तथा फोटोग्राफमां की स्पष्ट छे. २. C मां भूलथी कीडका नो ड नथी. x मां छे. ३. ववहार ने बदले K मां ववपार तथा 0 मां ववेपार छे. पा अने हा अक्षरो लगभग सरखा छे. फेर मात्र हा मां बाजुना कापामां छे. जे पथ्थरमा फाटने लीधे बन्नेना ध्यानमा ते आव्यो नथी. C D वे खोटुं छे. ४. विजा ने बदले 0 मां तिजा छे. पण मूळमां तथा K मां वि स्पष्ट छे. विजावदातेन पछी तथा नव ना पहेला C ए इ अक्षर घुसाड्यो छे जे मूळमां नथी, K मां नथी तेमज अर्थनी पूरवणीमां जरुरनो पण नथी. ५. वसानि ने बदले K मां वसाना छे अने C मां °वसानि छे. जो के मूळमां नीचेनो भाग भांगी गयो छे तो पण ते नि जेवो देखाय छे अने खरी रीते तेज छे. ६. c मां योवराज ने बदले योवरज तथा K मां होवरज छे. पण मूळमां योवराज स्पष्ट छे. हुं धारुं छं के ज उपर अनुस्वार जोइए; जो के मूळमां होय तेम लागतुं नथी. ७. मां पसासिवं अने K मां पसासिव छे. जो के K मां छेल्लो अक्षर शंकास्पद छे. मूळ लेखमां आ अक्षरनी नीचे एक छिद्र छे तेथी आ भूल थह छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग | २३ (३) कलिंगराजवंसपुरिसयुगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति ” अभिसितमतो चं पथमवसे वातविहतगोपुरपाकारनिवेसनं पटिसंखारयति कलिंगनगरिं खिबीर चैं सितलतडार्गेपाडियो च बधापयति सबुयानपतिसंठापनं च ८. संपुणचतुविसतिवसो ने बदले K मां संपुणचव विसत छे. C मां स्वरुं छे. ९. मां च ने बदले स छे अने K मां कांइज नथी. १ • K मां विजपात तिये छे अने मां विजयोत तिये छे. य भांगी C E गयो छे पण व स्पष्ट छे तेथी संस्कृत विजयवृत्यै ने बदले विजयवतिये हुं पसंद करूं छं. य, पो होइ शके पण अहींयां पो नी पहेलां य ना लोप विषे आपणे कारण आपी शकीए. तेथी सं. विजयप्रवृत्त्यै ने बदले विज[य] पोतिये पण थाय. ११. पापुनाति ने बदले मां पापेनाति छे. पण मूळमां तथा K मां पु स्पष्ट छे. १. ० नी नकलमां मतो नो म, अ जेवो देखाय छे. पण मूळ लेखमां तेमज x मां म स्पष्ट छे. K २. से ने बदले मांस छे. मूळ लेखमां तेमज K मां से c स्पष्ट छे. ३. खिबीरं च वांचो. च झांखो छे. ४. मां सिताळतडिग छे. K मां खरुं छे. ५. K मां आ शब्द बघपयति जेवो देखाय छे तथा मां चपयति जेबो के. "Aho Shrut Gyanam" Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाचीनजैनलेखसंग्रह। (४) कारयति । पनतीसाहि' सतसहसेहि पकातिये रजयति दितिये च वसे अमितयिता सातकणि पछिमदिसं ६. K मां सवुयानपतिसंठयपव अने c मां सवयानंपतिसंठपनं च छ. c मां देखाडेलु चोथा अक्षर उपरर्नु अनुस्वार ते अनुस्वार नथी पण शिलामां छिद्र छे. १. c मां पंनतासिजी अने K मां पंनतिसिसि छे. २. c मां सअपहसेहि छे. पण सतसहसेहि मूळ लेखमां तेमज K मां स्पष्ट छे. ३. 0 मां पकातियेइ छे. ४. c मां जछतः छे. पण पहेलो अक्षर जे जरा झांखो छे ते सिवाय मूळ लेखमां रजयति स्पष्ट छे. तेथी K ए पहेलो अक्षर मूकी दीधो छे पण बाकीना त्रण अक्षर खरा आप्या छे. ५. K मां दताये अने C मां दतिये छे. पण पहेला अक्षरने इकार होय तेम मने लागे छे तेथी हुं दि वाचुं छु. डु पण होइ शके. आ बन्ने सं. द्वितीये ने माटे वपराया छे. ६. c मां अचितयत तथा : मां अचितयित छे. बीजो अक्षर भांगी गयो छे तेथी ते चि जेवो देखाय छे. पण ते भि छे, तेथी सं. अभित्राय ने माटे अभितयिता वांचवू पसंद करूं छु. C मां जे एकार छे ते भूल छे मूळ लेखमा इकार स्पष्ट छे. ७. Kनी नकलमां सोतेकानं तथा c मां सोतकानि छे मूळ लेखमां सातकणि स्पष्ट छे. K नो सो ए भूल छे अने c मां "Aho Shrut Gyanam" Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। हयगजेनररथबहुलं दंड" पठापयति कुसंबान खतिपण ते प्रमाणे छे. तेनुं कारण एवं होइ शके के कोईए प्लास्टरने शाही लगाडी हशे तेथी फोटोग्राफमां सो जेवू देखाय छे. ८. K मां पयिमदिसं छे. कारण के य तथा छ लगभग एक सरखाज छे. छ ना उपरना गोळाधने K ए खरी रीते, छे एम धार्यु हशे. कारणके त्यां जरा फाट छे अने तेथी ते य जणाय छे. C नी नकलमां सछिमदिसं छे. पण मूळ लेखमां बेशक पहेलो अक्षर प ज छे. ९. K मां पयगज छे कारण के प अने ह लगभग सरखा छे. मूळ लेखमां ह स्पष्ट छे अने ८ मां पण खरं छे. ८ मां बीजो अक्षर ये छे पण मात्रा करवी नहि जोईए. वळी तेमां गज ने बदले मन छ ते पण भूल छे. १०. K अने C बन्नेए बहुलं ना ल ना उपरतुं अनुस्वार काढी नांख्युं छे. पण मूळ लेखमां अनुस्वार स्पष्ट छे. ११. ८ मां नंते छे जे स्पष्ट रीते भूल छे. मां दंड छे तथा ड नी उपर एक अनुस्वार जेवू छे. १२. K अने C बन्नेमां पथापनति छे. पण में चोथो अक्षर बराबर जोयो छे अने ते य छे; तेनी नीचेनी लोटी वक्र छे तोपण य स्पष्ट छे. पथापयति नी आगळ आ लीटीनो जे भाग जाय छे ते शंका उत्पन्न करे छे. कारण के अक्षरो झांखा तथा अस्पष्ट छे. K नी नकल स्पष्ट छे अनेक नी नकल घणी भूलोवाळी छे. १३. ८ ए कुसवानं नु कु मूकी दीधुं छे. पण ते मूळ लेखमा स्पष्ट छे. ( मां कु ने बदले क छे. छेल्लो अक्षर (नं), ना जेवो देखाय छे, पण ना होय तो काइ सारो अर्थ नीकळतो नथी. हूं धारु "Aho Shrut Gyanam" Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजनलेखसंग्रह। यं च सहायता पतं मसिकनगरं (?) ततिये च पुन वसे" गंधववेदबुधों' दंपनतमीतैवादितसंदसनाहि उस वसमाजकारापनाहि च कीडापयति नगरी इर्थं चछु के अनुस्वार तथा अक्षरनु माथु बे मळी गयां हशे तेथी आम देखाय छे. जे शब्दो नीचे में लीटी दोरी छे तेमना विषे मने खातरी नधी. मूळ लेखमां ते पुनः वांचवा जेवा छे, कदाच कोई फेरफार मालूम पडे. १४. ततिये च पुन वसे K मां ततिये बदले बसिये शंकाथी आप्धुं छे 0 मां आ ठेकाणे तद्दन भूल छे. मूळ लेखमां जो के स्पष्ट नथी तोपण तति ओळखी शकाय छे; अने ये तथा तेनी पछीना पांच भक्षरो तद्दन चोखा छे. १. c मां धो ने बदले धा छे. पण K मां तथा मूळ लेखगा घो स्पष्ट छे. २. 0 मां दंपेनति छे जे भूल छे. K मां तथा मूळ लेखमा दंपनत स्पष्ट छे. ३. K मां गि छे. अने c तेने भूलथी अ धारे छे. ४. K तथा C बन्नेमा हा छे; पण मूळ लेखमां हि स्पष्ट छे. ५. K तथा C बन्नेमां हि ने बदले पि छे. कारण के लांबो लाटो तेमना जोयामां नहि आव्यो होय. ६. c ए डा तथा प विषे गुंचवाडो कर्यो छे अने तेथी "Aho Shrut Gyanam" Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। वुथे वसे विजापराधिवासं अहत” पुर्व कलिंगपुवराजनमंसित . . . . . . . . . . . . . . . " धमकूटस . . . [पू]जित च निखितछत(६) भिंगारेहि तिरतनस' पतयो' संवरठिकभोजकेसादेवं किसयंति वांचे छ. K नु खरुं छे, तेणे डा ज वांच्यो छे अने शकमंद छे एम कहेलुं छे. ७. इ तथा थ बन्ने अक्षरो झांखा तथा शंकास्पद छे. K मां तथ जेवू देखाय छे. कदाच तथा होय. मने तो पहेलो अक्षर इ जेवो देखाय छे पण ते अ जोइए. ० इ आपे छे अने थ ने मूकी दे छे. ८. मूळ लेखमां चबुथे स्पष्ट छ. K मां विबुथे अने c मां प्रथम एक खोटा अक्षर पछी तथे छे. ९. 0 मां विसे छे पण मूळ लेखमां तथा K मां वसे स्पष्ट छे. १०. K ए स उपरतुं अनुस्वार मूकी दीधुं छे. C मां ते छे. ११-१२. त तथा व उपरना अनुस्वार झांखा छे ते बेउ नकलोमां नथी. १२. नमंसितं शब्दो झांखा छे. १४. नव अक्षरो जताज रह्या छे; मात्र ति रह्यो छे. १५. C ए कू मूकी दीधो छे अने K मां तेने बदले ट छे. मूळ लेखमां कू स्पष्ट छे. त्यार पछीना त्रण अक्षरो जता रह्या छ जेमांनो छेल्लो पू हशे कारण के तेनी पछी जिते आवे छे. १.० तथा K बन्नेमा तरतनंसा छे. मने पहेला अक्षर उपर घणोज अस्पष्ट इकार देखाय छे. २. C तथा K बन्नेमां पतय छे पण यो स्पष्ट छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनले खसंग्रह। दसयति पंचमे च दानि वसे नंदराजतिवससतं ओघाटितं तनसुलीयवाटा पनार्डि नगरं पवेस. • • • • . . . . . . . . . . . . . . राजसेयसंदंसणतो सक्करावणं. अनुगहअनेकानि' सतसहसानि' विसजति पोरजानपदं सतमं च वसं पसासतो च • • • • • • • • • • • • • • • • • • • सवोतुकुल • • • • • अठमे च वसे • • • • • • • . . . . . . . . ३. c मां सत छे. पण व K मां तथा मूळ लेखमां स्पष्ट के ४. C मां पंचापु जेवु देखाय छे अने ने छेल्ला अक्षर विषे शंका छे. मने म ना भाग जेवू देखाय छे. ५. तन ने बदले तेन हशे. भूलथी तेनी मात्रा काढी नांखी हशे. ६. पहेला पंदर अक्षरो जता रहेला पछीना पांच अक्षरो पण झांखा छे परंतु इथिहितो च ना जेवू देखाय छे. १. c मां अनेकाना छे. K खरो छे. २. c मां साना छे. K खरो छे. ३. ० मां वासेजति अने K मां वासजति छे. मूळ लेखमा विछे जोके ते थोडी बगडेली छे. ४. मां वसं नो व जरा बगडेलो छे. ५. K ए अ मूकी दीधो छ जे घणो झांखो छे. मां तेने बदले ये छे. c मां वसेने बदले वसु छे तेना पछीना २१ अक्षरो कळी शकाय तेम नथी. "Aho Shrut Gyanam" Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग | २९ (८) घातापयिता राजगद्दनपं' पीडापयति' एतिनं च कमपदानपनादेन सवत सेनवाहने विपमुचितुं मधुरं अपयातो' नवमे च [बसे 1 ] पवरको १. अहीं K तथा C बन्नेनी भूल छे बन्नेमां राजगंडभपं छे. जो के अक्षरो झांखा छे तो पण ओळखी शकाय छे. २. K तथा मां बतावेला य नी नीचेना तथा डा नी बाजुना लीटा शिलामां पडेली फाटो छे. अने तेथी तेमने अक्षरो साथे कांइ संबंध नथी. ३. K मां पंबात छे. कारण के अक्षरोनी उपर एक झांखी लीटी जेवुं देखाय छे. K मां प उपरनुं जे अनुस्वार छे ते मात्र छिद्र छे. मां पवंत छे जे भूल छे. पहेला अक्षरनी डाबी बाजुए स नो कीटो छे अने आछो व देखाय छे. C ४. मां पमचितु छे. K खरो छे. ५. C खरो छे. K मां 'यातो ने बदले नतो छे. · ६. न तथा व ए वे अक्षरो स्पष्ट छे मे अने च जो के अस्पष्ट छे तोपण ओळखी शकाय छे. वसे अक्षरो सूचित थाय छे. बाकीनी लीटी जती रही छे. अहीं नहीं एक एक अक्षर देखाय पण कोइ कळी शकाय तेम नथी. ७. C मां आ खरं आभ्युं छे. K मां पपबम छे. " Aho Shrut Gyanam". Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। कपरुखो' हयगजरसह यते सर्व घरावसधं . . . . . . . . . . यसवागहनं च कारयितुं बमणानं जम्हि रढिसारं ददाति अरहत. . . . . . . . . . • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •[निवासं' महाविजयपासादं का रयति' अठतिससतसहसेहि दसमे च बसे' . . १. K मां कपरुख छे. परंतु आ अनुस्वार नथी पण छिद्र छे अने ख उपर ओकार स्पष्ट छे. ८ मां किपरुख छे. २. अहीं c अने र बन्नेए भूल करी छे. अक्षरो झांखा छे पण ओळखी शकाय तेम छे. ३. c मां घरावसयं छे. पण जे भाग नीचे रह्यो छे ते उपरथी अक्षर ध जणाय छे. ४. 0 मां बइमनोनं छे जे तद्दन खोटुं छे. ५. ज थी रं सुधीना छ अक्षरो झांखा तथा घसाई गएला छे. पण ते वांची शकाय तेम छे. १. पहेला नव अक्षरो अर्धा भांगेला छे अने तेथी बराबर ओ. ळखी शकाय तेम नथी. निवा शब्द शंकास्पद छे. तेमना उपरनो भाग स्पष्ट छे. २. K मां कारयति ना का ने बदले दे छ. c मां बराबर छे अने मूळमां स्पष्ट रीते का छे. ३. K मां अठ नो अमूकी दीधेलो छे. ८ मां ते आपेलो छे. तिसयुसव ने बदले c मां हितहुसव छे अने K मां तसयसत. "Aho Shrut Gyanam" Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग • • • • • • • • भारधवसपठान । • • • • • • कारापयति । • • • • • • • • उयतानं च मनोरधानि उपलभता. छे कारण के कदाच ति नो इकार जरा आछो छे तेथी तेमा आप्यो नहि होय. ४. तथा 0 बेउमां दसामे छे, कारण के स आगळ जरा लीटो छे तेथी तेमणे आकार लीधो छे. ५.मा तुसे छे. कारण के व नो नीचेनो भाग जरा भांगी गयो छे. x नी पण अहीं भूल छे. ६ बसे नी पछीना दस अक्षरो जता रह्या छे. केटलाकना उपरना भाग देखाय छे. पण तेथी कांइ चोक्कस कही शकाय नहि. फोटोग्राफमां पण एवाज आछा पड्या छे कदाच बेनी सरखामणी कर्याथी कांइक बनी शके. आ दस अक्षरोनी पछी भारधवसपठान छ आमांनो न घणोज आछो छे. c मां भा ने बदले क छे पण आ भूल छे. ० ए पठान नो ठा मूकी दीधो छे. वसप अक्षरो सिवाय K ए आ भागमा भूल करी छे. बीजा १२ अक्षरो गया छे. पण केटलाकनो आछो आकार देखाय छे. जो मूळ लेखनी चोकस तपास करवामां आवे तो कांइक बनी शके पण त्यां सुधी ते शंकाग्रस्त रहेशे. मारी नकलमां में तेमने लीधा नथी. ७. ८ मां राचावीयति छ, K ए पण अहीं भूल करी छे. आना पछी २७ अक्षरो जता रह्या छे. तेमांना केटलाक आछा देखाय छे, पण ते स्पष्ट रीते ओळखी शकाय तेम नथी तेथी में मारी नकलमा लीधा नथी. "Aho Shrut Gyanam" Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ (११) प्राचीन जैनलेखसंग्रह पुवराजनिवेसितं पाथुडं गर्दभनगले' नकासयति जनपदभावनं च तेरस वससताक 'देहसंघातं बारसमं चॅ व[सं] दतामर इस हि वितासयंतो उतरापथराजानो १. ११ मी थी १७ मी लीटी सुधीनो शरुआतनो भाग जतो रह्यो छे अने दरेकमां लगभग १० - १० अक्षरो जता रह्या छे. # # २. K अने C बन्नेमां पिधुडं छे. पण मूळ लेखमां पाथुडं स्पष्ट छे. गदंभनगले ने बदले c मां गदंअनधेधो छे. K नुं खरुं छे. ३. ० मां नकासयंत छे तथा K मां नकासयत छे. पण छेल्ला अक्षरनी उपर आछो इकार होय तेम मने लागे छे. • ४. लेखमां आपेला अक्षरो दसितामरदेहसंघातं शंकास्पद छे. अने जो ते काळजीपूर्वक वांचवामां आवे तो कांइक वधारे सारो पाठ नीकळी शके. *79. १. ० मां च ने बदले ड छे. ९. दिविता • नो. विवासयंतो ना ता अने स नी उपर एक नानी फाट छे जेने K अने O ए इकार गण्यो छे. उतरा ना रा ने बदले ० ए ओ लोघो छे जे खोढुं छे. पध ने बदले तेणे पय लोधी छे जे स्पष्ट भूल छे. राजानो ना जा मां मूकी दीधो छे अने जगण्यो छे. "Aho Shrut Gyanam" कारण के मूळ लेखमां ध आकार स्पष्ट छे तो पण ० ए ते Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। • • • • • मगधान' च विपुलं भयं जनेतो हथिस गंगायं पाययति मगधं च राजानं बहुँ पटिसासिता पादे वदापयति नंदराजनितस अगजिनसँ • • • • • • • • • • • • • • गहरतन पडिहारहि मगधे वसिवु नयरि. १. ० ए मगधानं नो ग मूकी दीधो छे. K ए ग तथा धा बन्ने खोटा कर्या छे. २. भयं ने बदले c मां वियं छे; कारण एम होइ शके के प्रथमना अक्षरना नीचेना भागो जोडवामां आवे छे एम मान्यु हशे. K मां लेयं छे. ३. प्रथमनो अक्षर म आछो छे. ग आछो पण स्पष्ट जणाय छे अने धंच तद्दन स्पष्ट छे. C ए बे अक्षरोनी जग्या राखीने मच लख्या छे. K ए एक अक्षरनी जग्या राखीने धंच लख्या छे. ४. K तथा C बन्नेमां वह छे, पण मने बीजा अक्षरनी नीचे उकार स्पष्ट देखाय छे. ५. K मा पटिसासित अने C मां सटिसित छे, पण मूळ लेखमां पटिसासिता स्पष्ट छे. ६.c मां वदापयति तथा K मां वादापयति छे. पण बन्नेए प उपर जे अनुस्वार गण्यु छे ते मात्र छिद्र छे अने ते पण अनुस्वारनी जग्याए नथी. पहेला अक्षर उपर मूळ लेखमां अनुस्वार नथी, पण त्यां एक जोइए. ७. नितस मांनो स शंकाग्रस्त छे. ० ए वा गण्यो छे अने र ए शंका साथे ठा गण्यो छे, मारुं धारवू एवं छे के ते स छे. बीजा "Aho Shrut Gyanam" Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ (१३) प्राचीन जैन लेखसंग्रह | विजाधरु लेखिले वरानि सिहरानि निवेशयति सतवसदानपरि हारेन अभूतमकरिये व हथी नादानपरिहारं + अक्षरने बदले K मां अ छे, पण ० मां म छे. एम होइ शके के नीचेनी आडी लीटी, ए शिलामां फाट होय त्यारे अ जोइए अने तेथी नंदराजनितस अगजिनस पाठ थाय; जो म गणीए तो नंदराजनितसमगजिनस पाठ थाय. त्यार पछीना १८ अक्षरो जता रह्या छे. केटलाक अस्पष्ट तथा झांखा छे. जे जमीन उपर ते कोतर्या छे ते खरबडी छे, K अने c मां घणो फेर पड़े छे, मारा पाठो पण शंकास्पद छे. १. अक्षरो जरा झांखा छे. C मां तुजिपर छे जे खोटुं छे. व नो नीचेनो भाग जरा जीर्ण थयो छे तेथी तेमणे तु गण्यो छे. K नो पाठ जरा सारो छे पण तेमां केटलीक भूलो छे. २. अहींआ केटली खाली जग्या छे अने हुं धारुं छु के त्यांथी एके अक्षर गयो नथी. २. ० मां निवइयति छे तथा K मां निवेनेयति छे. हुं धारुं छं के निवेसयति जो के झांखुं छे पण स्पष्ट छे. ४. C मां थरिहारेन छे. K मां खरुं छे. ९. मां अस्तिमसारियंच अने K मां असुमसरियंच छे. मूळमां अभ्रुतमकरियंच स्पष्ट छे, ६. हथी नी पछीना त्रण अक्षरो भांगी गया छे अने नंदान जेवा देखाय छे. परिहारं नी पछीना तेर अक्षरो तद्दन नष्ट थया छे. कदाच तेमांना पहेला चार कारयति होई शके. "Aho Shrut Gyanam" Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) प्राकृतलेखाविभाग | इथं सतस सिनो' सिकरोति' तरेस बसे सुपवतविजयिचको कुमारीपवते अरहतोपें । [ निवासे ] बाहिकार्य निसिदियायं यपज के " " आहरापयति & कालेरिखिता. [ स ] कतसमायो' सुविहितानं' च D (१५) १. पहेला दस अक्षरो जता रह्या छे. दसमो अक्षर वा होई शके कारण के तेनी पछीना अक्षरो सिनो छे. २. करोति ने बदले c मां करड तथा K मां करिति छे, पण मूळ लेखमां करोति स्पष्ट छे. ३. अरहतो नी पछीना अक्षरो घणा झांखा छे. में शंकाथी वांच्या छे. मारुं धारखं छे के जो मूळ लेखनी काळजीपूर्वक तपास थाय तो संतोषकारक पाठ नीकळी शके. यपजके नी पछी ३९ अक्षरो जता रह्या छे अने छेल्ला ५ अक्षरो देखाय छे ते काळे रिखिता छे. "Aho Shrut Gyanam" १. मां कतसमेलं छे. K मां कतसमे अने तेनो छेलो अक्षर शंकायुक्त छे. पण म उपर कोई मात्रा मने जणाती नथी. एक फाटने ली म नो उपरनो लीटो स साथे जोडाई गयो छे, तेथी, हुं वारूं छं के आ वे नकलोमां मात्रा छे. अक्षरना मध्यमां मनो 'आ'कार स्पष्ट छे, छेल्लो अक्षर यो अस्पष्ट छे. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजेनलेखसंग्रह। सवदिसानं [ यानिनं ] तापसा[ नं ? ] . . . . . . . . संहतानं (?) अरहत निषिदियासमीपे पभारे वरकारुसमथ[ थ पतिहि अनेकयोजनाहि २. c मां सविहितेनं तथा मां सविहितिनं छे. मूळमां सुविहितानं स्पष्ट छे. मात्र ता नो 'आ'कार शंकास्पद छे. ___३. c मां सुतदासितं तथा K मां सुतदिसानुं छे. न नी नीचे मने 'उ'कार लागतो नथी. बीजो अक्षर जेने तेओ त गणे छे ते आछो व छे. ४. अहीं c अने K बन्नेनी भूलो छे. ५. ८ मां तपसिम अने K मा तपसह छे. आ भूलो छे. ६. c मां संपुपनं तथा K मां संपपनं छे. हुं धारूं छु के ए संहतानं आर्छ थयेलं छे. ७. K मां अरहस छे, कारण के त नी बाजुमा फाटने लीधे ते स जेवो देखाय छे. त अगर स गमे ते वांचीए तोपण अर्थातर थतो नथी मां चहस छे जे खोटुं छे. ८. तथा बन्नेए कारु खोटी रीते आपेलुं छे. पण मूळमां कारु स्पष्ट छे. मूळमां समथ नी पछी पतिहि स्पष्ट छे. थ उपर शिलामा फाट छे, अने आ फाटनी नीचे छिद्र छे. तेथी बन्नेए प ने बदले धि गण्यो छे. मूळमां स्पष्ट रीते प छे. बन्नेए तिहि ने खोटो गण्यो छे पण ते मूळमां स्पष्ट छे. ते पतिहि छे पण हुं धारूंछ के पहेला थ पछी बीजो थ हशे जे कोतरनारे मूकी दीघो छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) प्राकृतलेखविभाग । • • • • • • • • • • • • पटालके चेतके' च वेडरियगर्भ थमे पतिठापयति पनंतरिय सठि वर्स सते राजमुरियं काले वोछिने , चोयठअगसतिकुत९. मां योजनापि छे. K नु खरूं छे. जे अक्षरो तेनी पछी आवे छे ते झाखा तथा अस्पष्ट छे तेथी हुं कळी शकतो नथी. जो खास तपास करवामां आवे तो तेमाथी कांई नीकळी शके. लेखना अर्थने माटे ते घणा उपयोगी छे. १. मां चे अने र मां चतक छे. मारा मत प्रमाणे ते चेतके छे. २. c मां तेपरियगभे अने K मां बेटुरियगम छे ते वेळरियमभे अगर वेडरियगभे पण होई शके. ३. K मां ठापयति नो ठ खरो नथी. ४. K मां पनंतरिय खोटुं छे. C मां ते खरूं छे. ५. c मां सच छे. पण ते ठ ना इकारने लीधे च जेवो देखाय छे. फोटोग्राफमा टि चोरूखी जणाय छे. K ए अक्षरो खोटा आप्या छे. ६. c मां वस खरुं छे. K ए अक्षरो भांगेला आप्या छे. ७. सते जो के झांखा छे तोपण स्पष्ट छे. ए ते मूकी दीधा छे. 1. सते पछी एक अक्षर जतो रह्यो छे अने तेनी पछी ज आवे छे. हुं धारूं छु के वचलो अक्षर रा छे. जा पछी आछो मुछे अने रि जो के घसाइ गयो छे तोपण तेना उपरना भागमा स्पष्ट छे. ० ए मुरि मूकी दीछो छ. K ए म नो उपरनो भाग मात्र बताव्यो छे. राज ने बदले K रिज वांचे छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। रियं" चुपादयति खेमराजा स वधराजी स भिखुराजी इ[ना]मराजा पसंतो सनतो अनुभवतो [क] लाणानि (१७) . . . . . . . . गुणविसेस कुसलो सवपासंडपू ‘जको' . . . . . . तानसंकारकारको [अ]पति९. C मां कोल छे. अहीं K नी भूल छे. मूळमां काळे स्पष्ट छे, १०. ८ मां चेछिनंच छे. K ए पहेला अक्षरमां भूल करी छे अने तेने बदले कांइ खोटुं आप्यु छे. ११. K अने c कतरियं वांचे छ. K ए क नी बेसणी जाडी आयी छे जे उकार छे. १२. ० अने K मां नपादयति छे. पण चु स्पष्ट छे. १३. ८ मां अगमराजा छे. अने K मां पहेला बे शंकाग्रस्त छे पण मूळमां खेमराजा स्पष्ट छे. १४. बीजो अक्षर जरा गोळाकार छे अने ठ जेवो देखाय छे. c मां तद्दन ठ जेवो आप्यो छे. K मां वठराजा छे. मारा मत प्रमाणे ते वधराजा, सं. वृद्धराजा छे. ११. खु शंकाग्रस्त छ. K करतां c मां आ भाग सारो आप्यो छे. १६. भांगेलो अक्षर कदाच क छे; K मां लाणानि तथा c मां राणानि छे. १. K अने c बन्नेमा विसेस नो स जवा दीधो छे, फोटोग्राफमा ते स्पष्ट छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। हतचकिवाहनवला चकघरो गुतचको पसंतचको राजसिवंसकुलविनिगतों महाविजयो राजा खारवेलसिरि ॥ २. c मां को ने बदले ण छे. मूळमां को स्पष्ट छे. त्यार पछीना छ अक्षरो नष्ट थया छे. ३. ० ए ता पछी बे अक्षरोनी जग्या खाली राखी छे. पण स्पष्ट रीते देखाय छे के फक्त एकज अक्षर न नी जग्या छे. संकार ने बदले c मां भकार छे जे भूल छे. कारण के मूळमां संकार स्पष्ट छे. K मा मात्र कारकार छे अने बीजा अक्षरो छोडी दीधा छे. ४. c ए अ मूकी दीधो छे. ति ने बदले ल ए खोटो अक्षर आप्यो छे पण ति स्पष्ट जणाय छे. वाहन ने बदले c ए वाहनि आप्यु छे अने बलो ने बदले ठलो अक्षरो पण खोटा छे. ५. c मां रिसंतचको छ. K - खोटुं छे. ६. नुं खरूं छे, KD खोटुं छे. ७. K मां खरवेल छे. ७ ए खारवेल आप्यु छ जे खरू छे. ए सिरि नी पछी रि थी जरा नीचे नो आप्युं छे. फोटोग्राफमां तेमज K मां आ प्रमाणे नथी. कदाच उपर कोई अक्षर मांगी गयो छे एम दर्शाववाने नो मूक्युं हशे. अहींआं तो तेने कोई संबंध नथी. "Aho Shrut Gyanam" Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। प्राकृतनुं संस्कृत-भाषान्तर. (१) नमोऽईयः नमः सर्वसिद्धेभ्यः। वीरेण महामेघवाहनेन चैत्रराजवंशवर्धनेन प्रशस्तशुभलक्षणेन चतुरन्तरस्थानगुणोपगतेन कलिङ्गाधिपतिना श्रीखारवेलेन (२) पञ्चदशवर्षाणि श्रीकुमारशरीरवता क्रीडिताः कुमार क्रीडाः। ततो लेखरूपगणनाव्यवहारविधिविशारदेन सर्वविद्यावदातेन नव वर्षाणि यौवराज्यं प्रशासितं संपूर्णचतुर्विंशतिवर्षश्च दानेन च धर्मेण शेषयौवनाभि विजयवृत्त्यै (३) कलिङ्गराजवंशपुरुषयुगे महाराजाभिषेचनं प्रामोति । अभिषिक्तमात्रश्च प्रथमवर्षे वातविहतगोपुरमाकारनिवेशनं प्रतिसंस्कारयति कलिङ्गनगरी शिबीरं च शीतलत. डागपालीश्च बन्धयति सर्वोद्यानप्रतिष्ठापनं च (४) कारयति पञ्चत्रिंशच्छतसहस्रः प्रकृती रञ्जयते । द्वितीये च वर्षे अभित्राय शतकणिः पश्चिमदिशं हयगजनररथ १. लेखमां कडार जेवू कांइ छे जे क्रीडालु नुं प्राकृत होई शके. मने कुमार वांचवानुं पसंद पडे छे. कारण के क ने जमणी बाजुए नीचे एक आछो लीटो छे, अने डा भांगी गयो छे. तनो नीचेनो भाग गोळाकार छे. अने तेनो उपरनो लीटो मा ना जमणी तरफना भाग जेवो लागे छे. मा अक्षर घसाइ गयो छे अगर कोतरनारनी ते भुल हशे. "Aho Shrut Gyanam" Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेख विभाग | बहुलं दण्डं प्रस्थापयति कुसंवानां क्षत्रियाणां च सहायवता मा मसिकनगरं ( 2 ) तृतीये च पुनर्वर्षे (५) गंधर्ववेदो बुद्धो दंपनृत्तगीतवादित्र संदर्शनैरुत्सवसमाजकारणेच क्रीडयति नगरीं । इत्थं चतुर्थे वर्षे विद्याधराधिवासं अहतं पूर्वं कलिङ्गपूर्वराजेन पूजितं च निक्षिप्तच्छत्र धर्मकूटस्य 4 • (६) भृङ्गारैः त्रिरत्नस्य प्रत्ययः सर्वराष्ट्रिकभोजकेषु स्यादेव दर्शयति । पञ्चमे चेदानीं वर्षे नन्दराज त्रिवर्षसत्रमुद्घादितं तनसुलीयवाटात् प्रनाळीं नगरं प्रवेश्य राज्यश्रेयः संदर्शनत उत्सवकारणं .. (७) अनुग्रहानेकानि शतसहस्राणि विसृजति पौरजानपदे । सप्तमं च वर्षे प्रशासन् च अष्टमे च वर्षे . (८) घातयित्वा राजगृहनृपं पीडयति । एतेषां च क्रमप्रदानप्रणादेन सर्वत्र सैन्यवाहनानि विप्रमुच्य मथुरामपयातः । नवमे च [ वर्षे ? ] · • मवरकः ( ९ ) कल्पवृक्षो हयगजस्यैः रूह यंत्र सर्वे गृहावसथं यस्य वा ग्रहणं च कारयितुं ब्राह्मणेभ्यः • यस्मिन्नृद्धिसारं ददाति अर्हन्त. "Aho Shrut Gyanam" Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह । (१०) . . . . . . . [ निवासं महाविजयप्रासादं का र यति अष्टात्रिंशच्छतसहस्त्रैः। दशमे च वर्षे . . . . • • • • • • • . . . . . . . भारतवर्षप्रस्थान . . . . . . . . कारयति . . . . . . . . . उद्यतानां च मनोरथान्युपलभ्य (११) . . . . . . . . . . . . ल पूर्वराजनिवेशितं प. थिदेयं गर्दभनगरे निष्कासयति जनपदभावनं च त्रयोदश वर्षशतात् . . . . . . . . द्वादशे च वर्षे] . . . . . . . . . . वित्रासयंत उत्तरापथराजानः (१२) . . . . . . . . . मागधानां च विपुलं भयं जन यन् हस्तिनो गङ्गायां पाययति मागधं च राजानं बहु प्रतिशास्य पादौ वन्दयते नन्दराजनीतस्य अग्रजिनस्य . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . मगधे वास्य नगरी (१३) . . . . . . . . . विद्याधरोल्लेखिताम्बराशिखराणि निवेशयति सप्तवर्षदानपरिहारेणाद्भुतमकृतं च हस्तिनां दानपरिहारं . . . . . आहारयति इत्थं शत . . . (१४) . . . . . . [वासिनो वशीकरोति । त्रयोदशे वर्षे सुप्रवृत्तविजयिचक्रः कुमारीपर्वतेऽहंदुपा निवासे ] वाह्यकायां निषद्यायां . , . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . काले रक्ष्य "Aho Shrut Gyanam" Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग । (१५) . . . . . . . . . . . कृतसमाजः सुविहितानां च सर्वदिशा ज्ञातीनां तापसानां . . . . . . . . . . . . . . . . . अर्हनिषद्यायाः समीपे माग्भारे वरकारुसमर्थस्थपतिभिरनेकयोजनाभिः . . . . . . (१६) पटालके चतके च वैडूर्यगर्भ स्तम्भान्प्रतिस्थापयति पञ्चोत्तरषष्टिवर्षशते मोर्यराज्यकाले विच्छिन्ने च चतुःषष्टयग्रशतकोत्तरे चोत्पादयति क्षेमराजोऽस्य वृद्धराजोऽस्य भिक्षुराजो नाम राजा प्रशासन् सन्ननुभवन् कल्याणानि (१७) . . . . . . गुणविशेषकुशलः सर्वपाषण्डपूजकः . . • • • . तानां संस्कारकारकोऽप्रतिहतचक्रिवाहनबलचक्रधरो गुप्तचक्रः प्रशान्तचको राजर्षिवंशकुलविनिर्गतो महाविजयो राजा खारवेलश्रीः ॥ १. आ भूल छे खरी रीते षष्टयधिकवर्षशते जोईए. २. मौर्यराज्य नुं प्राकृत राजमुरिय छे. प्राकृतमा जेम घणी वार आवे छे तेम आ शब्द-विपर्ययनो दाखलो छे. ३ खरी रीते विच्छिन्नायां च चतुःषष्टयामग्रशतकोत्तरायां जोईए. "Aho Shrut Gyanam" Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 加 प्राचीन जैनलेखसंग्रह | गुजराती भाषान्तर । अहंताने नमस्कार. सर्व सिद्धोने नमस्कार. कलिंगाधिपति, बीर, महामेघवाहन, चैत्रराजवंशवर्धन, प्रशस्तशुभलक्षण एवा श्री - खारवेले कुमार रूपे पंदर वर्ष सुधी कुमार- क्रीडाओ करी. नव वर्ष सुधी लेखन, गणना, चित्र, व्यवहारमां कुशल थइने, तेणे यौवराज्य पद भोगव्युं. चोवीस वर्ष पूर्ण कर्या पछी कलिंगना राजपुरुषोनी धुंसरीमां शेषयौवनने विजय अने वृत्तिमां पसार करवाने तेने महाराज तरीके अभिषेक कर्यो. अभिषेक थतांज प्रथम वर्षमां तेणे पवनथी नुकसान पामेला कलिंगना दरवाजा, किल्ला, घरो तथा शिबीरने समराव्या. तेणे शीतळ एवा अनेक जातनां तळादो अने बाग विगेरे ३५ लाख रुपीआ खरचीने बंधाव्या. ( आ प्रमाणे ) तेणे लोकोने संतोष्या. बीजा वर्षमां पश्चिम दिशानुं रक्षण करीने हय, हाथी, माणसो अने रथ युक्त एक मोटुं लश्कर शतकर्णिए मोकल्युं. ( आज वर्षमां ) कुसम्ब क्षत्रियोनी सलाह लइने ( तेणे ) मसीक ( ? ) शहेर लीधुं. फरीथी, त्रीजा वर्षमां, ते गीत विद्या शीख्यो अने दम्प ( ? ) नृत्त, गीत अने वादन तथा जलसाथी नगरीने आनंद आप्यो. आ प्रमाणे चोथा वर्षमां, कलिंगना पहेलांना राजाओथी पूजापलं, विद्याधरोथी बसाएलं, धर्मकूट पूजा करी अने छत्रो १ आ भाग भांगी गयो छे, पण एम लागे छे के अगर धर्मकूट पर्वत उपर लेना ऊं काइक मूई अने विद्याधरोए बसावे छे तथा पहेलांना कलिंग राजाओ तेनी पूजा करता एम कहेलं . ते राजाए चैत्य उपर छत्रो तेनी पूजा करी. आ चैत्य "Aho Shrut Gyanam" Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। तथा कळशो मूकीने एवो देखाव कर्यो के जेथी त्रिरत्न विष नाना तेमज मोटा सरदारोने श्रद्धा उत्पन्न थाय. पछी पांचमा वर्षमा नन्दराजनो त्रिवर्ष-सत्र आरंभ्यो; तनसूलीया (?) वडे एक पाणीनी नहेर शहेरमा आणी; . . . . . . राज्यनी आबादी जणाववा माटे उत्सवो को. (७) ( अने आ प्रमाणे ) शहेरना तथा गामडाना लोको उपर लाखो उपकार कर्या. सातमा वर्षमा राज्य करतां . . . . . . • . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . • . . . . . . . . आठमा बर्षमा . . . . . (८) मारीने . . . . . . . . . . . . . राजगृहना राजाने तेणे हेरान कर्यो; (ते) तेमनी ( खारवेलना अनुचरोनी ) धसारो करवानी तैयारीओनो अवाज सांभळीने, सर्व ठेकाणे (तेनुं ) १ दानि शब्द घणीवार अतः तथा ततः ना अर्थमां वपराय छ; जेमके, 'महावस्तु ' मां (प्रकाशक-सेना) पृ. १८, १०, २१, ३-३१, ८-२०५, १५२३२, २-२४४, ९-३६५, १९. २ एम जणाय छे के नंदराज नामनो कोई राजा हतो. तेनुं दानगृह हतुं ज्यां जे कोई आवे तेने, त्रण वर्ष सुधा दान अपातु. ए गृह जतुं रह्यु हशे ते खारवेले फरीथी उघाड्युं वळी नीचे जणावेली नहेर उपरथी, सत्र एटले के तळाव पण थाय छे ते उपरथी एम लागे छे के पहेला कोई नंदराजाए बंधावेलुं तळाव हशे के जेने खारवेले उघाडथु अने तेमाथी नहेर लीधी. ते तळाव त्रण वर्ष सुधी पाणी राखी शके तेम हशे तेथी तेने त्रिवर्ष-सन्न कहे छे. ३ ...... ने जेणे मार्यो अने राजगृह राजाने हेरान कों तेनुं नाम जतुं रघु छे. पण आ हेरान करनार खारवेलना अनुवरोनो अवाज सांभळीने घोडो विगेरे कर मूकीने मथुरामा नासी गयो, "Aho Shrut Gyanam" Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ હું प्राचीन जैनलेखसंग्रह | लश्कर, वाहनोने मूकीने मथुरा पाछो नासी गयो, नवमे ( वर्षे ) . . ( ९ ) एक उत्तम कल्प वृक्षनुं' ( तेणे दान कर्यु ) तेनी साथे घोडा, हाथीओ, रथो, तथा गृहावसथो ब्राह्मणोने ते ग्रहण कराववा माटे घणां घन साथे . अर्हन्त आडवीस लाख (नी कीमते ). • · (१०) महाविजय नामना प्रासादने. रहेठाण बनावीने, दसमा वर्षमां. नीकळी तेमना हेतु जाणीने .. नं भारत वर्षना प्रस्थाने .. बनाव्या. ( तेनी सामे थवाने ) जे तैयार (हता ) " # नांखेलो करें तथा ' जनपदभवन उत्तरना लोकोने दुःख आपतो. . ( ११ ) गर्दभ शहरमां तेरसो वरस सुधी पहेलांना राजाओए } दूर कर्या • . ★ " • . बारमा वर्षमा ( १२ ) मगधना लोकोमा भारे त्रास वर्तावीने तेणे ( पोताना ) हाथीओने गंगानुं पान कराव्युं अने मगधना राजाने सख्त शिक्षा करीने ( पोताना ) पगे तेने नमाव्यो, ... नन्दराजे लीघेल मगध एक शहर वसावीने प्रथम जिननी "Aho Shrut Gyanam" १ लेखमां कल्पवृक्ष छे जे चारथी ४००० रुपीआभार सोनानुं होय छे. सरखावो: - हेमाद्रिनो ' चतुर्वर्ग चिंतामणी', दानखंड, अध्याय ५. २. लेखमां पाशुदं छे. जे कदाच पथिदेयं अगर करनुं प्राकृत रूप ते बखततं हो. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। (१३). . . . . . स्थापे छ . . . . . . . तेनां शिखरो एवां ( उंचां ) छे के तेमना उपर बेसीने विद्याधरो आकाशने खेंचे सप्त वार्षिक दान ( ना नियम ) प्रमाणे तेणे अपूर्व अने ( हजु सुधी) नहि अपायलं हाथीओनुं दान आप्यु . . . . लेवडाव्या . . . . . , आ प्रमाणे एक सो . : . (१४) . . . . . . . . ना रहेवासीओने हराव्या. तेरमा वर्षमां, (ते ) जेणे पोतानु विजयि राज्य आगळ वधार्यु . . . . . . कुमारी टेकरीना अर्हन्तोना निवासस्थानमांनी बहारनी बेठके उपर . . (१५) . . . . . जेणे सर्व दिशाओना महा विद्वानो तथा महा तपस्विओनी सभा मेळवी हती . . . . . . अर्हतनी बेठक नजीक पर्वतना शिखर उपर समर्थ कारीगरोना हाथे . . . . . . . . पतालक, चेतक अने वैडूर्यगर्भमा स्तंभो कर्या. अने विजयी श्री खारवेल राजा, भिक्षुराज ( नामनो), क्षेमेन्द्रना ( पुत्र ) वृद्धिराजनो (पुत्र ) अने गुणोमां कुशळ, सर्व पाषण्डपूजक, . . . . नो समरावनार, जेनुं राज्य*, वाहनो, अने लश्कर अजय्य छे, जेर्नु राज्य शांत छे, राजर्षिना वंशमा उत्पन्न थयेलो तेणे मोर्थराजाने १६४ वीत्या पछी मोर्य संवत् १६५ मां (आ) कराव्यु १ लेखमा निसिदिय शब्द छ जे नागार्जुन गुहाना लेखोमां पण छे. तेना जेवो पाली शब्द निसा अने जैनपाकृतमा निसहि छे, २ आ कदाच गुहाओना नामो हशे. वैडूर्यगर्भ कदाच आ गुहाओनो भाग पण होई शके. 3 मूळ लेखमां जीर्ण छे. * आ चकिने बदले चक्र वांचीए तो पण जो प्राकृतनी रीत प्रमाणे चकि मूकवामां आवे तो संस्कृतमा ते चश्यप्रतिहतवाहनबल थाय, एटले के जेनु लश्कर तथा वाहनो ' चक्रि' ओथी पण अटकावी शकाय नहीं. पहेलो पाठ मने पसंद छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। लेख २. वैकुंठ गुहाना ओटलानी पाछली भीतना मध्यद्वारनी जमणी बाजुए अढी लीटीओमा लेख नं. २ आव्यो छे. तेनो केटलोक भाग खराब थयो छे तोपण अक्षरो कळी शकाय तेम छे. बाकीनो भाग सारी स्थितिमा छे. नकल. ( १ ) अरहंतपसादानं कलिगानं' समनानं लेनं कारितं राजिनो लालकस (२) हथिसाहानं पपोतस धुतुना कलिग, कवटिसिरि खारवेलस (३) अगमहिसिना कारितं संस्कृत (१) अईत्मसादानां कालिङ्गानां श्रमणानां लयनं कारितं राज्ञो लालकस्य १. कालिंगानं वांचो. २. हथिसाहानं कदाच हथिसीहानं ने माटे वापरेलुं छे. जेनु सं. हस्तिसिंहानां छे. एर्नु हालतुं नाम हठिसिंघ छे. ३. च पछी छ अक्षरोनी जग्या खाली छे. जे अक्षरो जता रह्या छे ते लेखमां सूचित कर्या छे. रवेल शब्दो खारवेल सूचवे छे. चने धि जेवो करवामां आव्यो छे तेथी बीजो पाठ कलिंगाधिपतिनो थइ शके. ४. कारितं शब्दनो नीचलो भाग भांगी गयो छे पण मने खात्री छे के ते अक्षरो कारितं छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। (२) हस्तिसाहप्रपौत्रस्य दुहिता कलिङ्गचक्रवर्तिनः श्रीखार वेलस्य (३) अग्रमहिष्या कारितं भाषांतर. आहेत धर्मना कलिंग देशना साधुओ माटे एक लयन करवामां आव्यु. हस्तिसाहना प्रपौत्र लालकनी पुत्री चक्रवर्ती कलिंगना राजा श्रीखारवेलनी पट्टराणीए ते कराव्युं. (लयन एटले साधुओने रहेवा माटेनी गुहा.) लेख ३. माणेकपुर गुहाना ओटलानी पाछली भीतना वीजा अने त्रीजा द्वारनी बच्चे एक लीटीमां त्रीजो लेख छ. आ लेखनो एक भाग जीर्ण थइ गयो छे पण जे भाग रह्यो छे ते उपरथी बाकीना अक्षरो कळी शकाय छे. नकल. (१) वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहनवक देपसिरिनो लेणं संस्कृत. (१) वीरस्य महाराजस्य कलिङ्गाधिपतेर्महामेघवाहनश्रीवक्र देवस्य लयनं १ मूळ लेखमां वकदेप छ जे कदाच सं. वक्रदेवने बदले होय. मूळ लेखमां सिरि जो के विशेषण छे तोपण वकदेवनी पछी छ. जेमके लेख १ मां अंते खारवेलसिरि छ. संस्कृतमा तेने श्रीवक्र. देव गणवो. "Aho Shrut Gyanam" Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन नलेखसंग्रह। भाषांतर. कलिंगना महाराजा, वीर श्रीवक्रदेवन लयन. लेख ४. आ ओटलानी जमणी भीतमांना भोयराना द्वारनी जाणी तरफ एक लीटीमा लेख नं. ४ छ. ते सारी स्थितिमा छे. नकल. कुमारो वडुखस लेणं। संस्कृत. कुमारवडुखस्य लयन भाषांतर. कुमार वडुखनु लय "Aho Shrut Gyanam" Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। अनुपूर्ति. डॉ. भगवानलाल इंद्रजीए संशोधित करेला खारवेल राजाना ए लेख उपर, गुर्जरसाक्षर श्रीयु त केशवलाल हर्षदराय ध्रुवे, महाकवि भास रचित ' स्वप्नवासवदत्त ' नाटकना ' साचूं स्वप्न ' ना नामे पोते करेला गुर्जरानुवादनी प्रस्तावनामा केटलोक नवीन प्रकाश पायो छ अने श्रीभगवानलाल द्वारा थएला ए 'सुवाच्य' लेखने एमणे ' सुप्राध' करवानो प्रशंसनीय परिश्रम उठाव्यो छे. श्रीभगवानलालना निवन्धन हार्द समजवा माटे श्रीकेशवलालन ए विवेचन अवश्य अवलोकनीय होवाथी अने अतएव आ संग्रहमा खास संग्रहणीय होवाथी, आ अनुपूर्ति रूपे ' साचूं स्वम ' नी प्रस्तावनामाथी खारवेल संबंधी समग्र प्रकरण अत्र आपq उचित धायुं छे. खारवेलना संबंधमां श्रीयुत सुवर्नु कथन आ प्रमाणे छे: " इ. स. पूर्वे १६५ मां कलिंगना राजा महामेघवाहन खारवेले मगध उपर स्वारी करी. हाल जेने ओढिया प्रांत कहे छे ते प्राचीन १ माहामेघवाहन ए इसवीसन पूर्वेना कलिंगराजाओयूँ बिरुद हतूं. मेघवाहन इंद्रनो पर्याय छे, जुओ अमरकोश. आधी महामेघवाहन अने महेंद्र एक अर्थना शब्दो थया. कलिंगमां आवेला पूर्व घाटना भागनूं नाम महेंद्र छे. एनी कुलपर्वतमा गणना छे. महेंद्र किंवा महामेघवाहनना धणी ते माहामेघवाहन, एवा कंहक संकेतथी आ बिरुद उत्पन्न थy जणाय छे. प्राकृतमा वृद्धि न करवायी महामेघवाहन रूप रूढ थy. खारवेलने लगती हकीकत उदयगिरिनी "Aho Shrut Gyanam" Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह । उत्कल देशनी दक्षिणे कलिंग आल्यो हतो. ए पूर्व समुद्रना कांठे गोदावरीना मुख सूधी पसर्यो हतो. त्यांना लोक साहसिक कहेवाता हतो. प्रजामां ब्राह्म, बौद्ध अने जैन त्रणे धर्मनो प्रसार हतो; परंतु परिवळ जैनोनूं हेतू. पूर्वे कलिंग नंदराजाना व्होळा साम्राज्यनो भाग हतो. एना पछी थनार महाप्रतापी चंद्रगुप्ते समस्त दक्षिणापथ पाटलिपुत्रनी छाया नीचे आण्यो हतो, त्यारथी आशरे सो वरस ते मौर्योना ता. हस्तिगुफाना लेखमाथी तारवी छे, ए लेख सुवाच्य कर्यानो यश सद्गत पंडित भगवानलाल इंद्रजीने छे. में तो तेने सुग्राह्य बनाववा यत्न कर्यो छे. २ कलिंडः साहसिकः। ३ ईसवी सननी सातमी सीमां महाचीननो प्रवासी. साधु यवनचंग आव्यो, त्यां लगी पण कलिंगमां निग्रंथोनी संख्या बंधारे हती; जुओ Watters' Yuan Chwang II, 198. __४ जुओ टिप्पणी ३८. ५ अशोकना लेख दक्षिणमा महिषमंडळ पर्यंत जोवामां आवे छे. परंतु अशोके तो मात्र कलिंग उपर स्वारी कर्याने जाणवामां छे. ए देश वस्तुतः नंद राजाना समयथी मगधराज्यनो एक भाग हतो. ए जोता दक्षिणापथ अशोक पहेला पाटलिपुत्रनी सत्ता नीचे आवलो समजाय छे. नंद महासमृद्धिमान चक्रवर्ती हतो; परंतु तेनी सत्ता कलिंग सिवाय दक्षिणना अन्य देश उपर होय एम जणातूं नथी. केमके कौटिल्ये अर्थशास्त्र रच्यू त्यां लगी आर्यावर्तनी ज चक्रवर्तिक्षेत्र तरीके गणना थती हती. ए रचाया पछी चंद्रगुप्ते दक्षिणापथना देशो जीती मौर्यसाम्राज्यनी छाया नीचे आण्या, एम हूं मानूं छं. "Aho Shrut Gyanam" Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभागा बामा रह्यो हतो. दरम्यान इ. स. पूर्व २६४ मां तेणे छूटा थवाना एक निष्फळ प्रयत्न कर्यो हतो अने तेना बदलामा अशोकने हाथे भारे खुवारी भोगवी हती. छेवटे मौर्यो ज्यारे नबळा पड्या, त्यारे ई. स. पूर्वे त्रीजा शतकना छेल्ला चरणमा चेत [ सं. चैत्र] वंशना राजा क्षेमराजे परतंत्रतानी घसाइ गयेली बेडी तोडी नांखी. ते ज अरसामां अंध्रदेशनो राजा सिमुक पण स्वतंत्र यो. त्यारबाद कलिंगना राजाए उत्तरमा उत्कल, पश्चिममा कोशल अने दक्षिणमां वेंगीमंडळनो प्रदेश जीती लेई राज्यमां वधारो को. पश्चिममां आंध्र राजाए पण नासीक पर्यंत ६ जुओ Asoka's Kalinga Edicts. ७-८ हस्तिगुफाना लेखमां खारवेल पोताने चेतराजवंसबंधन [ सं. चैत्रराजवंशवर्धन ] कहे छे; तथापि पूर्वजोमां तो क्षेमराज अने बुधराज, बेने ज गणावे छे. ते उपरथी क्षेमराजना समयमां कलिंग स्वतंत्र थयो एम अहीं कहेवामां आव्यू छे. भिक्षुराजनी पेठे क्षेमराज अने बुधरान उपनाम जणाय छे. ९ जुओ Sinith's Early History of India. १० खारवेल उत्कल जीत्यानो दावो करतो नथी. छतां तेनो लेख उदयगिरि पर्वत उपर कोतरेलो छे. तेथी ए गादीए आव्यो ते पहेला हूं उत्कल कलिंगे जीती लांघो समजू छू. प्रस्तुत लेखमां शातकर्णिना रक्षण अर्थे पश्चिममा खारवेले लश्कर मोकरयूं कर्तुं छे, तेथी गोदावरी अने कृष्णाना मुख वच्चनो प्रदेश ते काळे आंध्रोना कबजामां न हतो पण कलिंगनी सत्ता नीचे हतो, एवी अटकळ करी छे. ११ पुराणोमा सिमुक अने तेना वंशजोने आन्ध्र कह्या छे. आंध्र वंशना त्रीस राजा तेमां गणाव्या छे. ए त्रीस आंध्रो पछी सात "Aho Shrut Gyanam" Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। मुलक उत्तरना राष्ट्रिको पासथी जीती लीधो. महानदीथी कृष्णाना मुख सूधी विस्तार पामेला पूर्वराज्यमां ज्यारे क्षेमराजनो पौत्र भिक्षुराज खारवेल राजा थयो, त्यारे अर्धी सदीनी स्वतंत्रता अने सुव्यवस्थाना प्रतापे कलिंगनी आर्थिक स्थिति उत्तम प्रकारनी हैती. रैयत आबाद अने खजानो तर हता. नवो राजा पण प्रजाना सुखमां, राज्यना अभ्युदयमां अने कुळनी कीर्तिमां वधारो करे एवो हतो. एनां प्रशस्त लक्ष्णथी संतोष पामा प्रजाए एने राजपद आप्यूं हतूं." खारवेल अने एना पूर्वजो जैन हता. एनो जन्म इ. स. पूर्वे १९७ मां थयो हतो. एने श्रीपर्वतीय आंध्र थया छे, तेमने पुराणो आन्ध्रभृत्य नामे ओळखावे छे. आथी हूं सिमुक अने तेना वंशना राजाओने आन्ध्र कहूं छू. डॉ. भांडारकर तेमने आन्ध्रभृत्य कहे छे, ते सरतचूक जणाय छे. १२ जुओ Smith's Early History of India. १६ जुओ हस्तिगुफाना लेखमां खारवेलनां दान, उत्सव अने बांधकामनी नोंध. १४ जुओ हस्तिगुफाना लेखमां खारवेलने पसथमुभलखन विशेषण लगाडयूं छे ते. एना अभिषेकना संबंधां दानधमेन........ महाराजाभिसेचनं पापुनाति ! एम कयूं छे, ते पण ध्यानमा लेवू. १५ जुओ लेख मजकूरमां कलिंगपुवराजनमंसितं वगेरे. १६ पुष्यमित्र संबंधी आ संक्षिप्त लेखमां ते ते बनावनां वरस जे आप्यां छे,तेनी गणत्री धोरण नीचे मुजब छे,महान सिकंदर ज्यारे पंजाबमां हतो,त्योर पूर्वमां गंगातटे Xandrames नामे महाबळवान राजाराज्य करतो हतो, एम Diodorus Siculus लखे छे अने Quintus Curtius तेने अनुसरे छ. Xandrames चन्द्रमसून पीक रुपांतर छे. आ चन्द्रमम् "Aho Shrut Gyanam" Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। बाळपणमां विजिगीषुने छाजे एवी उत्तम प्रकारनी केळवणी मळी हती. गणित, साहित्य, व्यवहार अने चित्रविद्यामां ते कुशळ हेतो. जैन आगमोनूं ते सारं ज्ञान धरावतो हैतो. अभ्यासकाळ पूरो थतां पंदर महाप्रतापी चंद्रगुप्त मौर्यनां अनेक नाममा एक छे जुओ मुद्राराक्षस. आथी करीने ई. स. पूर्वे ३२५ मां आर्यावर्तना पश्चिम छेडाना प्रांतो सिकंदरे जीत्या त्यारे पाटलिपुत्रमा चंद्रगुप्त राज्य करतो होवो जोइए. आ लेखे एलेकझांडरनी छावणीमां चंद्रगुप्त बहारवटियारुपे रखडतो आव्यानी वात एवी बीजी वातोनी पेठे निमूल अने अश्रद्धेय ठरे छे. ई. स. पूर्व ३२५ मां चंद्रगुप्त पाटलिपुत्रनो राजा हतो, ते बीजी रोते पण सिद्ध थाय छे. ते बुद्ध भगवान पछी १६२ वरसे गादीए आव्यो कहेवाय छ; अने मि. स्मिथ निर्वाणनी साल ई. स. पूर्वे ४८७- ८६ नक्को करे छे, जुओ Smith's Early History of India. हवे हस्तिगुफानो लेख मौर्य संवत १६५ मां कोतरवामां आव्यो हतो. ए संवत चंद्रगुप्त मादीए आव्यो त्यारथी गणाय छे. आथी प्रस्तुत लेखनी साल ई. स. पूर्वे १६० ठरे छे. ते वखते खारवेल साडीस वरसनो हतो; अर्थात् ते ई. स. पूर्वे १९७ मा जनम्यो हतो. मौर्यवंशनो समग्र राज्यकाळ १३७ वरस आपवामां आवे छे. तेथी ई. स. पूर्वे १९८ मां पुष्यमित्रने राजा थयो गण्यो छे. बीजां वरसोनी गणत्री पण आ ज प्रमाणे करवामां आवी छे. Smith's Early History of India नी अने आ लेखनी सालोमा उपरना कारणने लीधे जूज फेर पडे छे. १७-१८ हस्तिगुफाना लेखमा बाळ खारवेलने लेखरूपगणनाववहारविधिविसारद अने सवविजावदात एवां वे विशेषम ल. गाब्यां छे. तेमा लेख, रुप, गगना अने व्यवहारथी भिन्न शक्यार्थना विद्याशब्दे ई आगम अर्थात् जैन आगम समजू छं. जैन भिक्षुनी विद्या ते ज छे. भिक्षुराज खारवेलना संबंधमां पण ते जे लेवी उचित छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। वरसनी न्हानी उम्मरे तेने युवराज बनाववामां आव्यो; अने पचीसमा वरसमां तेना पिता बुधराज देवलोक पामतां ते राजा थयो, ई. स. पूर्वे १७३९. पूर्वजनी विजयप्रवृत्ति जारी राखवा अभिषेकजळथी ज तेणे संकल्प को. गादीए आव्याने बीजे वरसे ए संकल्पने पुष्टि आपनारो प्रसंग पण तेने आवी मळ्यो. अंधराज्यना नैसर्गिक शत्रु राष्ट्रिकोए भोजकोनी सहायताथी श्रीमल्ल शातकर्णिने भारे संकडामणमां लोधो हतो; तेमांथी छूटवा तेणे खारवेलनी मदद मागी. कलिंगराजे मोटुं चतुरंग दळ अंध्रराजनी व्हारे मोकल्यू. आ जबरं सैन्य कुम्मके आवी प्होंचतां शत्रुए पाछा पगलां कया. तेमनी पूंठे लागी कलिंगवीरोए कौशांब क्षत्रियोनी सामेलगीरीथी दुश्मनना हाथमां गयेलू नासीक नगर पाछू मेळेव्यूं. शूरा राष्ट्रिक अने भोजकना हाथ हेठा षड्या अने तेमणे खारवेल साथे मेळ को. ए रीते अंध्र, महाराष्ट्र अने विदर्भ १९-२० जुओ लेखनी नीचेनी पंक्तिओ-पनरवसानि........ कीडिता कुमारकीडका । ततो............नववसानि योवराज पसासितं । संपुणचतुवीसतिवसो च दानधमेन सेसयोवनेभिविजयपोवत्तिये.......महाराजाभिसेचनं पापुनाति ।. अहीं असल पाठ सेसयोवनाभिीवजयपोवत्तिये छे. २१-२२ जुओ लेखमाथी नीचेनो उतारो-दितिये च बसे अभितायंतो सातकणि पछिमदिसं हयगजनररथबहुलं दंडं पठापयति । कुसंबानं खतियानं च साहायवता पत्तं नसिकनगरं ।। आ वाक्यो डॉ. भगवानलालनी वाचनामा अर्थ वगरना रुपमा जोवामां आवे छे. एमां अभितयिता सातकणि अने खतियं च सहायता पत्तं मासिकनगरं छे. एमांना पहेला भागे मि. स्मिथने गो) खवरावी दी● छे. अभितयिताने कर्तृवाचक रुप गणी क्रमभंगनो दोष न लेखवी, "Aho Shrut Gyanam" Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत लेखविभाग | देश कलिंगनी छाया नीचे आव्या; अने कलिंगनरेशनो प्रताप राज्यकाळना बीजा ज वर्षमां नर्मदा अने महानदीथी कृष्णा सूखी पसर्यो. खारवेलनी पहेली सवारी. तरुण कलिंगनरेशे हवे वर्धमान भगवानना चरणारविंदे पवित्र थयेली भूमि भणी नजर फेरवी. शत्रु चेती जवा न पाने एवी रीते आभ्युदयिक धार्मिक अने सार्वजनिक समारंभोमां पांच छ वर्ष गोळी, अभिषेकथी आठमा वरसमां तेणे प्रचंड सेना साथै उत्कलनी सीमा ओळंगी मगध राज्य उपर चडाइ करी, ई. स. पूर्वे १६९ पुष्यमित्र तेना सामो थयो, पण फाव्यो नहि तेना बहु सुभटो मार्या गया. पगना धमकाराथी घरणी घूजावता कलिंगसैनिको रखेने मने घेरी ले, ए भयथी ते पश्चिमना अमित्राता सातकर्णिए खारवेलने मदद मोकली, एवो उलटो अर्थ एओ करे छे; जुओ Smith's Early History of India. डॉ. भगवानलाल पद मजकूरने संबंधक कृदंत ले छे, तेथी पण सारो अर्थ थतो नथी. वास्तविक रीते पाठ ज दूषित छे. ते पछीना मासिकनगरं पदे तो सौने मूझव्या छे. आंध्र राजा कृष्णे नासीक [सं. नासिक्य, प्रा. नस्सिक ] जीती लीधूं हतूं. ते पाछू मेळवावा माटेनो आ विग्रह समजी नसिक पाठ में करूप्यो छे. नासीक संबंधी विग्रहमां राष्ट्रिको साथै पडोशी तरीके भोजको जोडाया मान्या छे. ए रीते राष्टिको ने भोजको कलिंगना संबंधमां आव्या बाद तेमने जैन धर्मम। आस्था उपजाववाना खारवेले उपायो कीधानूं प्रस्तुत लेखमां आगळ वांचिए छिये. २३ जुओ खावेले गादीए आध्या पछीना त्रीजाथी छट्टा वरस सूधी लेख मजकूरभां आपली हकीकत. "Aho Shrut Gyanam" Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। छडी स्वारीए मथुरा नासी गयो. खारवेले तेनी छावणी लूटी. असंख्यात हाथी घोडा रथ वगेरे वाहनो अने पुष्कळ खजानो तेना हाथमां आव्यां. भागी गयेला ठाला शत्रुनी वांसे जवा, मांडी वाळी विजयी कलिंगराज मेळवेली भारे लूंट साथे कलिंग पाछो फर्यो. तेनी बीजी ने त्रीजी सवारीओ.. एक वरस पछी खारवेले भारतवर्षनां उत्तरनां राज्यो उपर फरी सवारी करी, एनी विगत कई जाणवामा नैथी. परंतु पहेली सवारीनी पेठे आ बीजी केवळ अभिद्रवरुप हशे, एम जणाय छे. जो एनूं कई पण संगीन फळ नीपज्यू होय, तो ई. स. पूर्वे १६१ मां एने त्रीजी वारनी सवारी करवी पडे नहि. आ छेल्ली सवारीमा दक्षिणापथनी पेठे उत्तरापथमां पण पोतानी आण वर्ताववानो एनो संकल्प हतो. साहसिक सुभटोना अने महाबळवान हाथीओना सैन्यना स्वामीने ए अशक्य न हतूं. तेने आवतो सांभळी मगधनी प्रजामा त्रास फेलायो. बे समोवडिया समर्थ राजाओ बच्चे जे दारुण विग्रह जाम्यो, तेमां पुष्यमित्रे चडी आवनार राजाना हाथे सखत मार खाधो. छेवटे ते हारीने खारवेलने ताबे थयो. मगधराजने नमाव्या पछी तेणे उत्तरापथना बीजा राजाओने पण वश कर्या. आदितीर्थंकर ऋषभदेवनी मूर्ति नंद राजा उपाडी गयो हतो, ते आ सवारीमां पाटलिपुत्रथी राजगृह पाछी आणी जैन विजे २४ जुओ नीचेनो उतारो-अठमे च वसे..........घातापयिता राजगहनपं पीडापयति । पतिनं च कमपदानपनादेन सवत सेनवाहने विपमुचितु मधुरं अपयातो । अही लेखमां एतिनं छे, तेने बदले में पतिनं [ सं. पतीनाम् ] पाठ करप्यो छे. २५ लेख खंडित छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग। ताए नवा भव्य प्रासादमा भारे उत्सवसमारंभी तेनी स्थापना करा. - तेनूं भर जवानीमां मरण. उत्तरापथना विजय पछी खारवेले बेएक वरस ज राज्य कयूँ जणाय छे. जो ए वधारे जीव्यो होत, तो मीनेंडरने हाथे मगधने खमवू पडत नहि, कलिंगनी छाया नीचेना विदर्भ राज्यमां अमिमित्र हाथ घालत नहि अने अश्वमेध उजवी पुष्यमित्र सार्वभौम राजा बनत नहि. चौद वरस राज्य करी भर जवानीमां ए वीर चाल्यो गयो, ई. स. पूर्वे १५९, खारवेलनां विशेष लक्षण. खारवेल युद्धवीरनी साथे दानवीर अने धर्मवीर पण हतो. तेणे अद्भुत अपूर्व हस्तिदानश्री राजगृहमा ऋषभदेव भगवाननी प्रतिष्ठानो उत्सव उजव्यो हेतो. गादीए आव्याने बीजे वरसे तेणे विदर्भ अने २६-२७ जुओ नीचेनो उतारो-बारसमं च वसं........सइस............हि वितायसयंतो उतरापथराजानो........मगधानं च विपुलं भयं जनेंतो हथिसथं गंगायं पाययति । मागधं च राजानं बहु पटिसासिता पादे चंदापयति । नंदराजनितस अगजिनस...................राजगहे रतनपडिहारेहि अ मगधे वसितु नयरिं........................विजाधरुलेखिअंबरानि सिहरानि निवेसयति । सतवसदानपरिहारेन अभूतमकरियं हथिनं दानपरि हारं...............आहारापयति । इध सतत............उतरापथवासिनो वसिकरोति । अहीं डॉ. भगवनलालना पाठ जनेतो, इथिस, मगधं, वदापयति, परिहारहि, वसिवु, विजाधरुलेखिलंबरानि अने आहरापयति छे. "Aho Shrut Gyanam" Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। महाराष्ट्रमा जैन धर्मना प्रसारना उपाय लीधा हती. अने तेरमे वरसे सर्व दिशाना ज्ञानवृद्ध ने तपोवृद्ध निग्रंथ श्रमणोने कुमारीपर्वते नाता हती. ते त्रिविध सम्यक्त्वथी भिखुराजन, स्वधर्मना रक्षणथी गुतचकनूं अने सत्त्वसिद्धिथी महाविजय बिरुद घरावतो हैंतो. कुशळ शिल्पीओने हाथे तेणे अनेक जिनालयो बंधाव्यां हैंता. पंडे हडहडतो जैन छतां तेना पछी थयेला स्थाण्वीश्वरना चक्रवर्ती हर्षनी पेठे, ते अन्य धर्मनो पण २८ जुओ नीचेनो उतारो-तथा चतुथे वसे विजाधराधिवासअहूर्त पुवकालिंगराजनमंसितं........मगधमकूटस........पूजितं च निखितछतभिंगारेहि तिरतनस पत्यो सवरठिकभोजकेसु सादेवं दसयति ।. अहीं डॉ. भगवानलालना पाठ चवुथे, विजाधराधिवासंअहत,....धमकूटस अने भोजके छे. २९ जुओ नीचेनो उतारो-तेरसमे च बसे सुपवतविजयिचको कुमारीपवते अरहतो उपोसधे बाहिकायं निसिदियायं पधूजके.... ............. काले निखिता............कतसमायो सुविहितानं च सवदिसानं यानिनं तापसानं........संहतानं अरहतनिसिदियासमीपे पभारे वरकारुसमथथपतिहि अनेकयोजनाहि....................पटालके चेतके च वेड्डुरियगभे थंभे पतिठापयति । अहीं मुद्रित पाठ अरहतोप (निवासे), यपजके, रिखिता भने थमे छे. ३० जुओ हस्तिगुफाना लेखना अंतभागमां आपेला बिरुदो ३१ जुओ खारवेलना राज्यकाळना नवमा बारमा अने तेरमा वरसनी हकीकत. "Aho Shrut Gyanam" Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतलेखविभाग । प्रपूजक हैतो. तेणे ब्राह्मणोने पुष्कळ रिद्वीथी संतोष्या हता; अन हेमाद्रिना दानखण्डना पांचमा अध्यायमां सोनाना कल्पवृक्षनूं जे दान कयूं छे, ते पण तेणे आप्यूं हैतूं. कलिंगनगरीने पाणी पूरुं पाडवा तेणे नहेर खोदावी हैती; पुरवासीनी सगवड सारु, शीतलसर नामे तळाव हेतूं तेनी चारे कोर तेणे पाळ बंधावी हैती; अने तेमना सुख माटे जाहेर बाग पण कराव्यो हैतो. नंद राजाना बंधावेला त्रण वरस पाणी प्होचे एवा नंदसरनी पाळमा झापावाळां घडनाळां मूकी तेणे तेने खेतीना काममा वपरातूं कयूँ हेतू. तेनी उदारता अने हितबुद्धिनो लाभ एकला राजनगरने ज नहि, पण सारा कार्लंग देशने तेणे अनेक रीते ३२ जुओ सवपासंडपूजक विरुद. ३३ जुओ नीचनो ऊतारो-नवमे च वसे...............पवरको कपरुखो हयगजरथेहि सह यत सवं घरावसधं........यस वा गहनं च कारयितु बमणानं जम्हि रढिसारं ददाति । ३४ जुओ नीचेनो ऊतारो-तनसुलीयवाहा पनाहिं नगरं पवेसयति ।. अहीं मुद्रित पाठ वाटा अने पवेस....छे. ३५-३६ जुओ नीचेनो ऊतारो-सितलतडागपाडियो च बंधापयति । सवुयानपतिसंठापनं च कारयति । ३७ जुओ नीचेनो ऊतारो-पंचमे च दानि वसे नंदराजतिवससतं ओघाटित ।. अहीं सत्रनो अर्थ सरोवर छ; जुओ मेदिनी. खेतीवाडीना काममां वपरातूं करवाना अर्थमा उद्घाटितना प्रयोग साथे कौटिलीय अर्थशास्त्र ।२।२४। मां चोथा प्रकारना पाणीना वेरा [ उदकभाग ] ना संबंधमां उद्घाटनो उपयोग सरखावो. "Aho Shrut Gyanam" Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। आप्यो हैतो. तेना रक्षण नीचे मुख वसती प्रजा स्वचक्र अने परचक्रनी इति शुं ते जाणती न हैती." ३८ जुओ नीचेनो ऊतारो-पधमे बसे........पंनतीसेहि सत सहसहि पतियो रंजयति ।, ततिये च पुन वसे गंधवेदबुधोदंप (१) नतगीतबादितसंदंसनाहि उसवसमाजकारापनाहि च कीडापयति नगरि ।, अने छठे च वसे........इथिहितोच (१) राजसियो संदसणं उसवकरावणं अनुगहअनेकानि सतसहसानि विसजति पोरजानपदे ।. अहीं मुद्रित पाठ पनतीसाहि सतसहसहि पकातिये रजयति, अने राजसेयसंदसणतोसवकरावणं छे. .३९ जुओ लेखना अंतभागमा पसंतचको विरुद. __+ आ निबंधमा जोडणी विगेरे श्रीयुत ध्रुवना मूल पुस्तक प्रमाणे ज राखवामां आवी छे. -संग्राहक. "Aho Shrut Gyanam" Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छपाय छे. +20+ आ पुस्तक प्रमाणे ज बीजा पण आना भागो नीचे लख्या प्रमाणे तैयार थाय छे जे थोडा समय पछी बहार पडशे. प्राचीनजैनलेखसंग्रह भाग-२. आमां मथुराना पुरातन स्थल कंकालीटिलामांथी मळी आवेला बधा जैनलेखोनो विस्तृत टीका साथे संग्रह करवामां आव्यो छे. प्राचीनजैनलेखसंग्रह भाग-३. आमां शत्रुजय, गिरनार, आबू, कुंभारीया, मुंडस्थल, राणकपुर, पाली, मेड़ता आदि गुजरात अने मारवाडमां आवेला प्रसिद्ध अने प्राचीन जैनतीर्थस्थलोना बधा लेखोनो संग्रह करवामां आव्यो छेके जेमनी संख्या ५००-६०० जेटली छे. बधा लेखो उपर गुजरातीमां विस्तारपूर्वक ऐतिहासिक बाबतोथी भरपूर टीका आपवामां आवी छे. जैनसाहित्यमां आ पुस्तक अपूर्व अने अद्वितीय थशे. पृष्ठ संख्या ८०० जेटली थवा संभव छे. जैनऐतिहासिकरासोनो पण एक संग्रह थोडा समयमां प्रकट थशे जेमा ३०-३५ प्राचीन रासो ऐतिहासिक अवलोकन विगेरे साथे आपवामां आव्या छे. आ पुस्तक पण ५०६० फार्म जेटलुं दलदार थशे. प्रकाशकश्रीजैनआत्मानन्दसभा । "Aho Shrut Gyanam" Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! II શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમઃ | | શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: || જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હરતલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણા ગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વેસર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણ અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ નં-૧ તથા .૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય, પૂજ્યા સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ન શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્ય ગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધના માટે ખુબજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધના જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલળળની તીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો શ્રુત વારસો જળવાઈ રહે તો શુભ આશયથી આ થોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોનો જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. લો અભાઈ તથા સંશોધના માટે વધુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યની પ્રોત્સાહન આપશી. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમા જોડાવાળાની વંદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે...! = પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???