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प्राकृतलेखविभाग। नवमा वर्षमां तेणे करेला केटलांक कामो विषे उल्लेख छे. घणो भाग भांगी गयो छे पण जे भाग रह्यो छे ते उपरथी एम जणाय छे के तेणे ते वर्षमा एक कल्पवृक्षनी' बक्षीस करी अने तेनी साथे घोडा, हाथीओ, रथो, घरो तथा अन्य उत्तम वस्तुओ ब्रामणोने दान करी. वळी तेणे · महान्यय* ' नामनो एक प्रासाद बंधाव्यो जेनुं खर्च २८०००० थयु.
__ दसमा वर्षनी हकीकतमाथी घणो भाग जतो रह्यो छे; तथा अगीआरमा वर्षनी तद्दन जती रही छे. दसमा अने बारमा वर्ष वच्चेनो हेवाल तुटक तुटक छे अने जोके तेनो संबंध संतोषकारक रीते जाणी शकाय तेम नथी तोपण नीचे प्रमाणे अनुमानो घडी शकाय, के दसमा वर्षमां तेणे हिंदुस्थाननी यात्रा करी अने ज्यारे तेने खबर पड़ी के केटलाक राजाओ तेना उपर चढाई करवाना छे त्यारे तेणे पगलां लेवा मांड्या. त्यार बाद घणा भागे अगीयारमा वर्षेनी हकीकत आवे छे, ए वर्षमा तेणे गर्दभनगरमाथी पहेलांना राजाओए नांखेलो एक कर कमी को. त्यारबाद जे आवे छे ते असंबद्ध छे तथा तेनो केटलोक भाग नाश पाम्यो छे. पण काइक १३०० वर्ष पछी पुनः शरु कर्यानुं कहेलं छे.
* लेखमां ' महाविजय' शब्द छ अने तेना संस्कृत तथा इंग्रेजी बन्ने अनुवादोमां पण 'महाविजय ( Mahavijaya)' शब्द ज वापरवामां आव्यु छे छतां आ ठेकाणे पंडितजी तेनुं नाम ' महाव्यय ( Mahavyaya)' आपे छे तेनुं कारण समजातुं नथी, कदाच मूलधी ' महाविजय' ना ठेकाणे ' महाव्यय' लखाई गयुं होय.-संग्राहक.
1 कल्पवृक्षनुं दान आठ महादानमांनुं एक छे. ते चारथी आठहजार रुपीआभारतुं एक सोनानुं झाड, घोडा, हाथी तथा घराणां सहित ब्राह्मणोने आपवामां आवतुं. सरखावो-हेमाद्रिनो 'चतुर्वर्गचिन्तामणि' धानखंड, प्रकरण ५.
"Aho Shrut Gyanam"