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________________ प्राकृतलेखविभाग | २३ (३) कलिंगराजवंसपुरिसयुगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति ” अभिसितमतो चं पथमवसे वातविहतगोपुरपाकारनिवेसनं पटिसंखारयति कलिंगनगरिं खिबीर चैं सितलतडार्गेपाडियो च बधापयति सबुयानपतिसंठापनं च ८. संपुणचतुविसतिवसो ने बदले K मां संपुणचव विसत छे. C मां स्वरुं छे. ९. मां च ने बदले स छे अने K मां कांइज नथी. १ • K मां विजपात तिये छे अने मां विजयोत तिये छे. य भांगी C E गयो छे पण व स्पष्ट छे तेथी संस्कृत विजयवृत्यै ने बदले विजयवतिये हुं पसंद करूं छं. य, पो होइ शके पण अहींयां पो नी पहेलां य ना लोप विषे आपणे कारण आपी शकीए. तेथी सं. विजयप्रवृत्त्यै ने बदले विज[य] पोतिये पण थाय. ११. पापुनाति ने बदले मां पापेनाति छे. पण मूळमां तथा K मां पु स्पष्ट छे. १. ० नी नकलमां मतो नो म, अ जेवो देखाय छे. पण मूळ लेखमां तेमज x मां म स्पष्ट छे. K २. से ने बदले मांस छे. मूळ लेखमां तेमज K मां से c स्पष्ट छे. ३. खिबीरं च वांचो. च झांखो छे. ४. मां सिताळतडिग छे. K मां खरुं छे. ५. K मां आ शब्द बघपयति जेवो देखाय छे तथा मां चपयति जेबो के. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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