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________________ ४२ भागमां नजरे पडे छे. ए लेख सौथी पहेलां महुम मी. जे. डी. एम. बेगलरनी दृष्टिए पढ्यो हतो अने तेणे कनिंगहामना भाषांतर साथै प्रकट कर्यो हतो ( Arch. Surv. Rep, Vol. XIII, P. 85 Note ) उद्योतकेशरिनो हजु सुधी जाणवामां आवेलो बीजो एक लांबो शिलालेख प्रिन्सेपे प्रकट कीधो छे ( Journ. Beng. As Soc. Vol VII, pp. 558ff.) पण ते अत्यारे उपलब्ध थतो नथी. मी. मनमोहन चक्रवर्तीए पण ए नवमुनिगुहाना लेखने वांचवानो प्रयत्न कर्यो हतो. ए त्रण पंक्तिनो छे अने स्पष्ट रीते कोरेलो छे. मूल-लेख. 1 ओं श्रीमद् उद्योतकेशरिदेवस्य प्रवर्धमाने विजयराज्ये संवत १८ 2. श्रीभार्यसंघप्रतिवद्धग्रहकुलविनिर्गत देशीगण आचार्यश्रीकुलचन्द्र 3 भट्टारकस्य शिष्य सुभचन्द्रस्य । भाषांतरः -- श्रीमद् उद्योतकेशरिदेवना वृद्धि पामता विजय राज्यना संवत् १८ मां श्री आर्यसंघना ग्रहकुलमांथी निकळेला देशीगणना आचार्य कुलचन्द्र भट्टारकना शिष्य सुभचंद्रनी ( कृति ? ). नवमुनि गुहामां बीजो लेख. आलेख वे भागमा व्हेंचायलो छे, अने गुहानी अंदरनी बे ओरडीओ वच्चे भींत उपर कोरेलो छे. एनी लीपी उपरना लेख जेवी ज छे. एना बे भाग छे-पहेलो भाग अपूर्ण छे, कारण के एम लखेलं वाक्य अधुरुं छे. ' श्रीधर छात्र ' एटले शिष्य श्रीधर. "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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