Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 109
________________ प्राकृतलेखविभाग। (२) हस्तिसाहप्रपौत्रस्य दुहिता कलिङ्गचक्रवर्तिनः श्रीखार वेलस्य (३) अग्रमहिष्या कारितं भाषांतर. आहेत धर्मना कलिंग देशना साधुओ माटे एक लयन करवामां आव्यु. हस्तिसाहना प्रपौत्र लालकनी पुत्री चक्रवर्ती कलिंगना राजा श्रीखारवेलनी पट्टराणीए ते कराव्युं. (लयन एटले साधुओने रहेवा माटेनी गुहा.) लेख ३. माणेकपुर गुहाना ओटलानी पाछली भीतना वीजा अने त्रीजा द्वारनी बच्चे एक लीटीमां त्रीजो लेख छ. आ लेखनो एक भाग जीर्ण थइ गयो छे पण जे भाग रह्यो छे ते उपरथी बाकीना अक्षरो कळी शकाय छे. नकल. (१) वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहनवक देपसिरिनो लेणं संस्कृत. (१) वीरस्य महाराजस्य कलिङ्गाधिपतेर्महामेघवाहनश्रीवक्र देवस्य लयनं १ मूळ लेखमां वकदेप छ जे कदाच सं. वक्रदेवने बदले होय. मूळ लेखमां सिरि जो के विशेषण छे तोपण वकदेवनी पछी छ. जेमके लेख १ मां अंते खारवेलसिरि छ. संस्कृतमा तेने श्रीवक्र. देव गणवो. "Aho Shrut Gyanam"

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