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प्राकृतलेखविभाग। सौथी पहेलां आवां चिह्नो अशोकना जौगड ( Jaugada) लेख उपर जोवामां आवे छे ज्यां त्रीजुं चिन्ह पण जोडेलुं छे. त्यारबाद केटलीक पश्चिम हिंदुस्ताननी गुहाना लेखोमा ए दृष्टिगोचर थाय छे. केटलीक वखते ते आरंभमां के, अंतमा अगर बन्ने ठेकाणे पण जोवामां आवे छे.' आ चिह्न हजु पण हिंदु तेमज जैनोमां शुभ गणाय छे अने लम प्रसंगे अगर एवा बीजा कोई शुभ प्रसंगे कपडां, वासण तथा फळो उपर काढवामां आवे छे. नानां बाळकोने प्रथम मुंडन कराव्या पछी माथा उपर आ चिन्ह कुंकुमथी काढवामां आवे छे. लग्न थया पछी पहेला शुभ दीवसे गुजरात तथा कच्छना लोको जमीन उपर रातुं वर्तुल दोरे छे अने तेमा स्वस्तिक चिन्ह काढे छे तेने "घौरी स्वस्तिक" कहे छे. गायना छाणथी लीपेली जमीन उपर कुलदेव बेसाडीने तेमनी आगळ आ चिन्ह काढे छ जेने “साथीओ" कहे छे. आ शब्द संस्कृत 'स्वस्तिक' ना प्राकृत 'सत्थिओ' उपरथी थयो छे. हालना जैनो पण एने 'साथीओ' कहे छे. तेओनो मत एवो छे के सातमा तीर्थंकर सुपार्श्वनाथन ए लांछन छे, तेमज जैनोनां आठ शुभ लांछनोमांनो प्रथम ए छे. खरतरगच्छना एक विद्वान यति प्रेमचंद्रना कहेवा प्रमाणे जैनो तेने सिद्धनी आकृति तरीके गणे छे. जैनो धारे छे के दरेक प्राणी एक जन्ममां करेलां पोतानां मानसकर्मो प्रमाणे वीजा जन्ममां चारमाथी एक स्थितिने पामे छे. ते देव थाय छे, अगर न जाय छ; अगर क्षुद्र प्राणीओमां या मनुष्य जातिमां जन्म ले छे. पण सिद्धने आमार्नु कांइ पण थतुंनथी, कारण
१ जुन्नर लेखोमां शरुआतमा ५, ६, २०, ३२, ३४; कार्ले लेखोमा ३, अने जुन्नर लेखोमा २२, २९ अने ३१, ३३; आरंभ अने अंत-कार्ले लेख २ अने जुन्नर लेखो १८ ने ३०.
२ आ शब्द ' गोमयलिप्तस्वस्तिक ' संस्कृत शब्द उपरथी थएलो छ तेनो अर्थ · जमीन उपर लीपेलो स्वस्तिक ' थाय छे.
"Aho Shrut Gyanam"