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अनुभवेली बाबतोमां पण घणीक अतिशयोक्ति अने अलंकार भरेली हकीकतो, पोताना धर्मानुराग के वर्णित-व्यक्तिगत पक्षपातने अधीन थइ उमेरी दे छे तो पछी सेंकडो हजारो वर्षों पहेलां थइ गयेला अने जनसमाजमां बहु ज पूज्य के माननीय रुपे गणाइ गयेला नरोना अनेक शताब्दीओ पछीथी लखायेलां जीवनवृत्तांतोना विषयमा तो पूछ ज शुं ? एज कारणना लीधे अशोक के कनिष्क जेवा राजाओ के जेमनु नाम पण जनसमाजना वातावरणमा आस्तित्व धरावतुं न हतुं तेमना विषयमां, फक्त पत्थरनी शिलाओ उपर खोदेली ५-१० पंक्तिओ जेटली नजीवी हकीकत उपर आजे सेंकडो विद्वान् पोतानी प्रतिभाने सतत परिश्रम आपता नजरे पडे छे, त्यारे महापुराण के महाभारत जेवा हजारो अने लाखो श्लोकोमा लखायला महान् ग्रंथोमां वर्णवेली व्यक्तिओ के वर्णनो तरफ भाग्येज कोइ सत्यनी दृष्टिए जुए छे ! एज कारण छे के, चंद्रगुप्त अने संप्रति जेवा जैनसमाजप्रसिद्ध नृपतिओना विषयमां ज्यारे अनेकानेक जैनग्रंथोमा विस्तृत रुघे वर्णन करवामां आवेलं होवा छतां अने निःशंसय रीते तेमने परमजैन तरीके जणावला होवा छतां तेमनुं जैनत्व स्वीकारवा माटे-अने संप्रतिनुं तो असंदिग्ध रीते अस्तित्व पण मानवा माटे-हजु विद्वत्समाज आनाकानी करे छे; त्यारे खारवेल जेवा एक सर्वथा अपरिचित-अज्ञात राजा माटे के जेनु नाम सुधां पण आखा जैनसाहित्यमा कोइ पण स्थाने मळतुं नथी, अने जेना बनावेला एवा महत्त्वना हाथीगुफा जेवा जैनीय धर्मस्थानना अस्तित्वनी कल्पना पण आज सुधी कोइ जैनना मनमा जागेली जणाती नथी, तेने एक परम जैन ( श्रीयुत के. ह. ध्रुवना वचनमां कहुं तो " हडहडतो जैन " ) नृपति के " जैनविजेता " तरीके सिद्ध करवा के कबूल करवामां आधुनिक इतिहासज्ञो मान के आनंद माने छ !
"Aho Shrut Gyanam"